मत्ती 22

22
विवाह-भोज का दृष्‍टान्‍त
1येशु उन्‍हें फिर दृष्‍टान्‍त सुनाने लगे। उन्‍होंने कहा, 2“स्‍वर्ग का राज्‍य उस राजा के सदृश है,#लू 14:16-24 जिसने अपने पुत्र के विवाह में भोज दिया।#यो 3:29 3उसने उत्‍सव में आमन्‍त्रित लोगों को बुला लाने के लिए अपने सेवकों को भेजा, लेकिन अतिथि आना नहीं चाहते थे। 4राजा ने फिर दूसरे सेवकों को यह कहते हुए भेजा, ‘अतिथियों से कहना − देखिए! मैंने अपने भोज की तैयारी कर ली है। मेरे बैल और मोटे-मोटे पशु मारे जा चुके हैं। सब कुछ तैयार है; विवाह-भोज में पधारिए।’#मत 21:36 5अतिथि राजा के निवेदन की उपेक्षा कर चल दिए। कोई अपने खेत की ओर चला गया, तो कोई अपना व्‍यापार देखने। 6दूसरे अतिथियों ने राजा के सेवकों को पकड़ कर उनका अपमान किया और उन्‍हें मार डाला। 7राजा को बहुत क्रोध आया। उसने अपनी सेना भेज कर उन हत्‍यारों का संहार कर दिया और उनका नगर जला डाला।#मत 24:2
8“तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ‘विवाह-भोज तो तैयार है, किन्‍तु अतिथि इसके योग्‍य नहीं ठहरे। 9इसलिए चौराहों पर जाओ और जितने भी लोग मिल जाएँ, सब को विवाह-भोज में बुला लाओ।#मत 13:47; 21:43 10सेवक सड़कों पर गये और भले-बुरे जो भी मिले, सब को एकत्र कर ले आए और विवाह-मण्‍डप अतिथियों से भर गया।
11“राजा अतिथियों को देखने भीतर आया, तो वहाँ उसकी दृष्‍टि एक ऐसे मनुष्‍य पर पड़ी, जो विवाहोत्‍सव के वस्‍त्र नहीं पहने था। 12उसने उससे कहा, ‘मित्र, विवाहोत्‍सव के वस्‍त्र पहने बिना तुम यहाँ कैसे आ गये?’ वह मनुष्‍य चुप रहा। 13तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पैर बाँध कर इसे बाहर, अन्‍धकार में फेंक दो। वहाँ यह रोएगा और दाँत पीसता रहेगा।’#मत 8:12 14क्‍योंकि बुलाए हुए तो बहुत हैं, लेकिन चुने हुए थोड़े हैं।”
रोमन सम्राट को कर देने का प्रश्‍न
15उस समय फरीसियों ने जा कर आपस में परामर्श किया#मक 12:13-17; लू 20:20-26 कि हम किस प्रकार येशु को उनकी अपनी बात के फन्‍दे में फँसाएँ। #यो 8:6 16उन्‍होंने येशु के पास हेरोदेस-दल के सदस्‍यों के साथ अपने शिष्‍यों को यह प्रश्‍न पूछने भेजा, “गुरुवर! हम यह जानते हैं कि आप सच्‍चे हैं और सच्‍चाई से परमेश्‍वर के मार्ग की शिक्षा देते हैं। आप किसी की परवाह नहीं करते, क्‍योंकि आप मुँह-देखी बात नहीं कहते।#मक 3:6; यो 3:2 17इसलिए हमें बताइए, आपका क्‍या विचार है − रोमन सम्राट#22:17 मूल में, ‘कैसर’ को कर देना उचित है या नहीं?” 18उनकी दुष्‍टता भाँप कर येशु ने कहा, “ढोंगियो! मेरी परीक्षा क्‍यों लेते हो? 19राज-कर का सिक्‍का मुझे दिखाओ।” वे उनके पास एक रोमन सिक्‍का#22:19 मूल में, ‘दीनार’ लाए। 20येशु ने उन से कहा, “यह किसकी आकृति और किसका लेख है?” 21उन्‍होंने उत्तर दिया, “रोमन सम्राट का।” इस पर येशु ने उन से कहा, “तो, जो सम्राट का है, वह सम्राट को दो और जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को दो।”#रोम 13:7 22यह सुन कर वे अचम्‍भे में पड़ गये और येशु को छोड़कर चले गये।#यो 8:9
पुनरुत्‍थान का प्रश्‍न
