1 थिस्‍सलुनीकियों भूमिका

भूमिका
रोमन साम्राज्‍य के अन्‍तर्गत मकिदुनिया नामक एक यूनानी प्रदेश था। इसकी राजधानी थिस्‍सलुनीके नगर थी। लगभग सन् 50 ई. में प्रेरित पौलुस ने अपने सहयोगी तिमोथी के साथ यहाँ एक कलीसिया की स्‍थापना की थी। उन्‍होंने प्रभु येशु का सन्‍देश उन ईश्‍वर-भक्‍त यूनानियों को सुनाया, जो यहूदी धर्म में रुचि लेने लगे थे। किन्‍तु प्रेरित पौलुस की सफलता देखकर यहूदी लोग उनके प्रति ईष्‍र्यालु हो उठे। यहूदियों के विरोध के कारण सन्‍त पौलुस को थिस्‍सलुनीके नगर छोड़ना पड़ा और वह बिरीया नगर चले गए। वह वहाँ से अकेले ही आगे निकलकर, अथेने नगर से होते हुए, कुरिन्‍थुस नगर में आए। तब उन्‍हें तिमोथी की ओर से थिस्‍सलुनीकी की कलीसिया के सम्‍बन्‍ध में निजी समाचार प्राप्‍त हुआ।
अत: प्रेरित पौलुस ने थिस्‍सलुनीके नगर के सब विश्‍वासियों को पुन: आश्‍वस्‍त करने तथा उन्‍हें प्रोत्‍साहित करने के लिए प्रस्‍तुत पत्र लिखा।
वह उनके विश्‍वास और प्रेम के लिए उन्‍हें धन्‍यवाद देते हैं। वह उन्‍हें स्‍मरण दिलाते हैं कि जब वह तिमोथी के साथ थिस्‍सलुनीके नगर में थे, तब उनका जीवन कैसा था। तत्‍पश्‍चात् वह प्रभु येशु के पुनरागमन को लेकर उठे उन प्रश्‍नों का उत्तर देते हैं: पुनरागमन के समय जो शाश्‍वत जीवन हमें प्राप्‍त होगा, क्‍या यह शाश्‍वत जीवन उन विश्‍वासियों को भी प्राप्‍त होगा जो प्रभु येशु के आगमन के पूर्व मृत हो चुके हैं? प्रभु येशु का पुरागमन कब होगा? प्रेरित पौलुस इस अवसर का लाभ उठाते हुए थिस्‍सलुनीकी कलीसिया के सदस्‍यों से कहते हैं कि वे विश्‍वास और आशा से प्रभु येशु के पुनरागमन की प्रतीक्षा करते हुए अपने व्‍यवसाय-उद्यम में संलग्‍न रहें। यह पत्र नया विधान में संकलित समस्‍त लिखित सामग्री में से सब से पुराना अंश माना जाता है।
विषय-वस्‍तु की रूपरेखा
अभिवादन 1:1
कृतज्ञता और प्रशंसा 1:2−3:13
व्‍यावहारिक उपदेश 4:1-12
पुनरागमन के सम्‍बन्‍ध में निर्देश 4:13−5:11
सद्बोध 5:12-22
उपसंहार 5:23-28

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