“यदि मैं अपने विषय में साक्षी देता हूँ, तो मेरी साक्षी मान्य नहीं है। कोई दूसरा मेरे विषय में साक्षी देता है और मैं जानता हूँ कि वह मेरे विषय में जो साक्षी देता है, वह मान्य है। तुम लोगों ने योहन से पुछवाया और उन्होंने सत्य के सम्बन्ध में साक्षी दी है। यह नहीं कि मुझे किसी मनुष्य की साक्षी की आवश्यकता है; किन्तु मैं यह इसलिए कहता हूँ कि तुम लोग मुक्ति पा सको। योहन जलते और चमकते हुए दीपक थे। उनकी ज्योति में थोड़ी देर तक आनन्द मनाना तुम लोगों को अच्छा लगा। परन्तु मुझे जो साक्षी प्राप्त है, वह योहन की साक्षी से भी महान् है। पिता ने जो कार्य मुझे पूरा करने को सौंपे हैं, जो कार्य मैं करता हूँ, वे ही मेरे विषय में यह साक्षी देते हैं कि मुझे पिता ने भेजा है। पिता ने भी, जिसने मुझे भेजा, मेरे विषय में साक्षी दी है। तुम ने न तो कभी उसकी वाणी सुनी और न उसका रूप ही देखा है। उसका वचन तुम लोगों के हृदय में घर नहीं कर सका, क्योंकि तुम उस में विश्वास नहीं करते, जिसे उसने भेजा है। “तुम लोग यह समझ कर धर्मग्रन्थ का अनुशीलन करते हो कि उस में तुम्हें शाश्वत जीवन का मार्ग मिलेगा। वही धर्मग्रन्थ मेरे विषय में साक्षी देता है। फिर भी तुम लोग जीवन प्राप्त करने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते। “मैं मनुष्यों की ओर से सम्मान नहीं चाहता।
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