नीतिवचन 8

8
बुद्धि सब गुणों से सर्वश्रेष्‍ठ है
1बुद्धि तुम्‍हें आवाज दे रही है;
समझ उच्‍च स्‍वर में तुम्‍हें पुकार रही है।#नीति 1:20-21
2वह मार्ग के किनारे ऊंचे स्‍थानों पर,
रास्‍तों के मिलने के स्‍थान पर
आकर खड़ी है।
3नगर के सम्‍मुख, प्रवेश-द्वार के समीप
दरवाजों के पैठार पर खड़ी होकर
वह उच्‍च स्‍वर में पुकार रही है:#यो 7:37
4‘ओ प्रतिष्‍ठित लोगो, मैं तुम से बोल रही हूं;
ओ साधारण लोगो,
मेरी पुकार तुम्‍हारे लिए भी है।
5ओ सीधे-सादे लोगो, चतुराई सीखो;
ओ मूर्ख लोगो, समझ की बात पर हृदय
लगाओ।
6मेरी बात सुनो,
क्‍योंकि मैं तुम से श्रेष्‍ठ वचन कहूंगी;
मेरे मुख से केवल उचित बातें ही निकलेंगी।
7मेरा मुंह केवल सत्‍य वचन ही कहेगा
मेरे ओंठों को दुष्‍ट वचन से घृणा है।
8मेरे मुख के सब वचन धार्मिक होते हैं,
उनमें छल-कपट और उलट-फेर नहीं
होता।
9ये समझदार मनुष्‍यों के लिए सहज हैं,
और ज्ञान पिपासुओं के लिए सीधे-सादे।
10चांदी को नहीं, वरन् मेरी शिक्षा को ग्रहण
करो;
सोने को नहीं,
बल्‍कि मेरे ज्ञान को प्राप्‍त करो।
11क्‍योंकि मैं-बुद्धि मोतियों से श्रेष्‍ठ हूं;
तुम्‍हारी किसी भी इष्‍ट वस्‍तु से
मेरी तुलना नहीं हो सकती।#अय्‍य 28:15; प्रव 24:1-22
12‘मैं समझ में निवास करती हूं;
मुझे ज्ञान और विवेक उपलब्‍ध हैं।
13बुराई से घृणा करना ही
प्रभु की भक्‍ति#8:13 भय मानना करना है;
मैं घमण्‍ड, अहंकार और दुराचरण से,
छल-कपटपूर्ण बातों से घृणा करती हूं।
14मुझमें सम्‍मति और खरी बुद्धि है,
मुझ में समझ है,
शक्‍ति भी मेरी है।#यश 11:2
15मुझ-बुद्धि के द्वारा ही
राजा राज्‍य करते हैं;
मेरी सहायता से शासक
न्‍यायपूर्ण निर्णय करते हैं।
16मेरे द्वारा ही शासक राज्‍य करते हैं,
उच्‍चाधिकारी पृथ्‍वी पर शासन करते हैं।
17जो मुझसे प्रेम करते हैं,
मैं उनसे प्रेम करती हूं;
जो मुझे ढूंढ़ने में जमीन-आसमान एक कर
देते हैं,
वे मुझे पाते हैं।#मत 7:7-11; यो 14:21
18सम्‍पत्ति और सम्‍मान,
शाश्‍वत धन और धार्मिकता मेरे पास हैं।
19मेरा फल सोने से,
नहीं, शुद्ध सोने से श्रेष्‍ठ है;
मेरी उपज उत्तम चांदी से अच्‍छी है।
20मैं धर्म के मार्ग में,
न्‍याय के पथ पर चलती हूं;
21और अपने प्रेमियों को
धन-सम्‍पत्ति से पूर्ण करे देती हूं,
उनके खजानों को भर देती हूं।’
बुद्धि का सृष्‍टि-रचना में सहयोग
22प्रभु ने अपने समस्‍त सृष्‍टि-कार्यों में
सर्वप्रथम, अपना रचना-कार्य आरम्‍भ करने से
पूर्व मुझे ही पहले उत्‍पन्न किया था#8:22 अथवा ‘प्राप्‍त किया था’।#यो 1:1; प्रव 1:4; प्रक 3:14
23युगों के आरम्‍भ से,
आदि से ही,
पृथ्‍वी की रचना के पहले से
मैं ही गढ़ी गई।
24जब न गहरा महासागर था,
और न जल से भरे हुए झरने थे,
तब मेरा जन्‍म हुआ।
25जब पहाड़ों का अस्‍तित्‍व भी न था,
जब पहाड़ियों का आकार गढ़ा नहीं गया था,
तब मैं ही उत्‍पन्न हुई थी।
26जब प्रभु ने भूमि और मैदान बनाए,
जब उसने पृथ्‍वी का प्रथम धूलि-कण रचा,
उसके पुर्व मैं अस्‍तित्‍व में आई।#उत 1:6
27जब प्रभु ने आकाश की रचना की
तब मैं वहां थी;
जब उसने गहरे महासागर के ऊपर
वितान खींचा था,
तब भी मैं उपस्‍थित थी।
28जब उसने ऊपर, आकाश मण्‍डल को स्‍थिर
किया,
जब उसने गहरे महासागर के झरनों का मुंह
खोला,
29जब उसने सागर की सीमा निर्धारित की,
कि जल उसकी आज्ञा का उल्‍लंघन कर उस
सीमा को पार न करे;
जब उसने पृथ्‍वी की नींव के चिह्‍न लगाए,
30तब मैं एक कुशल कारीगर के समान, उस
के समीप ही थी।#8:30 मूल में अस्‍पष्‍ट
मैं प्रतिदिन उसको प्रसन्न करती थी;
मैं सदा उसके सम्‍मुख आनन्‍द मनाती थी।#यो 1:2; प्रज्ञ 1:1; प्रव 24:3-6
31मैं उसके द्वारा बसायी गई पृथ्‍वी से आनन्‍दित थी;
मैं मनुष्‍य जाति से प्रसन्न थी।
बुद्धि के लिए आह्‍वान
32अब, हे मेरे शिष्‍यों,#8:32 मूल में, ‘हे पुत्रो’ मेरी बात सुनो:
मेरे मार्ग पर चलनेवाले लोग धन्‍य हैं!#प्रव 14:20-27
33शिक्षा की बात सुनो,
और बुद्धिमान हो जाओ;
मेरे शिष्‍यों, शिक्षा की उपेक्षा मत करना।
34मेरी बात को सुननेवाला मनुष्‍य धन्‍य है।
वह प्रतिदिन मेरे द्वार पर
आस लगाए खड़ा रहता है;
वह मेरी प्रतीक्षा में
द्वार पर पलकें बिछाए रहता है।
35मेरे शिष्‍यो, जो मनुष्‍य मुझ को प्राप्‍त कर लेता है,
वह जीवन को पा जाता है;
वह प्रभु की कृपा का पात्र बन जाता है।#1 यो 5:12
36पर जो मुझे चूक जाता है,
वह अपने पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारता है;
जो मुझसे घृणा करता है
वह मृत्‍यु को प्‍यार करता है।

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