अय्‍यूब 38:4-21

अय्‍यूब 38:4-21 पवित्र बाइबल (HERV)

अय्यूब, बताओ तुम कहाँ थे, जब मैंने पृथ्वी की रचना की थी? यदि तू इतना समझदार है तो मुझे उत्तर दे। अय्यूब, इस संसार का विस्तार किसने निश्चित किया था? किसने संसार को नापने के फीते से नापा? इस पृथ्वी की नींव किस पर रखी गई है? किसने पृथ्वी की नींव के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पत्थर को रखा है? जब ऐसा किया था तब भोर के तारों ने मिलकर गया और स्वर्गदूत ने प्रसन्न होकर जयजयकार किया। “अय्यूब, जब सागर धरती के गर्भ से फूट पड़ा था, तो किसने उसे रोकने के लिये द्वार को बन्द किया था। उस समय मैंने बादलों से समुद्र को ढक दिया और अन्धकार में सागर को लपेट दिया था (जैसे बालक को चादर में लपेटा जाता है।) सागर की सीमाऐं मैंने निश्चित की थीं और उसे ताले लगे द्वारों के पीछे रख दिया था। मैंने सागर से कहा, ‘तू यहाँ तक आ सकता है किन्तु और अधिक आगे नहीं। तेरी अभिमानी लहरें यहाँ तक रुक जायेंगी।’ “अय्यूब, क्या तूने कभी अपनी जीवन में भोर को आज्ञा दी है उग आने और दिन को आरम्भ करने की? अय्यूब, क्या तूने कभी प्रात: के प्रकाश को धरती पर छा जाने को कहा है और क्या कभी उससे दुष्टों के छिपने के स्थान को छोड़ने के लिये विवश करने को कहा है प्रात: का प्रकाश पहाड़ों व घाटियों को देखने लायक बना देता है। जब दिन का प्रकाश धरती पर आता है तो उन वस्तुओं के रूप वस्त्र की सलवटों की तरह उभर कर आते हैं। वे स्थान रूप को नम मिट्टी की तरह जो दबोई गई मुहर की ग्रहण करते हैं। दुष्ट लोगों को दिन का प्रकाश अच्छा नहीं लगता क्योंकि जब वह चमचमाता है, तब वह उनको बुरे काम करने से रोकता है। “अय्यूब, बता क्या तू कभी सागर के गहरे तल में गया है? जहाँ से सागर शुरु होता है क्या तू कभी सागर के तल पर चला है? अय्यूब, क्या तूने कभी उस फाटकों को देखा है, जो मृत्यु लोक को ले जाते हैं? क्या तूने कभी उस फाटकों को देखा जो उस मृत्यु के अन्धेरे स्थान को ले जाते हैं? अय्यूब, तू जानता है कि यह धरती कितनी बड़ी है? यदि तू ये सब कुछ जानता है, तो तू मुझकों बता दे। “अय्यूब, प्रकाश कहाँ से आता है? और अन्धकार कहाँ से आता है? अय्यूब, क्या तू प्रकाश और अन्धकार को ऐसी जगह ले जा सकता है जहाँ से वे आये है? जहाँ वे रहते हैं। वहाँ पर जाने का मार्ग क्या तू जानता है? अय्यूब, मुझे निश्चय है कि तुझे सारी बातें मालूम हैं? क्योंकि तू बहुत ही बूढ़ा और बुद्धिमान है। जब वस्तुऐं रची गई थी तब तू वहाँ था।

