1 कुरिन्थियों 14

14
पवित्र आत्‍मा के वरदानों द्वारा आध्‍यात्‍मिक निर्माण
1आप प्रेम की साधना करते रहें। आप आध्‍यात्‍मिक वरदानों की धुन में रहें; किन्‍तु विशेष रूप से नबूवत के वरदान की अभिलाषा किया करें।#1 कुर 12:10,31 2क्‍योंकि जो अध्‍यात्‍म भाषा#14:2 अथवा, “अपरिचित, दिव्‍य भाषा” में बोलता है, वह मनुष्‍यों से नहीं, बल्‍कि परमेश्‍वर से बोलता है। कोई भी उसे नहीं समझता : वह आत्‍मा से प्रेरित होकर रहस्‍यमय बातें करता है। 3किन्‍तु जो नबूवत करता है, वह मनुष्‍यों से आध्‍यात्‍मिक निर्माण, प्रोत्‍साहन और सान्‍त्‍वना की बातें करता है। 4जो अध्‍यात्‍म भाषा में बोलता है, वह अपना ही आध्‍यात्‍मिक निर्माण करता है; किन्‍तु जो नबूवत करता है, वह कलीसिया का आध्‍यात्‍मिक निर्माण करता है। 5मैं तो चाहता हूँ कि आप सब को अध्‍यात्‍म भाषाओं में बोलने का वरदान मिले, किन्‍तु इससे अधिक यह चाहता हूँ कि आप को नबूवत करने का वरदान मिले। यदि अध्‍यात्‍म भाषाओं में बोलने वाला व्यक्‍ति कलीसिया के आध्‍यात्‍मिक निर्माण के लिए उनकी व्‍याख्‍या नहीं करता, तो इसकी अपेक्षा नबूवत करने वाले का महत्व अधिक है।
6भाइयो और बहिनो! मान लीजिए कि मैं आप लोगों के यहाँ आकर अध्‍यात्‍म भाषाओं में बोलूँ और परमेश्‍वर द्वारा प्रकाशित सत्‍य, ज्ञान, नबूवत अथवा शिक्षा न प्रदान करूँ, तो मेरे बोलने से आप को क्‍या लाभ होगा?#गण 11:29 7बाँसुरी या वीणा - जैसे निर्जीव वाद्यों के विषय में भी यही बात है। यदि उनसे उत्‍पन्न स्‍वरों में कोई भेद नहीं है, तो यह कैसे पता चलेगा कि बाँसुरी या वीणा पर क्‍या बजाया जा रहा है? 8यदि तुरही का स्‍वर अस्‍पष्‍ट है, तो कौन अपने को युद्ध के लिए तैयार करेगा? 9आपके विषय में भी यही बात है। यदि आप अध्‍यात्‍म भाषा में बोलते समय सुबोध शब्‍द नहीं बोलते, तो यह कैसे पता चलेगा कि आप क्‍या कह रहे हैं? आप केवल हवा से बातें करेंगे। 10संसार में न जाने कितने प्रकार के शब्‍द हैं और उन में एक भी निरर्थक नहीं है। 11यदि मैं किसी शब्‍द का अर्थ नहीं जानता, तो मैं बोलने वाले के लिए परदेशी हूँ और बोलनेवाला मेरे लिए परदेशी है। 12आप के विषय में भी यही बात है।आप लोग आध्‍यात्‍मिक वरदानों की धुन में रहते हैं; इसलिए ऐसे वरदानों से सम्‍पन्न होने का प्रयत्‍न करें, जो कलीसिया के आध्‍यात्‍मिक निर्माण में सहायक हों।
13अध्‍यात्‍म भाषा में बोलने वाला प्रार्थना करे, जिससे उसको व्‍याख्‍या करने का वरदान भी मिल जाये; 14क्‍योंकि यदि मैं अध्‍यात्‍म भाषा में प्रार्थना करता हूँ, तो मेरी आत्‍मा प्रार्थना करती हैं किन्‍तु मेरी बुद्धि निष्‍क्रिय है। 15तो क्‍या करना चाहिए? मैं अपनी आत्‍मा से प्रार्थना करूँगा और अपनी बुद्धि से भी। मैं अपनी आत्‍मा से गीत गाऊंगा और अपनी बुद्धि से भी।#इफ 5:19 16यदि आप आत्‍मा से आविष्‍ट होकर परमेश्‍वर की स्‍तुति करते हैं, तो वहाँ उपस्‍थित साधारण व्यक्‍ति आपका धन्‍यवाद सुनकर कैसे “आमेन” कह सकता है? वह यह भी नहीं जानता कि आप क्‍या कह रहे हैं। 17आपका धन्‍यवाद भले ही सुन्‍दर हो, किन्‍तु इससे दूसरे व्यक्‍ति का आध्‍यात्‍मिक निर्माण नहीं होता। 18परमेश्‍वर को धन्‍यवाद! मुझे आप सब से अधिक अध्‍यात्‍म भाषाओं में बोलने का वरदान मिला है, 19किन्‍तु अध्‍यात्‍म भाषा में दस हजार शब्‍द बोलने की अपेक्षा मैं दूसरों को शिक्षा देने के लिए धर्मसभा में#14:19 अथवा, “कलीसिया में” अपनी बुद्धि से पाँच शब्‍द बोलना ज्‍यादा पसन्‍द करूँगा।
