नीतिवचन 6

6
सोच-समझ कर काम करना
1मेरे पुत्र, यदि तूने बिना सोचे-समझे
अपने पड़ोसी के लिए जमानत दी है;
अथवा किसी अपरिचित के लिए
उत्तरदायित्‍व लिया है;#नीति 27:13; प्रव 29:14-20
2यदि तू वचन देकर फंस गया है,
यदि तू अपने मुंह के शब्‍दों के कारण पकड़ा
गया है,
3तो तू यह काम करना और बच जाना;
तू पड़ोसी के हाथ में पड़ गया है;
अत: तू अविलम्‍ब जाना
और उसको साष्‍टांग प्रणाम कर मना लेना।
4तू अपनी आंखों में नींद न आने देना,
और न पलकों में झपकी आने देना।
5जैसे हरिणी शिकारी के हाथ से
और चिड़िया चिड़ीमार के जाल से
स्‍वयं को बचा लेती है
वैसे ही तू अपने पड़ोसी से स्‍वयं को बचा
लेना।
चींटी का उदाहरण
6ओ आलसी, चींटी के पास जा;
और उसके कार्यों पर विचार कर;
तब तू बुद्धिमान बनेगा।
7वह बिना मेट, निरीक्षक और शासक के
आदेश से
8ग्रीष्‍म ऋतु में
अपने आहार की व्‍यवस्‍था कर लेती है;
वह फसल की कटनी के समय
अपना भोजन एकत्र करती है।
9ओ आलसी, तू कब तक पड़ा रहेगा?
तू अपनी नींद से कब जागेगा?
10यदि तू थोड़ा और सोएगा,
कुछ समय और झपकी लेगा,
छाती पर हाथ रखे लेटा रहेगा #नीति 24:33-34
11तो यह निश्‍चय है,
कि पथ के लुटेरे की तरह
गरीबी तुझ पर टूट पड़ेगी;
सशस्‍त्र सैनिक के समान
अभाव तुझ पर आक्रमण करेगा।
12दुर्जन किसी काम का आदमी नहीं होता;
बकवादी यहां-वहां कुटिल बातें कहता
फिरता है।
13वह आंखों से सैन
और पैर से इशारा करता है;
वह अपनी अंगुलियों से संकेत करता है।#प्रव 27:22
14वह कुटिल हृदय से बुरी योजनाएं गढ़ता है;
वह निरन्‍तर लड़ाई-झगड़ा उत्‍पन्न करता है।#भज 36:4
15अत: उस पर अचानक ही
विपत्ति का आक्रमण होगा;
वह पल-भर में नष्‍ट हो जाएगा,
और उसके बचने की कोई आशा नहीं
रहेगी।
सात पाप
16छ: बातों से प्रभु को बैर है,
वरन् सात दुर्गुणों से वह घृणा करता है:
17घमण्‍ड से चढ़ी हुई आंखें,
झूठ बोलनेवाली जीभ,
निर्दोष व्यक्‍ति की हत्‍या करनेवाले हाथ,
18कुचक्र रचनेवाला हृदय,
बुराई करने के लिए दौड़नेवाले पैर,
19झूठ बोलने वाले गवाह
और भाई-बहिनों में झगड़ा करवानेवाला
मनुष्‍य।
व्‍यभिचार से बचो
20मेरे पुत्र, अपने पिता की आज्ञा का पालन
कर,
और अपनी मां की शिक्षा को मत छोड़।#नीति 1:8
21तू उनको गांठ बांधकर अपने हृदय में निरन्‍तर
रखना;
तू उनको अपने गले का हार बनाना।
22जब तू मार्ग पर चलेगा तब वे तेरा मार्ग-दर्शन
करेंगी;
जब तू सोएगा तब वे तेरी चौकसी करेंगी,
और जब तू जागेगा तब वे तुझसे बात
करेंगी :
23क्‍योंकि पिता की आज्ञा मार्ग का दीपक है,
और मां की शिक्षा जीवन की ज्‍योति है!
अनुशासन के लिए दी जानेवाली चेतावनियां
जीवन का मार्ग हैं।#भज 119:105
24ये तुम्‍हें बुरी स्‍त्री से,
व्‍यभिचारिणी स्‍त्री के मीठे बोल से बचाएंगी।
25मेरे पुत्र, बुरी स्‍त्री के सौन्‍दर्य की कामना
अपने हृदय में मत करना,
उसके कटाक्ष के जाल में मत फंसना।
26वेश्‍या रोटी के एक टुकड़े में खरीदी जा
सकती है,
किन्‍तु व्‍यभिचारिणी स्‍त्री
पुरुष का जीवन ही नष्‍ट कर देती है।
27क्‍या यह सम्‍भव है कि
मनुष्‍य छाती पर आग रखे,
और उसके वस्‍त्र न जलें;
28वह अंगारे पर चले
पर उसके पैर न झुलसें?
29अत: जो पुरुष परायी स्‍त्री के पास जाता है,
वह भी ऐसे ही जलेगा;
जो पुरुष परायी स्‍त्री का स्‍पर्श करेगा,
वह दण्‍ड से नहीं बचेगा।
30जब चोर भूख के कारण चोरी करता,
और चोरी की रोटी से अपना पेट भरता है,
तब लोग उसको तुच्‍छ नहीं समझते हैं।#6:30 अथवा ‘क्‍या लोग उसे तुच्‍छ नहीं समझते?’
31जब चोर पकड़ा जाता है
तब उसको सात गुना भरना पड़ता है।
उसे अपने घर का सारा माल देना पड़ता है।#नि 22:1,4
32व्‍यभिचार करनेवाला व्यक्‍ति निरा मूर्ख होता है,
जो पुरुष व्‍यभिचार करता है, वह स्‍वयं को
नष्‍ट करता है।
33वह घायल और अपमानित होता है,
उसका कलंक कभी धुल नहीं सकेगा।
34ईष्‍र्या पुरुष को क्रोध से अन्‍धा बना देती है;
जब वह बदला लेगा
तब वह तुझ पर दया नहीं करेगा।#नीति 27:4
35वह क्षतिपूर्ति के लिए कुछ नहीं लेगा;
तू उसको कितने ही उपहार देगा,
पर वह प्रसन्न नहीं होगा।

वर्तमान में चयनित:

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