किन्तु उस धार्मिकता का कथन क्या है?, “वचन तुम्हारे पास है, वह तुम्हारे मुख में और तुम्हारे हृदय में है।” यह विश्वास का वह वचन है, जिसका हम प्रचार करते हैं। क्योंकि यदि तुम मुख से स्वीकार करते हो कि येशु प्रभु हैं और हृदय से विश्वास करते हो कि परमेश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया, तो तुम्हें मुक्ति प्राप्त होगी। हृदय से विश्वास करने पर मनुष्य धार्मिक ठहरता है और मुख से स्वीकार करने पर उसे मुक्ति प्राप्त होती है। धर्मग्रन्थ कहता है, “जो कोई उस पर विश्वास करता है, उसे लज्जित नहीं होना पड़ेगा।” इसलिए यहूदी और यूनानी में कोई भेद नहीं है—सब का प्रभु एक ही है। वह उन सब के प्रति उदार है, जो उसकी दुहाई देते हैं; क्योंकि “जो कोई प्रभु के नाम की दुहाई देगा, उसे मुक्ति प्राप्त होगी।” परन्तु यदि लोगों को उस में विश्वास नहीं, तो वे उसकी दुहाई कैसे दे सकते हैं? यदि उन्होंने उसके विषय में कभी सुना नहीं, तो उस में विश्वास कैसे कर सकते हैं? यदि कोई प्रचारक न हो, तो वे उसके विषय में कैसे सुन सकते हैं? और यदि वह भेजा नहीं जाये, तो कोई प्रचारक कैसे बन सकता है? धर्मग्रन्थ में लिखा है, “कल्याण का शुभ समाचार सुनाने वालों के चरण कितने सुन्दर लगते हैं!” किन्तु सब ने शुभ समाचार का स्वागत नहीं किया। नबी यशायाह कहते हैं “प्रभु! किसने हमारे सन्देश पर विश्वास किया है?” इस प्रकार हम देखते हैं कि संदेश सुनने से विश्वास उत्पन्न होता है और जो सुनाया जाता है, वह मसीह का वचन है।
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पांच दिन
पांच दिन डॉ.रमेश रिचर्ड के साथ बिताएं, जो RREACH के अध्यक्ष और डालास थियोलोजिकल सेमिनरी के आचार्य हैं, वह पासबान के दृष्टिकोण से बताएंगे कि जीवन में अपनी आत्मा के जुनून को कैसे खोजा जाए एक सर्वोच्च उद्देश्य का पीछा करने वाला इच्छानुरूप जीवन जुनून से शुरू होता है। आप इसके साथ संगी योजना,"एक साशय जीवन का निर्माण करनाः अभी प्रारम्भ करें" का भी आनंद ले सकते हैं।
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