अय्‍यूब 38:4-21 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

‘जब मैंने पृथ्‍वी की नींव डाली थी तब तू कहाँ था? यदि तू स्‍वयं को समझदार समझता है तो तू मेरे इस प्रश्‍न का उत्तर दे। पृथ्‍वी के सीमान्‍तों को किसने निश्‍चित् किया है? डोरी से उसको किसने नापा है? क्‍या तू यह जानता है? उसका आधार किस पर रखा गया है? उसके कोने का पत्‍थर किसने रखा है? उस समय प्रभात के तारों ने गीत गाया था; ईश-पुत्रों ने जय-जयकार किया था। ‘जब समुद्र गर्भ से फूट पड़ा था तब किसने द्वार बन्‍द किया और उसको रोका था? जब मैंने उसको बादलों का वस्‍त्र पहनाया था, और उसको लपेटने के लिए घोर-अन्‍धकार की पटियां बनाई थीं, जब मैंने उसकी सीमाएं निश्‍चित् की थीं, और उसमें बेंड़ें और दरवाजे लगाए थे, और समुद्र को यह आदेश दिया था, “तू यहाँ तक आ सकेगा, इससे आगे नहीं! तेरी उमड़नेवाली लहरें यहाँ ठहर जाएंगी।” ‘क्‍या तूने कभी अपने जीवन-काल में भोर को आदेश दिया, और उषा को उसका स्‍थान बताया है, कि वह पृथ्‍वी के छोर तक फैल जाए, और दुर्जन उसको देखकर भाग जाए? तब वह ऐसी बदल जाती है जैसे मोहर के नीचे की चिकनी मिट्टी! वह वस्‍त्र के समान रंगी जाती है। दुर्जनों से उनका प्रकाश छीन लिया जाता है; हिंसा के लिए उठे हुए हाथ तोड़ दिए जाते हैं। ‘क्‍या तूने कभी समुद्र के स्रोतों में प्रवेश किया है? क्‍या तूने अथाह सागर की गहराई में विचरण किया है? क्‍या कभी मृत्‍यु के द्वार तेरे लिए खोले गए? क्‍या तूने सघन अन्‍धकार के दरवाजों को देखा है? क्‍या तूने पृथ्‍वी के विस्‍तार को समझ लिया है? अय्‍यूब, यदि तू इन प्रश्‍नों के उत्तर जानता है तो मुझे बता। जहाँ प्रकाश रहता है, वहाँ जानेवाला मार्ग कहाँ है? अन्‍धकार का निवास-स्‍थान कहाँ है? तब तू उनको उनके स्‍थान पर ले जा सकेगा; उनके घर को जानेवाले मार्ग पर उनको ले जा सकेगा। क्‍यों? तू तो यह सब जानता ही होगा; क्‍योंकि उस समय तेरा जन्‍म हो चुका था! तेरी आयु तो करोड़ों वर्ष की है न?

अय्‍यूब 38:4-21 Hindi Holy Bible (HHBD)

जब मैं ने पृथ्वी की नेव डाली, तब तू कहां था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे। उसकी नाप किस ने ठहराई, क्या तू जानता है उस पर किस ने सूत खींचा? उसकी नेव कौन सी वस्तु पर रखी गई, वा किस ने उसके कोने का पत्थर बिठाया, जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे? फिर जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला, तब किस ने द्वार मूंदकर उसको रोक दिया; जब कि मैं ने उसको बादल पहिनाया और घोर अन्धकार में लपेट दिया, और उसके लिये सिवाना बान्धा और यह कहकर बेंड़े और किवाड़े लगा दिए, कि यहीं तक आ, और आगे न बढ़, और तेरी उमंडने वाली लहरें यहीं थम जाएं? क्या तू ने जीवन भर में कभी भोर को आज्ञा दी, और पौ को उसका स्थान जताया है, ताकि वह पृथ्वी की छोरों को वश में करे, और दुष्ट लोग उस में से झाड़ दिए जाएं? वह ऐसा बदलता है जैसा मोहर के नीचे चिकनी मिट्टी बदलती है, और सब वस्तुएं मानो वस्त्र पहिने हुए दिखाई देती हैं। दुष्टों से उनका उजियाला रोक लिया जाता है, और उनकी बढ़ाई हुई बांह तोड़ी जाती है। क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुंचा है, वा गहिरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है? क्या मृत्यु के फाटक तुझ पर प्रगट हुए, क्या तू घोर अन्धकार के फाटकों को कभी देखन पाया है? क्या तू ने पृथ्वी की चौड़ाई को पूरी रीति से समझ लिया है? यदि तू यह सब जानता है, तो बतला दे। उजियाले के निवास का मार्ग कहां है, और अन्धियारे का स्थान कहां है? क्या तू उसे उसके सिवाने तक हटा सकता है, और उसके घर की डगर पहिचान सकता है? नि:सन्देह तू यह सब कुछ जानता होगा! क्योंकि तू तो उस समय उत्पन्न हुआ था, और तू बहुत आयु का है।

