रोमियों 15
15
हमेशा दूसरों का हित सोचें
1हम लोगों को, जो समर्थ हैं, अपनी सुख-सुविधा का नहीं, बल्कि दुर्बलों की कमजोरियों का ध्यान रखना चाहिए। 2हम में प्रत्येक को अपने पड़ोसी की भलाई तथा चरित्र-निर्माण के लिए उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखना चाहिए।#1 कुर 9:19; 10:24,33 3मसीह ने भी अपने सुख का ध्यान नहीं रखा। जैसा कि धर्मग्रंथ में लिखा है, “तेरी निन्दा करने वालों ने मेरी निन्दा की है।”#भज 69:9 4धर्मग्रन्थ में जो कुछ पहले लिखा गया था, वह हमारी शिक्षा के लिए लिखा गया था, ताकि हमें उस से धैर्य तथा सांत्वना मिलती रहे और इस प्रकार हम अपनी आशा बनाये रख सकें।#रोम 4:23-24; 1 कुर 10:11; 1 मक 12:9; 2 मक 15:9 5परमेश्वर ही धैर्य तथा सांत्वना का स्रोत है। वह आप लोगों को यह वरदान दे कि आप येशु मसीह की शिक्षा के अनुसार आपस में मेल-मिलाप का भाव बनाए रखें,#फिल 3:16 6जिससे आप सब मिलकर एक स्वर से हमारे प्रभु येशु मसीह के पिता, परमेश्वर की स्तुति करते रहें।
सब के लिए शुभ संदेश
7जिस प्रकार मसीह ने हमें परमेश्वर की महिमा के लिए अपनाया, उसी प्रकार आप एक-दूसरे को भ्रातृभाव से अपनायें। 8मैं यह कहना चाहता हूँ कि मसीह यहूदियों के सेवक इसलिए बने कि वह, पूर्वजों को दी गयी प्रतिज्ञाएँ पूरी कर, परमेश्वर की सत्यप्रतिज्ञता प्रमाणित करें#मत 15:24; प्रे 3:25 9और इसलिए भी कि गैर-यहूदी, परमेश्वर की दया प्राप्त कर, उसकी स्तुति करें। जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है, “इस कारण मैं अन्य-जातियों के बीच तेरी स्तुति करूँगा और तेरे नाम की महिमा का गीत गाऊंगा।”#रोम 11:30; भज 18:49; 2 शम 22:50 10धर्मग्रन्थ यह भी कहता है, “ओ राष्ट्रो! परमेश्वर की प्रजा के साथ आनन्द मनाओ।”#व्य 32:43 11और फिर यह, “हे समस्त राष्ट्रो! प्रभु की स्तुति करो। सभी जातियाँ प्रभु की स्तुति करें।”#भज 117:1 12और नबी यशायाह भी यह कहते हैं, “यिशय का वंश-मूल प्रकट होगा, राष्ट्रों पर शासन करने के लिए उसका उत्थान होगा और राष्ट्र उसी की आशा करेंगे।”#यश 11:10 (यू. पाठ); प्रक 5:5
13आशा का स्रोत, परमेश्वर आप लोगों को विश्वास द्वारा प्रचुर आनन्द और शान्ति प्रदान करे, जिससे पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से आप लोगों की आशा परिपूर्ण हो।
पौलुस की धर्मसेवा
14मेरे भाइयो और बहिनो! मुझे दृढ़ विश्वास है कि आप लोग, सद्भाव और हर प्रकार के ज्ञान से परिपूर्ण हो कर, एक-दूसरे को सत्परामर्श देने योग्य हैं। 15फिर भी कुछ बातों का स्मरण दिलाने के लिए मैंने आप को निस्संकोच हो कर लिखा है। परमेश्वर से मुझे यह अनुग्रह मिला#रोम 1:5; 12:3 16कि मैं, गैर-यहूदियों को लिए येशु मसीह का जन्म-सेवक बनकर, परमेश्वर के शुभ समाचार की सेवा पुरोहित के रूप में करूँ, जिससे गैर-यहूदी, पवित्र आत्मा द्वारा पवित्र किये जाने के बाद, परमेश्वर को अर्पित और सुग्राह्य हो जायें।#रोम 11:13; फिल 2:17
