नीतिवचन 18:1-8

नीतिवचन 18:1-8 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

जो दूसरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है, और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है। मूर्ख का मन समझ की बातों में नहीं लगता, वह केवल अपने मन की बात प्रगट करना चाहता है। जहाँ दुष्‍टता आती, वहाँ अपमान भी आता है; और निरादर के साथ निन्दा आती है। मनुष्य के मुँह के वचन गहिरा जल; और उमण्डनेवाली नदी बुद्धि के सोते हैं। दुष्‍ट का पक्ष करना, और धर्मी का हक़ मारना, अच्छा नहीं है। बात बढ़ाने से मूर्ख मुक़द्दमा खड़ा करता है, और अपने को मार खाने के योग्य दिखाता है। मूर्ख का विनाश उसकी बातों से होता है, और उसके वचन उसके प्राण के लिये फन्दे होते हैं। कानाफूसी करनेवाले के वचन स्वादिष्‍ट भोजन के समान लगते हैं; वे पेट में पच जाते हैं।

नीतिवचन 18:1-8 पवित्र बाइबल (HERV)

मित्रता रहित व्यक्ति अपने स्वार्थ साधता है। वह समझदारी की बातें नकार देता है। मूर्ख सुख वह शेखचिल्ली बनने में लेता है। सोचता नहीं है कभी वे पूर्ण होंगी या नहीं। सुख उसे समझदारी के बातें नहीं देती। दुष्टता के साथ—साथ घृणा भी आती है और निन्दा के साथ अपमान। बुद्धिमान के शब्द गहरे जल से होते हैं, वे बुद्धि के स्रोत से उछलते हुए आते हैं। दुष्ट जन का पक्ष लेना और निर्दोष को न्याय से वंचित रखना उचित नहीं होता। मूर्ख की वाणी झंझटों को जन्म देती है और उसका मुख झगड़ों को न्योता देता है। मूर्ख का मुख उसका काम को बिगाड़ देता है और उसके अपने ही होठों के जाल में उसका प्राण फँस जाता है। लोग हमेशा कानाफूसी करना चाहते हैं, यह उत्तम भोजन के समान है जो पेट के भीतर उतरता चला जाता है।

नीतिवचन 18:1-8 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

अलग-अलग रहनेवाला अपने ही स्‍वार्थ की चिन्‍ता करता है, वह बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णयों का विरोध करता है। मूर्ख मनुष्‍य का मन समझ की बातों में नहीं लगता; वह सदा अपनी ही राय प्रकट करता है। जब बुराई आती है तब उसके साथ अपमान भी आता है। अनादर के साथ निन्‍दा का आगमन होता है। बुद्धिमान मनुष्‍य के मुख से निकले हुए वचन समुद्र के समान गहरे होते हैं, वे ज्ञान के स्रोत, और उमड़ते हुए झरने के सदृश होते हैं। दुर्जन का पक्ष लेना, और धार्मिक मनुष्‍य के साथ न्‍याय न करना अनुचित है। मूर्ख की बातें लड़ाई-झगड़ा पैदा करती हैं, उसके वचन मार-पीट को निमंत्रण देते हैं। मूर्ख का मुंह ही उसके विनाश का कारण है, उसके ओंठ ही उसको जाल में फंसाते हैं। कान भरनेवाले की बातें स्‍वादिष्‍ट भोजन की तरह लगती हैं; वे पेट में हजम हो जाती हैं।

नीतिवचन 18:1-8 Hindi Holy Bible (HHBD)

जो औरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है, और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है। मूर्ख का मन समझ की बातों में नहीं लगता, वह केवल अपने मन की बात प्रगट करना चाहता है। जहां दुष्ट आता, वहां अपमान भी आता है; और निन्दित काम के साथ नामधराई होती है। मनुष्य के मुंह के वचन गहिरा जल, वा उमण्डने वाली नदी वा बुद्धि के सोते हैं। दुष्ट का पक्ष करना, और धर्मी का हक मारना, अच्छा नहीं है। बात बढ़ाने से मूर्ख मुकद्दमा खड़ा करता है, और अपने को मार खाने के योग्य दिखाता है। मूर्ख का विनाश उस की बातों से होता है, और उसके वचन उस के प्राण के लिये फन्दे होते हैं। कानाफूसी करने वाले के वचन स्वादिष्ट भोजन की नाईं लगते हैं; वे पेट में पच जाते हैं।

नीतिवचन 18:1-8 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

जो दूसरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है, और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है। मूर्ख का मन समझ की बातों में नहीं लगता, वह केवल अपने मन की बात प्रगट करना चाहता है। जहाँ दुष्टता आती, वहाँ अपमान भी आता है; और निरादर के साथ निन्दा आती है। मनुष्य के मुँह के वचन गहरे जल होते है; बुद्धि का स्रोत बहती धारा के समान हैं। दुष्ट का पक्ष करना, और धर्मी का हक़ मारना, अच्छा नहीं है। बात बढ़ाने से मूर्ख मुकद्दमा खड़ा करता है, और अपने को मार खाने के योग्य दिखाता है। मूर्ख का विनाश उसकी बातों से होता है, और उसके वचन उसके प्राण के लिये फंदे होते हैं। कानाफूसी करनेवाले के वचन स्वादिष्ट भोजन के समान लगते हैं; वे पेट में पच जाते हैं।

नीतिवचन 18:1-8 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

जिसने स्वयं को समाज से अलग कर लिया है, वह अपनी ही अभिलाषाओं की पूर्ति में संलिप्‍त रहता है, वह हर प्रकार की प्रामाणिक बुद्धिमत्ता को त्याग चुका है. विवेकशीलता में मूर्ख की कोई रुचि नहीं होती. उसे तो मात्र अपने ही विचार व्यक्त करने की धुन रहती है. जैसे ही दृष्टि का प्रवेश होता है, घृणा भी साथ साथ चली आती है, वैसे ही अपमान के साथ साथ निर्लज्जता भी. मनुष्य के मुख से बोले शब्द गहन जल समान होते हैं, और ज्ञान का सोता नित प्रवाहित उमड़ती नदी समान. दुष्ट का पक्ष लेना उपयुक्त नहीं और न धर्मी को न्याय से वंचित रखना. मूर्खों का वार्तालाप कलह का प्रवेश है, उनके मुंह की बातें उनकी पिटाई की न्योता देती हैं. मूर्खों के मुख ही उनके विनाश का हेतु होता हैं, उनके ओंठ उनके प्राणों के लिए फंदा सिद्ध होते हैं. फुसफुसाहट में उच्चारे गए शब्द स्वादिष्ट भोजन-समान होते हैं; ये शब्द मनुष्य के पेट में समा जाते हैं.

नीतिवचन 18:1-8

नीतिवचन 18:1-8 HINCLBSI

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