मेरे प्रिय भाइयो और बहिनो! आप यह अच्छी तरह समझ लें। प्रत्येक व्यक्ति सुनने के लिए तत्पर रहे, किन्तु बोलने और क्रोध करने में देर करे; क्योंकि मनुष्य का क्रोध उस धार्मिकता में सहायक नहीं होता, जिसे परमेश्वर चाहता है। इसलिए आप लोग हर प्रकार की मलिनता और समस्त बुराई को दूर कर नम्रतापूर्वक परमेश्वर का वह वचन ग्रहण करें, जो आप में रोपा गया है और आपकी आत्मा का उद्धार करने में समर्थ है। आप लोग अपने को धोखा नहीं दें। वचन के श्रोता ही नहीं, बल्कि उसके पालनकर्ता भी बनें। जो व्यक्ति वचन सुनता है, किन्तु उसके अनुसार आचरण नहीं करता, वह उस मनुष्य के सदृश है जो दर्पण में अपना प्राकृतिक चेहरा देखता है। वह अपने को देख कर चला जाता है और उसे याद नहीं रहता कि उसका अपना स्वरूप कैसा है। किन्तु जो व्यक्ति उस व्यवस्था को, जो पूर्ण है और हमें स्वतन्त्रता प्रदान करती है, ध्यान से देखता और उसका पालन करता रहता है, वह उस श्रोता के सदृश नहीं, जो तुरन्त भूल जाता है, बल्कि वह कर्ता बन जाता और उस व्यवस्था को अपने जीवन में चरितार्थ करता है। वह अपने आचरण के कारण धन्य होगा। यदि कोई अपने को धर्मात्मा मानता है, किन्तु अपनी जीभ पर नियन्त्रण नहीं रखता, तो वह अपने आप को धोखा देता है और उसका धर्माचरण व्यर्थ है। पिता परमेश्वर की दृष्टि में शुद्ध और निर्मल धर्म यह है : विपत्ति में पड़े हुए अनाथों और विधवाओं की सहायता करना और अपने को संसार के दूषण से बचाये रखना।
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