अय्‍यूब 38:4-21 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

“जब मैं ने पृथ्वी की नींव डाली, तब तू कहाँ था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे। उसकी नाप किसने ठहराई, क्या तू जानता है! उस पर किसने सूत खींचा? उसकी नींव कौन सी वस्तु पर रखी गई, या किसने उसके कोने का पत्थर बिठाया, जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्‍वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे? “फिर जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला, तब किसने द्वार बन्द कर के उसको रोक दिया; जब कि मैं ने उसको बादल पहिनाया और घोर अन्धकार में लपेट दिया, और उसके लिये सीमा बाँधी, और यह कहकर बेंड़े और किवाड़ें लगा दिए, ‘यहीं तक आ, और आगे न बढ़, और तेरी उमंडनेवाली लहरें यहीं थम जाएँ’? “क्या तू ने अपने जीवन में कभी भोर को आज्ञा दी, और पौ को उसका स्थान जताया है, ताकि वह पृथ्वी के छोर को वश में करे, और दुष्‍ट लोग उसमें से झाड़ दिए जाएँ? वह ऐसा बदलता है जैसा मोहर के नीचे चिकनी मिट्टी बदलती है, और सब वस्तुएँ मानो वस्त्र पहिने हुए दिखाई देती हैं। दुष्‍टों से उनका उजियाला रोक लिया जाता है, और उनकी बढ़ाई हुई बाँह तोड़ी जाती है। “क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुँचा है, या गहिरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है? क्या मृत्यु के फाटक तुझ पर प्रगट हुए? क्या तू घोर अन्धकार के फाटकों को कभी देखने पाया है? क्या तू ने पृथ्वी की चौड़ाई को पूरी रीति से समझ लिया है? यदि तू यह सब जानता है, तो बतला दे। “उजियाले के निवास का मार्ग कहाँ है, और अन्धियारे का स्थान कहाँ है? क्या तू उसे उसकी सीमा तक हटा सकता है, और उसके घर की डगर पहिचान सकता है? नि:सन्देह तू यह सब कुछ जानता होगा! क्योंकि तू तो उस समय उत्पन्न हो चुका था, और तू बहुत आयु का है।

अय्‍यूब 38:4-21 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

“जब मैंने पृथ्वी की नींव डाली, तब तू कहाँ था? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे। उसकी नाप किसने ठहराई, क्या तू जानता है उस पर किसने सूत खींचा? उसकी नींव कौन सी वस्तु पर रखी गई, या किसने उसके कोने का पत्थर बैठाया, जबकि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे? “फिर जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला, तब किसने द्वार बन्द कर उसको रोक दिया; जबकि मैंने उसको बादल पहनाया और घोर अंधकार में लपेट दिया, और उसके लिये सीमा बाँधा और यह कहकर बेंड़े और किवाड़ें लगा दिए, ‘यहीं तक आ, और आगे न बढ़, और तेरी उमड़नेवाली लहरें यहीं थम जाएँ।’ “क्या तूने जीवन भर में कभी भोर को आज्ञा दी, और पौ को उसका स्थान जताया है, ताकि वह पृथ्वी की छोरों को वश में करे, और दुष्ट लोग उसमें से झाड़ दिए जाएँ? वह ऐसा बदलता है जैसा मोहर के नीचे चिकनी मिट्टी बदलती है, और सब वस्तुएँ मानो वस्त्र पहने हुए दिखाई देती हैं। दुष्टों से उनका उजियाला रोक लिया जाता है, और उनकी बढ़ाई हुई बाँह तोड़ी जाती है। “क्या तू कभी समुद्र के सोतों तक पहुँचा है, या गहरे सागर की थाह में कभी चला फिरा है? क्या मृत्यु के फाटक तुझ पर प्रगट हुए, क्या तू घोर अंधकार के फाटकों को कभी देखने पाया है? क्या तूने पृथ्वी की चौड़ाई को पूरी रीति से समझ लिया है? यदि तू यह सब जानता है, तो बता दे। “उजियाले के निवास का मार्ग कहाँ है, और अंधियारे का स्थान कहाँ है? क्या तू उसे उसकी सीमा तक हटा सकता है, और उसके घर की डगर पहचान सकता है? निःसन्देह तू यह सब कुछ जानता होगा! क्योंकि तू तो उस समय उत्पन्न हुआ था, और तू बहुत आयु का है।

