व्यवस्थाविवरण 10

10
पत्थर की नई पटियाएँ
(निर्ग 34:1–10)
1“उस समय यहोवा ने मुझसे कहा, ‘पहली पटियाओं के समान पत्थर की दो और पटियाएँ गढ़ ले, और उन्हें लेकर मेरे पास पर्वत के ऊपर आ जा, और लकड़ी का एक सन्दूक भी बनवा ले। 2और मैं उन पटियाओं पर वे ही वचन लिखूँगा, जो उन पहली पटियाओं पर थे, जिन्हें तू ने तोड़ डाला, और तू उन्हें उस सन्दूक में रखना।’ 3तब मैं ने बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनवाया, और पहली पटियाओं के समान पत्थर की दो और पटियाएँ गढ़ीं तब उन्हें हाथों में लिये हुए पर्वत पर चढ़ गया। 4और जो दस वचन यहोवा ने सभा के दिन पर्वत पर अग्नि के मध्य में से तुम से कहे थे, वे ही उसने पहलों के समान उन पटियाओं पर लिखे, और उनको मुझे सौंप दिया। 5तब मैं पर्वत से नीचे उतर आया, और पटियाओं को अपने बनवाए हुए सन्दूक में धर दिया; और यहोवा की आज्ञा के अनुसार वे वहीं रखी हुई हैं।
(6तब इस्राएली याकानियों के कुँओं से कूच करके मोसेरा तक आए। वहाँ हारून मर गया, और उसको वहीं मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र एलीआज़ार उसके स्थान पर याजक का काम करने लगा।#गिन 20:28; 33:38 7वे वहाँ से कूच करके गुदगोदा को, और गुदगोदा से योतबाता को चले, इस देश में जल की नदियाँ हैं। 8उस समय यहोवा ने लेवी गोत्र को इसलिये अलग किया कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक उठाया करें, और यहोवा के सम्मुख खड़े होकर उसकी सेवाटहल किया करें, और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें,#गिन 3:5–8 जिस प्रकार कि आज के दिन तक होता आ रहा है। 9इस कारण लेवियों को अपने भाइयों के साथ कोई निज अंश या भाग नहीं मिला; यहोवा ही उनका निज भाग है, जैसे कि तेरे परमेश्‍वर यहोवा ने उनसे कहा था।)
10“मैं तो पहले के समान उस पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात ठहरा रहा, और उस बार भी यहोवा ने मेरी सुनी, और तुझे नष्‍ट करने की मनसा छोड़ दी।#निर्ग 34:28 11फिर यहोवा ने मुझ से कहा, ‘उठ, और तू इन लोगों की अगुवाई कर, ताकि जिस देश के देने को मैं ने उनके पूर्वजों से शपथ खाकर कहा था उसमें वे जाकर उसको अपने अधिकार में कर लें।’
परमेश्‍वर की माँग
12“अब, हे इस्राएल, तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है, कि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय माने, और उसके सारे मार्गों पर चले, उससे प्रेम रखे, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करे, 13और यहोवा की जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूँ उनको ग्रहण करे, जिससे तेरा भला हो? 14सुन, स्वर्ग और सबसे ऊँचा स्वर्ग भी, और पृथ्वी और उसमें जो कुछ है, वह सब तेरे परमेश्‍वर यहोवा ही का है; 15तौभी यहोवा ने तेरे पूर्वजों से स्‍नेह और प्रेम रखा, और उनके बाद तुम लोगों को जो उनकी सन्तान हो सब देशों के लोगों के मध्य में से चुन लिया, जैसा कि आज के दिन प्रकट है। 16इसलिये अपने अपने हृदय का खतना करो, और आगे को हठीले#10:16 मूल में, कड़ी गर्दनवाले न रहो। 17क्योंकि तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा वही ईश्‍वरों का परमेश्‍वर और प्रभुओं का प्रभु है, वह महान् पराक्रमी और भय योग्य ईश्‍वर है,#1 तीमु 6:15; प्रका 17:14; 19:16 जो किसी का पक्ष नहीं करता और न घूस लेता है।#प्रेरि 10:34; रोम 2:11; गला 2:6; इफि 6:9 18वह अनाथों और विधवा का न्याय चुकाता, और परदेशियों से ऐसा प्रेम करता है कि उन्हें भोजन और वस्त्र देता है। 19इसलिये तुम भी परदेशियों से प्रेम भाव रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे। 20अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना और उसी से लिपटे रहना, और उसी के नाम की शपथ खाना। 21वही तुम्हारी स्तुति के योग्य है;#10:21 मूल में, वही तेरी स्तुति है और वही तेरा परमेश्‍वर है, जिसने तेरे साथ वे बड़े महत्व के और भयानक काम किए हैं जिन्हें तू ने अपनी आँखों से देखा है। 22तेरे पुरखा जब मिस्र में गए तब सत्तर ही मनुष्य थे; परन्तु अब तेरे परमेश्‍वर यहोवा ने तेरी गिनती आकाश के तारों के समान बहुत कर दी है।#उत्प 15:5; 22:17; 46:27

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