17इसलिए मैं येशु मसीह के कारण ही परमेश्वर की सेवा पर गौरव कर सकता हूँ। 18मैं केवल उन बातों की चर्चा करने का साहस करूँगा, जिन्हें मसीह ने गैर-यहूदियों को विश्वास की अधीनता स्वीकार करने के लिए मेरे द्वारा वचन और कर्म से,#2 कुर 3:5 19शक्तिशाली चिह्नों और चमत्कारों से और परमेश्वर के आत्मा के सामर्थ्य से सम्पन्न किया है। मैंने यरूशलेम और उसके आसपास के प्रदेश से ले कर इल्लुरिकुम तक मसीह के शुभ-समाचार का प्रचार-कार्य पूरा किया है।#मक 16:17 20इस में मैंने एक बात का विशेष ध्यान रखा। मैंने कभी वहां शुभसमाचार का प्रचार नहीं किया, जहाँ मसीह का नाम सुनाया जा चुका था; क्योंकि मैं दूसरों द्वारा डाली हुई नींव पर निर्माण करना नहीं चाहता था,#2 कुर 10:15-16 21बल्कि धर्मग्रन्थ का यह कथन पूरा करना चाहता था, “जिन्हें कभी उसका सन्देश नहीं मिला था, वे उसके दर्शन करेंगे और जिन्होंने कभी उसके विषय में नहीं सुना, वे समझेंगे।”#यश 52:15 (यू. पाठ)
पौलुस की भावी योजना
22यही कारण है कि अब तक आप लोगों के यहाँ मेरे आगमन में बराबर बाधा पड़ी है।#रोम 1:10-13 23अब तो इधर के प्रदेशों में मेरा कोई कार्यक्षेत्र नहीं रहा और मैं कई वर्षों से चाह रहा हूँ कि 24स्पेन देश जाते समय आप लोगों के यहाँ आऊं। मुझे आशा है कि मैं उस यात्रा में आप लोगों के दर्शन करूँगा और कुछ समय तक आपकी संगति का लाभ उठाने के बाद आप लोगों की सहायता से स्पेन की यात्रा कर सकूँगा।#1 कुर 16:6 25मैं अब सन्तों की सेवा में यरूशलेम जा रहा हूँ।#प्रे 19:21; 20:22 26क्योंकि मकिदुनिया तथा यूनान की कलीसियाओं ने यह शुभ संकल्प किया है कि वे सहभागिता के रूप में यरूशलेम के गरीब संतों के लिए कुछ सहायता भेजें।#1 कुर 16:1; 2 कुर 8:1; 9:2,12
27उनका यह संकल्प उचित ही है—वास्तव में वे यरूशलेम के सन्तों के ऋणी भी हैं, क्योंकि यदि गैर-यहूदी लोग यहूदियों की आध्यात्मिक सम्पत्ति के भागी बने, तो गैर-यहूदियों को अपनी लौकिक सम्पत्ति से उनकी सार्वजनिक सेवा करना चाहिए।#रोम 9:4; 1 कुर 9:11 28यह कार्य समाप्त कर, अर्थात् यह दान विधिवत् उनके हाथों मैं सौंपने के बाद#15:28 अक्षरश:, “यह फल मुद्रांकित करने के बाद”, मैं आप लोगों के यहाँ हो कर स्पेन जाऊंगा। 29मुझे विश्वास है कि जब मैं आपके यहाँ आऊंगा, तो मसीह का परिपूर्ण आशीर्वाद लिये आऊंगा।#रोम 1:11
30भाइयो और बहिनो! हमारे प्रभु येशु मसीह और पवित्र आत्मा के प्रेम के नाम पर मैं आप लोगों से अनुरोध करता हूँ कि आप मेरे लिए परमेश्वर से संघर्षमय प्रार्थना करने में मेरा साथ देते रहें,#2 कुर 1:11; फिल 1:27; कुल 4:3; 2 थिस 3:1 31जिससे मैं यहूदा प्रदेश के अविश्वासियों से बचा रहूँ और जिस सेवा-कार्य के लिए मैं यरूशलेम जा रहा हूँ, वह वहाँ के संतों को सुग्राह्य हो 32और मैं आनन्द के साथ आप लोगों के यहाँ पहुँच कर परमेश्वर की इच्छानुसार आप लोगों की संगति में विश्राम कर सकूँ। 33शान्ति का परमेश्वर आप सब के साथ रहे। आमेन!
Àwon tá yàn lọ́wọ́lọ́wọ́ báyìí:
रोमियों 15: HINCLBSI
Ìsàmì-sí
Pín
Daako
Ṣé o fẹ́ fi àwọn ohun pàtàkì pamọ́ sórí gbogbo àwọn ẹ̀rọ rẹ? Wọlé pẹ̀lú àkántì tuntun tàbí wọlé pẹ̀lú àkántì tí tẹ́lẹ̀
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
Copyright © Bible Society of India, 2015.
Used by permission. All rights reserved worldwide.
