इब्रानियों 5

5
1क्योंकि हर एक महायाजक मनुष्यों में से लिया जाता है और मनुष्यों ही के लिये, उन बातों के विषय में जो परमेश्‍वर से सम्बन्ध रखती हैं, ठहराया जाता है कि भेंट और पाप बलि चढ़ाया करे। 2वह अज्ञानों और भूले भटकों के साथ नर्मी से व्यवहार कर सकता है, इसलिये कि वह आप भी निर्बलता से घिरा है। 3इसी लिये उसे चाहिए कि जैसे लोगों के लिये वैसे ही अपने लिये भी पाप–बलि चढ़ाया करे।#लैव्य 9:7 4यह आदर का पद कोई अपने आप से नहीं लेता, जब तक कि हारून के समान परमेश्‍वर की ओर से ठहराया न जाए।#निर्ग 28:1
5वैसे ही मसीह ने भी महायाजक बनने की बड़ाई अपने आप से नहीं ली, पर उसको उसी ने दी, जिसने उससे कहा था,
“तू मेरा पुत्र है,
आज मैं ही ने तुझे उत्पन्न किया है।”#भजन 2:7
6इसी प्रकार वह दूसरी जगह में भी कहता है,
“तू मलिकिसिदक की रीति पर सदा के लिये
याजक है।”#भजन 110:4
7यीशु ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊँचे शब्द से पुकार–पुकारकर और आँसू बहा–बहाकर उससे जो उसको मृत्यु से बचा#5:7 या उद्धार कर सकता था, प्रार्थनाएँ और विनती की#मत्ती 26:36–46; मरकुस 14:32–42; लूका 22:39–46 , और भक्‍ति के कारण उसकी सुनी गई। 8पुत्र होने पर भी उसने दु:ख उठा–उठाकर आज्ञा माननी सीखी, 9और सिद्ध बनकर, अपने सब आज्ञा माननेवालों के लिये सदा काल के उद्धार का कारण हो गया, 10और उसे परमेश्‍वर की ओर से मलिकिसिदक की रीति पर महायाजक का पद मिला।
विश्‍वास से भटक जाने का परिणाम
11इसके विषय में हमें बहुत सी बातें कहनी हैं, जिनका समझाना भी कठिन है, इसलिये कि तुम ऊँचा सुनने लगे हो। 12समय के विचार से तो तुम्हें गुरु हो जाना चाहिए था, तौभी यह आवश्यक हो गया है कि कोई तुम्हें परमेश्‍वर के वचनों की आदि शिक्षा फिर से सिखाए। तुम तो ऐसे हो गए हो कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए। 13क्योंकि दूध पीनेवाले बच्‍चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्योंकि वह बालक है।#1 कुरि 3:2 14पर अन्न सयानों के लिये है, जिनकी ज्ञानेन्द्रियाँ अभ्यास करते–करते भले–बुरे में भेद करने में निपुण हो गई हैं।

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