20भाइयो और बहिनो! सोच-विचार में बच्‍चे मत बनिए। हाँ, बुराई के संबंध में शिशु बने रहिए; किन्‍तु सोच-विचार में पूर्ण सयाने बनिए।#इफ 4:14; इब्र 5:12-13; फिल 3:12,15 21व्‍यवस्‍था में लिखा है, “प्रभु कहता है : मैं अन्‍यभाषा-भाषियों द्वारा विदेशी भाषा में इस प्रजा से बोलूँगा; फिर भी वह मेरी बात पर ध्‍यान नहीं देगी।”#व्‍य 28:49; यश 28:11-12 22इससे स्‍पष्‍ट है कि अध्‍यात्‍म भाषाएँ विश्‍वासियों के लिए नहीं, बल्‍कि अविश्‍वासियों के लिए चिन्‍ह स्‍वरूप हैं और नबूवत अविश्‍वासियों के लिए नहीं, बल्‍कि विश्‍वासियों के लिए है। 23जब सारी कलीसियां सहभागिता के लिए एकत्र है, तब यदि सब लोग अध्‍यात्‍म भाषाओं में बोलने लगें और उस समय कोई अदीिक्षत या अविश्‍वासी व्यक्‍ति भीतर आ जायें, तो क्‍या वे यह नहीं कहेंगे कि आप प्रलाप कर रहे हैं?#प्रे 2:13 24परन्‍तु यदि सब नबूवत करें और कोई अविश्‍वासी या अदीिक्षत व्यक्‍ति भीतर आ जाये, तो वह उनकी बातों से प्रभावित हो कर अपने को पापी समझेगा और अपने अन्‍त:करण की जाँच करेगा।#प्रे 4:13 25उसके हृदय के रहस्‍य प्रकट हो जायेंगे। वह मुँह के बल गिर कर परमेश्‍वर की आराधना करेगा और यह स्‍वीकार करेगा कि परमेश्‍वर सचमुच आप लोगों के बीच विद्यमान है।#यो 4:19; 16:8; यश 45:14; दान 2:47; जक 8:23
धर्मसभा के लिए नियम
26इसका निष्‍कर्ष क्‍या है? हे भाइयो और बहिनो! जब-जब आप आराधना हेतु एकत्र होते हैं, तो कोई भजन सुनाता है, कोई शिक्षा देता है, कोई अपने पर प्रकट किया हुआ सत्‍य बताता है, कोई अध्‍यात्‍म भाषा में बोलता है और कोई उसकी व्‍याख्‍या करता है; किन्‍तु यह सब आध्‍यात्‍मिक निर्माण के लिए होना चाहिए।#1 कुर 11:18; 12:8; इफ 4:12 27जहाँ तक अध्‍यात्‍म भाषाओं में बोलने का प्रश्‍न है, दो या अधिक-से-अधिक तीन व्यक्‍ति बारी-बारी से ऐसा करें और कोई दूसरा व्यक्‍ति इसकी व्‍याख्‍या प्रस्‍तुत करे। 28यदि कोई व्‍याख्‍या करने वाला नहीं हो, तो अध्‍यात्‍म भाषा में बोलने वाला धर्मसभा में चुप रहे। वह अपने से और परमेश्‍वर से बोले।
29नबूवत करने वालों में से दो या तीन बोलें और दूसरे लोग उनकी वाणी की परीक्षा करें।#1 थिस 5:21; प्रे 17:11 30यदि बैठे हुए लोगों में से किसी पर कोई सत्‍य प्रकट किया जाता हो, तो पहला वक्‍ता चुप रहे। 31आप सभी लोग नबूवत कर सकते हैं, किन्‍तु आप एक-एक कर के बोलें, जिससे सब को शिक्षा और प्रोत्‍साहन मिले। 32नबूवत करते समय नबी अपनी आत्‍मा पर नियन्‍त्रण रख सकता है; 33क्‍योंकि परमेश्‍वर अव्‍यवस्‍था का नहीं, वरन शान्‍ति का परमेश्‍वर है।
सन्‍तों की सभी कलीसियाओं की तरह 34आपकी धर्मसभाओं में भी स्‍त्रियाँ चुप रहें। उन्‍हें इस तरह बोलने की अनुमति नहीं दी जाती है। वे आत्‍मनियंत्रित#14:34 अथवा, “अधीनतापूर्वक” रहें, जैसा कि व्‍यवस्‍था भी कहती है।#1 कुर 11:3; तीत 2:5; 1 तिम 5:12; इफ 5:22; उत 3:16 35यदि वे किसी बात की जानकारी प्राप्‍त करना चाहती हैं, तो वे घर में अपने पतियों से पूछें। धर्मसभा में बोलना स्‍त्री के लिए उपयुक्‍त नहीं है।
36क्‍या परमेश्‍वर का वचन आप ही लोगों के यहाँ से फैला, या केवल आप लोगों तक पहुँचा है?
37यदि कोई समझता है कि वह नबूवत या अन्‍य आध्‍यात्‍मिक वरदानों से सम्‍पन्न है, तो वह यह अच्‍छी तरह जान ले कि मैं जो कुछ आप लोगों को लिख रहा हूँ, वह प्रभु का आदेश है।#1 यो 4:6 38यदि कोई यह अस्‍वीकार करता है, तो वह प्रभु द्वारा अस्‍वीकार किया जाता है।#14:38 अथवा, “यदि कोई इसकी उपेक्षा करेगा तो उसकी भी उपेक्षा की जाएगी।”
39मेरे भाइयो और बहिनो! निष्‍कर्ष यह है : आप नबूवत के वरदान की अभिलाषा किया करें और अध्‍यात्‍म भाषाओं में बोलने वालों को न रोकें। 40परन्‍तु सब कुछ उचित और व्‍यवस्‍थित रूप से किया जाये।#कुल 2:5

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