अय्‍यूब 24:1-25

अय्‍यूब 24:1-25 पवित्र बाइबल (HERV)

“सर्वशक्तिमान परमेश्वर क्यों नहीं न्याय करने के लिये समय नियुक्त करता है? लोग जो परमेश्वर को मानते हैं उन्हें क्यों न्याय के समय की व्यर्थ बाट जोहनी पड़ती है “लोग अपनी सम्पत्ति के चिन्हों को, जो उसकी सीमा बताते है, सरकाते रहते हैं ताकि अपने पड़ोसी की थोड़ी और धरती हड़प लें! लोग पशु को चुरा लेते हैं और उन्हें चरागाहों में हाँक ले जाते हैं। अनाथ बच्चों के गधे को वे चुरा ले जाते हैं। विधवा की गाय वे खोल ले जाते है। जब तक की वह उनका कर्ज नहीं चुकाती है। वे दीन जन को मजबूर करते है कि वह छोड़ कर दूर हट जाने को विवश हो जाता है, इन दुष्टों से स्वयं को छिपाने को। “वे दीन जन उन जंगली गदहों जैसे हैं जो मरुभूमि में अपना चारा खोजा करते हैं। गरीबों और उनके बच्चों को मरुभूमि भोजन दिया करता है। गरीब लोग भूसा और चारा साथ साथ ऐसे उन खेतों से पाते हैं जिनके वे अब स्वामी नहीं रहे। दुष्टों के अंगूरों के बगीचों से बचे फल वे बीना करते हैं। दीन जन को बिना कपड़ों के रातें बितानी होंगी, सर्दी में उनके पास अपने ऊपर ओढ़ने को कुछ नहीं होगा। वे वर्षा से पहाड़ों में भीगें हैं, उन्हें बड़ी चट्टानों से सटे हुये रहना होगा, क्योंकि उनके पास कुछ नहीं जो उन्हें मौसम से बचा ले। बुरे लोग माता से वह बच्चा जिसका पिता नहीं है छीन लेते हैं। गरीब का बच्चा लिया करते हैं, उसके बच्चे को, कर्ज के बदले में वे बन्धुवा बना लेते हैं। गरीब लोगों के पास वस्त्र नहीं होते हैं, सो वे काम करते हुये नंगे रहा करते हैं। दुष्टों के गट्ठर का भार वे ढोते है, किन्तु फिर भी वे भूखे रहते हैं। गरीब लोग जैतून का तेल पेर कर निकालते हैं। वे कुंडो में अंगूर रौंदते हैं फिर भी वे प्यासे रहते हैं। मरते हुये लोग जो आहें भरते हैं। वे नगर में सुनाई देती हैं। सताये हुये लोग सहारे को पुकारते हैं, किन्तु परमेश्वर नहीं सुनता है। “कुछ ऐसे लोग हैं जो प्रकाश के विरुद्ध होते हैं। वे नहीं जानना चाहते हैं कि परमेश्वर उनसे क्या करवाना चाहता है। परमेश्वर की राह पर वे नहीं चलते हैं। हत्यारा तड़के जाग जाया करता है गरीबों और जरुरत मंद लोगों की हत्या करता है, और रात में चोर बन जाता है। वह व्यक्ति जो व्यभिचार करता है, रात आने की बाट जोहा करता है, वह सोचता है उसे कोई नहीं देखेगा और वह अपना मुख ढक लेता है। दुष्ट जन जब रात में अंधेरा होता है, तो सेंध लगा कर घर में घुसते हैं। किन्तु दिन में वे अपने ही घरों में छुपे रहते हैं, वे प्रकाश से बचते हैं। उन दुष्ट लोगों का अंधकार सुबह सा होता है, वे आतंक व अंधेरे के मित्र होते है। “दुष्ट जन ऐसे बहा दिये जाते हैं, जैसे झाग बाढ़ के पानी पर। वह धरती अभिशिप्त है जिसके वे मालिक हैं, इसलिये वे अंगूर के बगीचों में अगूंर बिनने नहीं जाते हैं। जैसे गर्म व सूखा मौसम पिघलती बर्फ के जल को सोख लेता है, वैसे ही दुष्ट लोग कब्र द्वारा निगले जायेंगे। दुष्ट मरने के बाद उसकी माँ तक उसे भूल जायेगी, दुष्ट की देह को कीड़े खा जायेंगे। उसको थोड़ा भी नहीं याद रखा जायेगा, दुष्ट जन गिरे हुये पेड़ से नष्ट किये जायेंगे। ऐसी स्त्री को जिसके बच्चे नहीं हो सकते, दुष्ट जन उन्हें सताया करते हैं, वे उस स्त्री को दु:ख देते हैं, वे किसी विधवा के प्रति दया नहीं दिखाते हैं। बुरे लोग अपनी शक्ति का उपयोग बलशाली को नष्ट करने के लिये करते है। बुरे लोग शक्तिशाली हो जायेंगे, किन्तु अपने ही जीवन का उन्हें भरोसा नहीं होगा कि वे अधिक दिन जी पायेंगे। सम्भव है थोड़े समय के लिये परमेश्वर शक्तिशाली को सुरक्षित रहने दे, किन्तु परमेश्वर सदा उन पर आँख रखता है। दुष्ट जन थोड़े से समय के लिये सफलता पा जाते हैं किन्तु फिर वे नष्ट हो जाते हैं। दूसरे लोगों की तरह वे भी समेट लिये जाते हैं। अन्न की कटी हुई बाल के समान वे गिर जाते हैं। “यदि ये बातें सत्य नहीं हैं तो कौन प्रमाणित कर सकता है कि मैंने झूठ कहा है? कौन दिखा सकता है कि मेरे शब्द प्रलयमात्र हैं?”