रोमियों 15
15
हमेशा दूसरों का हित सोचें
1हम लोगों को, जो समर्थ हैं, अपनी सुख-सुविधा का नहीं, बल्कि दुर्बलों की कमजोरियों का ध्यान रखना चाहिए। 2हम में प्रत्येक को अपने पड़ोसी की भलाई तथा चरित्र-निर्माण के लिए उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखना चाहिए।#1 कुर 9:19; 10:24,33 3मसीह ने भी अपने सुख का ध्यान नहीं रखा। जैसा कि धर्मग्रंथ में लिखा है, “तेरी निन्दा करने वालों ने मेरी निन्दा की है।”#भज 69:9 4धर्मग्रन्थ में जो कुछ पहले लिखा गया था, वह हमारी शिक्षा के लिए लिखा गया था, ताकि हमें उस से धैर्य तथा सांत्वना मिलती रहे और इस प्रकार हम अपनी आशा बनाये रख सकें।#रोम 4:23-24; 1 कुर 10:11; 1 मक 12:9; 2 मक 15:9 5परमेश्वर ही धैर्य तथा सांत्वना का स्रोत है। वह आप लोगों को यह वरदान दे कि आप येशु मसीह की शिक्षा के अनुसार आपस में मेल-मिलाप का भाव बनाए रखें,#फिल 3:16 6जिससे आप सब मिलकर एक स्वर से हमारे प्रभु येशु मसीह के पिता, परमेश्वर की स्तुति करते रहें।
सब के लिए शुभ संदेश
7जिस प्रकार मसीह ने हमें परमेश्वर की महिमा के लिए अपनाया, उसी प्रकार आप एक-दूसरे को भ्रातृभाव से अपनायें। 8मैं यह कहना चाहता हूँ कि मसीह यहूदियों के सेवक इसलिए बने कि वह, पूर्वजों को दी गयी प्रतिज्ञाएँ पूरी कर, परमेश्वर की सत्यप्रतिज्ञता प्रमाणित करें#मत 15:24; प्रे 3:25 9और इसलिए भी कि गैर-यहूदी, परमेश्वर की दया प्राप्त कर, उसकी स्तुति करें। जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है, “इस कारण मैं अन्य-जातियों के बीच तेरी स्तुति करूँगा और तेरे नाम की महिमा का गीत गाऊंगा।”#रोम 11:30; भज 18:49; 2 शम 22:50 10धर्मग्रन्थ यह भी कहता है, “ओ राष्ट्रो! परमेश्वर की प्रजा के साथ आनन्द मनाओ।”#व्य 32:43 11और फिर यह, “हे समस्त राष्ट्रो! प्रभु की स्तुति करो। सभी जातियाँ प्रभु की स्तुति करें।”#भज 117:1 12और नबी यशायाह भी यह कहते हैं, “यिशय का वंश-मूल प्रकट होगा, राष्ट्रों पर शासन करने के लिए उसका उत्थान होगा और राष्ट्र उसी की आशा करेंगे।”#यश 11:10 (यू. पाठ); प्रक 5:5
13आशा का स्रोत, परमेश्वर आप लोगों को विश्वास द्वारा प्रचुर आनन्द और शान्ति प्रदान करे, जिससे पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से आप लोगों की आशा परिपूर्ण हो।
पौलुस की धर्मसेवा
14मेरे भाइयो और बहिनो! मुझे दृढ़ विश्वास है कि आप लोग, सद्भाव और हर प्रकार के ज्ञान से परिपूर्ण हो कर, एक-दूसरे को सत्परामर्श देने योग्य हैं। 15फिर भी कुछ बातों का स्मरण दिलाने के लिए मैंने आप को निस्संकोच हो कर लिखा है। परमेश्वर से मुझे यह अनुग्रह मिला#रोम 1:5; 12:3 16कि मैं, गैर-यहूदियों को लिए येशु मसीह का जन्म-सेवक बनकर, परमेश्वर के शुभ समाचार की सेवा पुरोहित के रूप में करूँ, जिससे गैर-यहूदी, पवित्र आत्मा द्वारा पवित्र किये जाने के बाद, परमेश्वर को अर्पित और सुग्राह्य हो जायें।#रोम 11:13; फिल 2:17
