भजन संहिता 40:1-5

भजन संहिता 40:1-5 - मैं धीरज से यहोवा की बाट जोहता रहा;
और उसने मेरी ओर झुककर मेरी
दोहाई सुनी।
उसने मुझे सत्यानाश के गड़हे और दलदल
की कीच में से उबारा,
और मुझ को चट्टान पर खड़ा करके मेरे पैरों
को दृढ़ किया है।
उसने मुझे एक नया गीत सिखाया जो हमारे
परमेश्‍वर की स्तुति का है।
बहुतेरे यह देखकर डरेंगे,
और यहोवा पर भरोसा रखेंगे।

क्या ही धन्य है वह पुरुष, जो यहोवा
पर भरोसा करता है,
और अभिमानियों और मिथ्या की ओर
मुड़नेवालों की ओर मुँह न फेरता हो।
हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, तू ने बहुत से
काम किए हैं!
जो आश्‍चर्यकर्म और कल्पनाएँ तू हमारे लिये
करता है वह बहुत सी हैं;
तेरे तुल्य कोई नहीं!
मैं तो चाहता हूँ कि खोलकर उनकी
चर्चा करूँ,
परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती।

मैं धीरज से यहोवा की बाट जोहता रहा; और उसने मेरी ओर झुककर मेरी दोहाई सुनी। उसने मुझे सत्यानाश के गड़हे और दलदल की कीच में से उबारा, और मुझ को चट्टान पर खड़ा करके मेरे पैरों को दृढ़ किया है। उसने मुझे एक नया गीत सिखाया जो हमारे परमेश्‍वर की स्तुति का है। बहुतेरे यह देखकर डरेंगे, और यहोवा पर भरोसा रखेंगे। क्या ही धन्य है वह पुरुष, जो यहोवा पर भरोसा करता है, और अभिमानियों और मिथ्या की ओर मुड़नेवालों की ओर मुँह न फेरता हो। हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, तू ने बहुत से काम किए हैं! जो आश्‍चर्यकर्म और कल्पनाएँ तू हमारे लिये करता है वह बहुत सी हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं! मैं तो चाहता हूँ कि खोलकर उनकी चर्चा करूँ, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती।

भजन संहिता 40:1-5

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