अय्‍यूब 24:1-25 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

‘सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर ने न्‍याय का समय क्‍यों नहीं निश्‍चित किया? परमेश्‍वर को जानने वाले मनुष्‍य क्‍यों नहीं उसके दिनों को देख पाते हैं? कुछ ऐसे भी लोग हैं जो भूमि की सीमा घटा-बढ़ा लेते हैं; वे दूसरों की भेड़-बकरियां छीन लेते, और स्‍वयं उनको चराते हैं। वे अनाथों के गधे हांक ले जाते, वे विधवा के बैल को अपने पास बन्‍धक रखते हैं। वे गरीबों को मार्ग से हटाते हैं; देश के सब गरीबों को छिपना पड़ता है। देखो, गरीब मज़दूरी के लिए निकलते हैं; वे जंगली गधों की तरह जीविका की तलाश में यहाँ-वहाँ भटकते हैं। वे अपने बच्‍चों के भोजन के लिए उजाड़-खण्‍ड में शिकार खोजते-फिरते हैं। वे खेत में अपना भोज्‍य पदार्थ एकत्र करते हैं; वे धनी दुर्जन के अंगूर-उद्यान में बचे हुए अंगूर बटोरते हैं। वे रात-भर बिना वस्‍त्र पड़े रहते हैं; ठण्‍ड के मौसम में भी, उन्‍हें ओढ़ने के लिए कुछ नहीं मिलता। वे पहाड़ों पर वर्षा से भींग जाते हैं; उन्‍हें वर्षा से बचने के लिए कोई स्‍थान नहीं मिलता; अत: वे चट्टान से चिपट जाते हैं। ‘कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो पितृहीन बालक को मां की छाती से छीन लेते हैं; वे गरीब कर्जदार के बच्‍चे को अपने पास बन्‍धक में रखते हैं। ये गरीब नंगे, वस्‍त्रहीन इधर-उधर फिरते हैं; वे भूखे-पेट पूले ढोते हैं! वे धनी दुर्जन के जैतून-कुंज में तेल पेरते हैं; वे अंगूर-रस के कुण्‍डों में अंगूर रौंदते हैं, पर स्‍वयं प्‍यासे रहते हैं! शहर में मरने वाले गरीबों की कराहें सुनाई देती हैं; घायल दरिद्र व्यक्‍तियों के प्राण दुहाई देते हैं। तब भी परमेश्‍वर उनकी प्रार्थना पर ध्‍यान नहीं देता! ‘कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो ज्‍योति के प्रति विद्रोह करते हैं; वे उसके मार्गों को नहीं पहचानते हैं, वे उसके मार्गों पर स्‍थिर नहीं रहते हैं। दीन-हीन और गरीब की हत्‍या करने के लिए हत्‍यारा अन्‍धेरे में उठता है; वह रात में चोर बन जाता है। व्‍यभिचारी मनुष्‍य की आँखें दिन डूबने की प्रतीक्षा करती हैं; वह सोचता है, “किसी की दृष्‍टि मुझ पर नहीं पड़ेगी” ; वह अपने मुँह पर नकाब डाल लेता है। ‘ये लोग रात के अन्‍धेरे में घरों में सेंध लगाते हैं; पर वे दिन में छिपे रहते हैं। ये ज्‍योति को नहीं जानते! घोर अन्‍धकार ही उन सब के लिए सबेरे का प्रकाश होता है; वे गहरे अन्‍धकार के आतंक से प्रेम करते हैं। ‘[मेरे मित्रो, तुम यह कहते हो] “विनाश की बाढ़ उन दुष्‍टों को तुरन्‍त बहा ले जाती है; उनकी पैतृक धन-सम्‍पत्ति देश में शापित मानी जाती है; उनके अंगूर-उद्यानों में कोई पैर भी नहीं रखता! जैसे अनावृष्‍टि और गर्मी से हिम-जल सूख जाता है, वैसे ही अधोलोक पापी लोगों को सुखा डालता है! नगर-चौक उन्‍हें भूल जाते हैं, कोई उनका नाम भी नहीं लेता; यों पेड़ के समान दुष्‍टता कट जाती है।” ‘पर कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो बाँझ, निस्‍सन्‍तान स्‍त्री की धन-सम्‍पत्ति को हड़प जाते हैं; जो किसी भी विधवा का हित नहीं करते हैं। फिर भी परमेश्‍वर अपने सामर्थ्य से दुष्‍ट बलवानों के जीवन की अवधि बढ़ाता है। जब उन्‍हें जीवन का भरोसा नहीं रहता है तब भी वे मृत्‍यु-शय्‍या से उठ बैठते हैं! परमेश्‍वर उन्‍हें सुरक्षित रखता, और उन्‍हें सम्‍भालता है; वह उनके कुमार्गों पर उनकी रक्षा करता है कुछ समय तक उनका उत्‍कर्ष होता है, फिर वे नष्‍ट हो जाते हैं; वे सूख जाते हैं, लोनी-साग की तरह कुम्‍हला जाते हैं। वे अनाज की बाल के समान झड़ जाते हैं। जो मैंने कहा, क्‍या वह सच नहीं है? कौन व्यक्‍ति मुझे झूठा सिद्ध कर सकता है? कौन व्यक्‍ति मेरी बातों को निस्‍सार कह सकता है?’