17इसलिए मैं येशु मसीह के कारण ही परमेश्वर की सेवा पर गौरव कर सकता हूँ। 18मैं केवल उन बातों की चर्चा करने का साहस करूँगा, जिन्हें मसीह ने गैर-यहूदियों को विश्वास की अधीनता स्वीकार करने के लिए मेरे द्वारा वचन और कर्म से,#2 कुर 3:5 19शक्तिशाली चिह्नों और चमत्कारों से और परमेश्वर के आत्मा के सामर्थ्य से सम्पन्न किया है। मैंने यरूशलेम और उसके आसपास के प्रदेश से ले कर इल्लुरिकुम तक मसीह के शुभ-समाचार का प्रचार-कार्य पूरा किया है।#मक 16:17 20इस में मैंने एक बात का विशेष ध्यान रखा। मैंने कभी वहां शुभसमाचार का प्रचार नहीं किया, जहाँ मसीह का नाम सुनाया जा चुका था; क्योंकि मैं दूसरों द्वारा डाली हुई नींव पर निर्माण करना नहीं चाहता था,#2 कुर 10:15-16 21बल्कि धर्मग्रन्थ का यह कथन पूरा करना चाहता था, “जिन्हें कभी उसका सन्देश नहीं मिला था, वे उसके दर्शन करेंगे और जिन्होंने कभी उसके विषय में नहीं सुना, वे समझेंगे।”#यश 52:15 (यू. पाठ)
पौलुस की भावी योजना
22यही कारण है कि अब तक आप लोगों के यहाँ मेरे आगमन में बराबर बाधा पड़ी है।#रोम 1:10-13 23अब तो इधर के प्रदेशों में मेरा कोई कार्यक्षेत्र नहीं रहा और मैं कई वर्षों से चाह रहा हूँ कि 24स्पेन देश जाते समय आप लोगों के यहाँ आऊं। मुझे आशा है कि मैं उस यात्रा में आप लोगों के दर्शन करूँगा और कुछ समय तक आपकी संगति का लाभ उठाने के बाद आप लोगों की सहायता से स्पेन की यात्रा कर सकूँगा।#1 कुर 16:6 25मैं अब सन्तों की सेवा में यरूशलेम जा रहा हूँ।#प्रे 19:21; 20:22 26क्योंकि मकिदुनिया तथा यूनान की कलीसियाओं ने यह शुभ संकल्प किया है कि वे सहभागिता के रूप में यरूशलेम के गरीब संतों के लिए कुछ सहायता भेजें।#1 कुर 16:1; 2 कुर 8:1; 9:2,12
27उनका यह संकल्प उचित ही है—वास्तव में वे यरूशलेम के सन्तों के ऋणी भी हैं, क्योंकि यदि गैर-यहूदी लोग यहूदियों की आध्यात्मिक सम्पत्ति के भागी बने, तो गैर-यहूदियों को अपनी लौकिक सम्पत्ति से उनकी सार्वजनिक सेवा करना चाहिए।#रोम 9:4; 1 कुर 9:11 28यह कार्य समाप्त कर, अर्थात् यह दान विधिवत् उनके हाथों मैं सौंपने के बाद#15:28 अक्षरश:, “यह फल मुद्रांकित करने के बाद”, मैं आप लोगों के यहाँ हो कर स्पेन जाऊंगा। 29मुझे विश्वास है कि जब मैं आपके यहाँ आऊंगा, तो मसीह का परिपूर्ण आशीर्वाद लिये आऊंगा।#रोम 1:11
30भाइयो और बहिनो! हमारे प्रभु येशु मसीह और पवित्र आत्मा के प्रेम के नाम पर मैं आप लोगों से अनुरोध करता हूँ कि आप मेरे लिए परमेश्वर से संघर्षमय प्रार्थना करने में मेरा साथ देते रहें,#2 कुर 1:11; फिल 1:27; कुल 4:3; 2 थिस 3:1 31जिससे मैं यहूदा प्रदेश के अविश्वासियों से बचा रहूँ और जिस सेवा-कार्य के लिए मैं यरूशलेम जा रहा हूँ, वह वहाँ के संतों को सुग्राह्य हो 32और मैं आनन्द के साथ आप लोगों के यहाँ पहुँच कर परमेश्वर की इच्छानुसार आप लोगों की संगति में विश्राम कर सकूँ। 33शान्ति का परमेश्वर आप सब के साथ रहे। आमेन!
Àwon tá yàn lọ́wọ́lọ́wọ́ báyìí:
:
Ìsàmì-sí
Pín
Daako
Ṣé o fẹ́ fi àwọn ohun pàtàkì pamọ́ sórí gbogbo àwọn ẹ̀rọ rẹ? Wọlé pẹ̀lú àkántì tuntun tàbí wọlé pẹ̀lú àkántì tí tẹ́lẹ̀
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
Copyright © Bible Society of India, 2015.
Used by permission. All rights reserved worldwide.