इफिसियों 4

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एकता के लिए अनुरोध
1परमेश्‍वर ने आप लोगों को बुलाया है। आप अपने इस बुलावे के अनुसार आचरण करें-यह आप लोगों से मेरा अनुरोध है, जो प्रभु के कारण कैदी हूँ।#कुल 1:10 2आप पूर्ण रूप से विनम्र, सौम्‍य तथा सहनशील बनें, प्रेम से एक दूसरे को सहन करें#कुल 3:12 3और शान्‍ति के सूत्र में बंध कर उस एकता को, जिसे पवित्र आत्‍मा प्रदान करता है, बनाये रखने का प्रयत्‍न करते रहें।#कुल 3:14,15
4एक ही देह है, एक ही आत्‍मा और एक ही आशा है, जिसके लिए आप लोग बुलाये गये हैं।#रोम 12:5 5एक ही प्रभु है, एक ही विश्‍वास और एक ही बपतिस्‍मा है;#यो 10:16; 1 कुर 8:6 6एक ही परमेश्‍वर है, जो सब का पिता, सब के ऊपर, सब के साथ और सब में व्‍याप्‍त है।#1 कुर 12:6
कलीसिया की परिपूर्णता हेतु मसीह के वरदान
7मसीह ने जिस मात्रा में देना चाहा, उसी मात्रा में हम में से प्रत्‍येक को कृपा प्राप्‍त हुई है।#रोम 12:3,6; 1 कुर 12:11 8इसलिए धर्मग्रन्‍थ कहता है, “वह ऊंचाई पर चढ़ा और बन्‍दियों को बांध ले गया। उसने मनुष्‍यों को वरदान दिये।”#भज 68:18; कुल 2:15 9वह ‘चढ़ा’-इसका अर्थ यह है कि वह पहले पृथ्‍वी के निचले प्रदेशों में उतरा।#यो 3:13 10जो ‘उतरा’, वह वही है जो आकाश से भी ऊंचे चढ़ा, जिससे वह सब कुछ परिपूर्ण कर दे।
11उन्‍होंने कुछ लोगों को प्रेरित, कुछ को नबी, कुछ को शुभ समाचार-प्रचारक और कुछ को धर्मपाल#4:11 शब्‍दश: “चरवाहा, मेषपाल” अथवा “पास्‍टर” तथा शिक्षक होने का वरदान दिया।#1 कुर 12:28; प्रे 21:8 12इस प्रकार उन्‍होंने सेवा-कार्य के लिए सन्‍तों को योग्‍य बनाया, जिससे मसीह की देह का निर्माण उस समय तक होता रहे,#1 पत 2:5; 2 तिम 3:17 13जब तक हम सब विश्‍वास तथा परमेश्‍वर के पुत्र के ज्ञान में एक नहीं हो जायें और मसीह की परिपूर्णता के अनुसार परिपक्‍वता की मात्रा में पूर्ण मनुष्‍यत्‍व प्राप्‍त न कर लें।#कुल 1:28
14इस प्रकार हम बालक नहीं बने रहेंगे और भ्रम में डालने के उद्देश्‍य से निर्मित धूर्त्त मनुष्‍यों के प्रत्‍येक सिद्धान्‍त के झोंके से विचलित हो कर बहकाये नहीं जायेंगे।#1 कुर 14:20; इब्र 13:9 15हम प्रेमपूर्वक सत्‍य का अनुसरण करें, और मसीह में सब प्रकार की उन्नति करते जाएं। मसीह ही कलीसिया का शीर्ष हैं#इफ 1:22; 5:23; कुल 1:18 16और उनसे समस्‍त देह को बल मिलता है। तब देह अपनी सब सन्‍धियों द्वारा सुसंघटित हो कर प्रत्‍येक अंग की समुचित सक्रियता से अपनी परिपूर्णता तक पहुंचती और प्रेम द्वारा अपना निर्माण करती है।#कुल 2:19
आप लोग नवीन स्‍वाभाव धारण कर लें
17मैं आप लोगों से यह कहता हूँ और प्रभु के नाम पर यह अनुरोध करता हूँ कि आप अब से विधर्मियों-जैसा आचरण नहीं करें, जो निस्‍सार बातों की चिन्‍ता करते हैं।#रोम 1:21; कुल 2:4,6 18उनकी बुद्धि पर अन्‍धकार छाया हुआ है। वे अपने अज्ञान और हृदय की कठोरता के कारण ईश्‍वरीय जीवन से विमुख हो गये हैं।#इफ 2:12; कुल 1:21; 1 पत 1:14 19वे नैतिक बोध से शून्‍य हो कर लम्‍पटता के वशीभूत हो गये हैं और उन में हर प्रकार के अशुद्ध कर्म की लालसा निवास करती है।#कुल 3:5
20आप लोगों को मसीह से ऐसी शिक्षा नहीं मिली। 21यदि आप लोगों ने उनके विषय में सुना और उस सत्‍य के अनुसार शिक्षा ग्रहण की है जो येशु में प्रकट हुआ, 22तो आप लोगों को अपना पहला आचरण और पुराना स्‍वभाव त्‍याग देना चाहिए, क्‍योंकि वह बहकाने वाली दुर्वासनाओं के कारण बिगड़ता जा रहा है।#रोम 8:13; कुल 3:9; गल 6:8 23आप लोग पूर्ण रूप से नवीन आध्‍यात्‍मिक विचारधारा अपनायें#रोम 12:2 24और एक नवीन स्‍वभाव धारण करें, जिसकी सृष्‍टि परमेश्‍वर के अनुसार हुई है और जो धार्मिकता तथा सच्‍ची पवित्रता में व्‍यक्‍त होता है।#उत 1:26; प्रज्ञ 9:3
नये जीवन के नियम
25इसलिए आप लोग झूठ बोलना छोड़ दें और अपने-अपने पड़ोसी से सत्‍य बोलें, क्‍योंकि हम एक दूसरे के अंग हैं।#जक 8:16; कुल 3:8 26यदि आप क्रुद्ध हो जायें, तो इस कारण पाप न करें-सूरज के डूबने तक अपना क्रोध कायम नहीं रहने दें।#भज 4:4 (यू. पाठ); याक 1:19-20 27शैतान को अवसर नहीं देना चाहिए। 28जो चोरी किया करता था, वह अब से चोरी नहीं करे, बल्‍कि किसी अच्‍छे व्‍यवसाय में अपने हाथों से परिश्रम करे। इस प्रकार वह दरिद्रों की भी कुछ सहायता कर सकेगा।#1 थिस 4:11 29आपके मुख से कोई अश्‍लील बात नहीं, बल्‍कि ऐसे शब्‍द निकलें, जो अवसर के अनुरूप हों, और दूसरों के निर्माण तथा कल्‍याण में सहायक हों।#इफ 5:4; कुल 3:16-17; 4:6 30परमेश्‍वर ने विमोचन-दिवस के लिए आप लोगों पर पवित्र आत्‍मा की मुहर लगायी है। आप परमेश्‍वर के उस पवित्र आत्‍मा को दु:ख नहीं दें।#इफ 1:13; यश 63:10 31आप लोग सब प्रकार की कटुता, उत्तेजना, क्रोध, लड़ाई-झगड़ा, परनिन्‍दा और हर तरह की बुराई अपने बीच में से दूर करें।#कुल 3:8 32एक दूसरे के प्रति दयालु तथा सहृदय बनें। जिस तरह परमेश्‍वर ने मसीह में आप लोगों को क्षमा कर दिया, उसी तरह आप भी एक दूसरे को क्षमा करें।#मत 6:14; 18:22-35; कुल 3:12-13

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