23उसी दिन सदूकी सम्‍प्रदाय के लोग येशु के पास आए।#मक 12:18-27; लू 20:27-40 उनकी धारणा है कि मृत व्यक्‍ति का पुनरुत्‍थान नहीं होता।#प्रे 23:6,8 24उन्‍होंने येशु के सामने यह प्रश्‍न रखा, “गुरुवर! मूसा ने कहा है कि यदि कोई मनुष्‍य निस्‍सन्‍तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी विधवा को ब्‍याह कर अपने भाई के लिए सन्‍तान उत्‍पन्न करे।#व्‍य 25:5-6; उत 38:8 25अब, हमारे यहाँ सात भाई थे। पहले ने विवाह किया किन्‍तु वह निस्‍सन्‍तान मर गया और अपनी पत्‍नी को अपने भाई के लिए छोड़ गया। 26इसी प्रकार दूसरे और तीसरे भाई ने भी किया, और सातों भाइयों के साथ यही हुआ। 27सब के अन्‍त में वह स्‍त्री मर गयी। 28अब पुनरुत्‍थान होने पर वह सातों भाइयों में से किसकी पत्‍नी होगी? वह तो सब भाइयों की पत्‍नी रह चुकी है।”
29येशु ने उन्‍हें उत्तर दिया, “ तुम लोग न तो धर्मग्रन्‍थ जानते हो और न परमेश्‍वर का सामर्थ्य, इसलिए भ्रम में पड़े हुए हो। 30पुनरुत्‍थान होने पर न तो पुरुष विवाह करते और न स्‍त्रियाँ विवाह में दी जाती हैं, बल्‍कि वे स्‍वर्गदूतों के सदृश होते हैं#प्रज्ञ 5:5 31जहाँ तक मृतकों के पुनरुत्‍थान का प्रश्‍न है, क्‍या तुम लोगों ने कभी यह वचन नहीं पढ़ा जो परमेश्‍वर ने तुम से कहा है : 32‘मैं अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर हूँ’? वह मृतकों का नहीं, जीवितों का परमेश्‍वर है।”#मत 8:11; नि 3:6 33यह सुन कर लोग उनकी शिक्षा पर बहुत चकित हुए।
सब से बड़ी आज्ञा
34जब फरीसियों ने यह सुना कि येशु ने सदूकियों का मुँह बन्‍द कर दिया है, तब वे इकट्ठे हो गये#मक 12:28-31; लू 10:25-28 35और उन में से एक व्‍यवस्‍था के आचार्य ने येशु की परीक्षा लेने के लिए उन से पूछा, 36“गुरुवर! व्‍यवस्‍था-ग्रन्‍थ में सब से बड़ी आज्ञा कौन-सी है?” 37येशु ने उस से कहा, “ ‘अपने प्रभु परमेश्‍वर को अपने सम्‍पूर्ण हृदय, सम्‍पूर्ण प्राण और सम्‍पूर्ण बुद्धि से प्रेम करो।’#व्‍य 6:5 38यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है। 39दूसरी आज्ञा इसी के सदृश है : ‘अपने पड़ोसी को अपने समान प्रेम करो।’#लेव 19:18 40इन्‍हीं दो आज्ञाओं पर समस्‍त व्‍यवस्‍था और नबियों की शिक्षा अवलम्‍बित है।”#मत 7:12; रोम 13:10; गल 5:14
मसीह, राजा दाऊद के वंशज
41फरीसी अभी वहाँ एकत्र थे। येशु ने फरीसियों से पूछा,#मक 12:35-37; लू 20:41-44 42“मसीह के विषय में तुम लोगों का क्‍या विचार है; वह किसके वंशज हैं?” उन्‍होंने उत्तर दिया, “दाऊद के।”#यो 7:42 43इस पर येशु ने उनसे कहा, “तब दाऊद आत्‍मा की प्रेरणा से उन्‍हें प्रभु क्‍यों कहते हैं? उनका कथन है :
44‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा,
तुम सिंहासन की दाहिनी ओर बैठो,
जब तक मैं तुम्‍हारे शत्रुओं को
तुम्‍हारे पैरों तले न डाल दूँ।’ #मत 26:64; भज 110:1
45“यदि दाऊद उन्‍हें प्रभु कहते हैं, तो वह उनके वंशज कैसे हो सकते हैं?” 46इसके उत्तर में कोई भी फरीसी येशु से एक शब्‍द भी नहीं बोल सका और उस दिन से किसी को उन से और प्रश्‍न करने का साहस नहीं हुआ।

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