ईन्दें गाशी संत्त-पतरस ऐ बुलो, के “ओ हनन्याह! कियो शैतान ऐ तेरे मंन गाशी ऐत्रा हंक-अधिकार करा, के तुऐ पबित्र-आत्त्मा शो झुठो बुलो; अरह् जुण्जे जीम्मीं तुऐं बीकी तिन्दें के दाँम किम्मत्त मुँझ़्शो तुऐ किऐ धन चुप्पी आपु कैई थुओ? कियों बीक्णों शी आगे सेजी जीम्मी तेरे आप्णी थी ने? अरह् जबे तुँऐं तियों जिम्मीं बिकी पाऐ, तअ कियों सेजो धंन तेरो थी ने? तअ तबे तुऐं ऐष्णें काँम कर्णों का बिचार ही कैई आप्णें मंन दा करा? के आदमी शो नें; परह् पंण्मिश्वर शो झूठों बुलू।” हनन्याह, ऐजी बातो शुँण्दें ही धनियों पड़ा अरह् तेने आप्णें पराँण छुड़ी दिते, तबे बादे शुँण्णों वाल़े बैजाऐ डरी गुऐ।