अय्‍यूब 38:4-21 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

“कहां थे तुम, जब मैंने पृथ्वी की नींव डाली थी? यदि तुममें कुछ भी समझ है, मुझे इसका उत्तर दो. यदि तुम्हें मालूम हो! तो मुझे बताओ, किसने पृथ्वी की नाप ठहराई है? अथवा, किसने इसकी माप रेखाएं निश्चित की? किस पदार्थ पर इसका आधार स्थापित है? किसने इसका आधार रखा? जब निशांत तारा सहगान में एक साथ गा रहे थे तथा सभी स्वर्गदूत उल्लासनाद कर रहे थे, तब कहां थे तुम? “अथवा किसने महासागर को द्वारों द्वारा सीमित किया, जब गर्भ से इसका उद्भव हो रहा था; जब मैंने इसके लिए मेघ परिधान निर्मित किया तथा घोर अंधकार को इसकी मेखला बना दिया, तथा मैंने इस पर सीमाएं चिन्हित कर दीं तथा ऐसे द्वार बना दिए, जिनमें चिटकनियां लगाई गईं; तथा मैंने यह आदेश दे दिया ‘तुम यहीं तक आ सकते हो, इसके आगे नहीं तथा यहां आकर तुम्हारी वे सशक्त वाली तरंगें रुक जाएंगी’? “क्या तुमने अपने जीवन में प्रभात को यह आदेश दिया है, कि वह उपयुक्त क्षण पर ही अरुणोदय किया करे, कि यह पृथ्वी के हर एक छोर तक प्रकट करे, कि दुराचारी अपने-अपने छिपने के स्थान से हिला दिए जाएं? गीली मिट्टी पर मोहर लगाने समान परिवर्तन जिसमें परिधान के सूक्ष्म भेद स्पष्ट हो जाते हैं. सूर्य प्रकाश की उग्रता दुर्वृत्तों को दुराचार से रोके रहती है, मानो हिंसा के लिए उठी हुई उनकी भुजा तोड़ दी गई हो. “अच्छा, यह बताओ, क्या तुमने जाकर महासागर के स्रोतों का निरीक्षण किया है अथवा सागर तल पर चलना फिरना किया है? क्या तुमने घोर अंधकार में जाकर मृत्यु के द्वारों को देखा है? क्या तुम्हें ज़रा सा भी अनुमान है, कि पृथ्वी का विस्तार कितना है, मुझे बताओ, क्या-क्या मालूम है तुम्हें? “कहां है प्रकाश के घर का मार्ग? वैसे ही, कहां है अंधकार का आश्रय, कि तुम उन्हें यह तो सूचित कर सको, कि कहां है उनकी सीमा तथा तुम इसके घर का मार्ग पहचान सको? तुम्हें वास्तव में यह मालूम है, क्योंकि तब तुम्हारा जन्म हो चुका होगा! तब तो तुम्हारी आयु के वर्ष भी अनेक ही होंगे!

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