इब्रानियों 6

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1इसलिए हम मसीह-सम्‍बन्‍धी प्रारम्‍भिक शिक्षा से आगे बढ़कर सिद्धता#6:1 अथवा, ‘प्रौढ़ता की ओर’ की ओर प्रगति करें।#इब्र 9:14 अब हम मृत्‍यु की ओर ले जाने वाले कर्मों से हृदय-परिवर्तन, परमेश्‍वर में विश्‍वास, 2शुद्धिकरण-विधियों#6:2 अथवा, “बपतिस्‍मों” सम्‍बन्‍धी शिक्षा, हस्‍तारोपण, मृतकों के पुनरुत्‍थान और अनंत दंड जैसी शिक्षाओं की नींव फिर न डालें, बल्‍कि उन से ऊपर उठें। 3यदि परमेश्‍वर की अनुमति होगी, तो हम यही करेंगे।
4वास्‍तव में, जिन लोगों को एक बार दिव्‍य ज्‍योति मिली है, जो स्‍वर्गीय वरदान का आस्‍वादन कर चुके और पवित्र आत्‍मा के भागीदार बन गये हैं,#इब्र 10:26-27; मत 12:31; 1 यो 5:16 5जिन्‍हें परमेश्‍वर के संदेश की उत्तमता और आगामी युग की शक्‍तियों का अनुभव हो चुका है#1 पत 2:3 - 6यदि वे पथभ्रष्‍ट हो जाते हैं, तो उन्‍हें पुन: पश्‍चात्ताप के मार्ग पर ले आना असम्‍भव है; क्‍योंकि वे अपनी ओर से परमेश्‍वर के पुत्र को फिर क्रूस पर आरोपित करते और उनका उपहास कराते हैं।#6:6 अथवा, “क्‍योंकि इस नवीकरण के लिए उन्‍हें परमेश्‍वर के पुत्र को क्रूस पर पुन: आरोपित करना और उनका उपहास करना होता।”
7जो भूमि अपने ऊपर बार-बार पड़ने वाला पानी सोख लेती और उन लोगों के लिए उपयोगी फसल उगाती है, जो उन पर खेती करते हैं, तो वह परमेश्‍वर की आशिष प्राप्‍त करती है।#उत 1:11-12 8किन्‍तु यदि वह काँटे और ऊंटकटारे उगाती है, तो वह बेकार है। उस पर अभिशाप पड़ने वाला है और अन्‍त में उसे जलाया जायेगा।#उत 3:17-18
9प्रिय भाइयो और बहिनो! यद्यपि हम इस प्रकार बोल रहे हैं, फिर भी हमें निश्‍चय है कि आप लोगों की दशा इस से कहीं अच्‍छी है और आप मुक्‍ति के मार्ग पर चलते हैं। 10परमेश्‍वर अन्‍याय नहीं करता। वह आपके कार्यों को एवं उस प्रेम को नहीं भुला सकता, जो आपने, उसके नाम की महिमा के उद्देश्‍य से, इस प्रकार दिखाया कि आपने सन्‍तों की सेवा की और अब भी कर रहे हैं।#इब्र 10:32-34 11मैं चाहता हूँ कि आपकी आशा परिपूर्ण हो जाने तक आप लोगों में हर एक व्यक्‍ति यही तत्‍परता दिखलाता रहे।#इब्र 3:14; फिल 1:6 12आप लोग ढिलाई न करें, वरन् उन लोगों का अनुसरण करें, जो अपने विश्‍वास और धैर्य के कारण प्रतिज्ञाओं के उत्तराधिकारी होते हैं।
परमेश्‍वर की प्रतिज्ञाएं
13परमेश्‍वर ने जब अब्राहम से प्रतिज्ञा की थी, तो उसने अपने नाम की शपथ खायी; क्‍योंकि उस से बड़ा कोई नहीं था, जिसका नाम ले कर वह शपथ खाये।#उत 22:16-17 14उसने कहा, “मैं तुम पर आशिष बरसाता रहूँगा और तुम्‍हारे वंशजों को असंख्‍य बना दूँगा” 15अब्राहम ने बहुत समय तक धैर्य रखने के बाद प्रतिज्ञा का फल प्राप्‍त किया। 16लोग अपने से बड़े का नाम ले कर शपथ खाते हैं। उन में शपथ द्वारा कथन की पुष्‍टि होती है और सारा विवाद समाप्‍त हो जाता है।#नि 22:11 17परमेश्‍वर प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारियों को सुस्‍पष्‍ट रूप से अपने संकल्‍प की अपरिवर्तनीयता दिखलाना चाहता था, इसलिए उसने शपथ खा कर प्रतिज्ञा की। 18वह इन दो अपरिवर्तनीय कार्यों, अर्थात् प्रतिज्ञा और शपथ में, झूठा प्रमाणित नहीं हो सकता। इस से हमें, जिन्‍होंने परमेश्‍वर की शरण ली है, यह प्रबल प्रेरणा मिलती है कि हमें जो आशा दिलायी गयी है, हम उसे धारण किये रहें।#गण 23:19; 1 शम 15:29 19वह आशा हमारी आत्‍मा के लिए एक सुस्‍थिर एवं सुदृढ़ लंगर के सदृश है, जो परदे के उस पार स्‍वर्गिक मन्‍दिरगर्भ में पहुँचता है,#लेव 16:2,12 20जहाँ येशु हमारे अग्रदूत के रूप में प्रवेश कर चुके हैं; क्‍योंकि वह मलकीसेदेक के अनुरूप सदा के लिए महापुरोहित बन गये हैं।#इब्र 5:6

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