अय्‍यूब 24:1-25 Hindi Holy Bible (HHBD)

सर्वशक्तिमान ने समय क्यों नहीं ठहराया, और जो लोग उसका ज्ञान रखते हैं वे उसके दिन क्यों देखने नहीं पाते? कुछ लोग भूमि की सीमा को बढ़ाते, और भेड़ बकरियां छीन कर चराते हैं। वे अनाथों का गदहा हांक ले जाते, और विधवा का बैल बन्धक कर रखते हैं। वे दरिद्र लोगों को मार्ग से हटा देते, और देश के दीनों को इकट्ठे छिपना पड़ता है। देखो, वे जंगली गदहों की नाईं अपने काम को और कुछ भोजन यत्न से ढूंढ़ने को निकल जाते हैं; उनके लड़के-बालों का भोजन उन को जंगल से मिलता है। उन को खेत में चारा काटना, और दुष्टों की बची बचाई दाख बटोरना पड़ता है। रात को उन्हें बिना वस्त्र नंगे पड़े रहना और जाड़े के समय बिना ओढ़े पड़े रहना पड़ता है। वे पहाड़ों पर की झडिय़ों से भीगे रहते, और शरण न पाकर चट्टान से लिपट जाते हैं। कुछ लोग अनाथ बालक को माँ की छाती पर से छीन लेते हैं, और दीन लोगों से बन्धक लेते हैं। जिस से वे बिना वस्त्र नंगे फिरते हैं; और भूख के मारे, पूलियां ढोते हैं। वे उनकी भीतों के भीतर तेल पेरते और उनके कुणडों में दाख रौंदते हुए भी प्यासे रहते हैं। वे बड़े नगर में कराहते हैं, और घायल किए हुओं का जी दोहाई देता है; परन्तु ईश्वर मूर्खता का हिसाब नहीं लेता। फिर कुछ लोग उजियाले से बैर रखते, वे उसके मार्गों को नहीं पहचानते, और न उसके मार्गों में बने रहते हैं। खूनी, पह फटते ही उठ कर दीन दरिद्र मनुष्य को घात करता, और रात को चोर बन जाता है। व्यभिचारी यह सोच कर कि कोई मुझ को देखने न पाए, दिन डूबने की राह देखता रहता है, और वह अपना मुंह छिपाए भी रखता है। वे अन्धियारे के समय घरों में सेंध मारते और दिन को छिपे रहते हैं; वे उजियाले को जानते भी नहीं। इसलिये उन सभों को भोर का प्रकाश घोर अन्धकार सा जान पड़ता है, क्योंकि घोर अन्धकार का भय वे जानते हैं। वे जल के ऊपर हलकी वस्तु के सरीखे हैं, उनके भाग को पृथ्वी के रहने वाले कोसते हैं, और वे अपनी दाख की बारियों में लौटने नहीं पाते। जैसे सूखे और घाम से हिम का जल सूख जाता है वैसे ही पापी लोग अधोलोक में सूख जाते हैं। माता भी उसको भूल जाती, और कीड़े उसे चूसते हें, भवीष्य में उसका स्मरण न रहेगा; इस रीति टेढ़ा काम करने वाला वृक्ष की नाईं कट जाता है। वह बांज स्त्री को जो कभी नहीं जनी लूटता, और विधवा से भलाई करना नहीं चाहता है। बलात्कारियों को भी ईश्वर अपनी शक्ति से खींच लेता है, जो जीवित रहने की आशा नहीं रखता, वह भी फिर उठ बैठता है। उन्हें ऐसे बेखटके कर देता है, कि वे सम्भले रहते हैं; उौर उसकी कृपादृष्टि उनकी चाल पर लगी रहती है। वे बढ़ते हैं, तब थोड़ी बेर में जाते रहते हैं, वे दबाए जाते और सभोंनकी नाईं रख लिये जाते हैं, और अनाज की बाल की नाईं काटे जाते हैं। क्या यह सब सच नहीं! कौन मुझे झुठलाएगा? कौन मेरी बातें निकम्मी ठहराएगा?

अय्‍यूब 24:1-25 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

“सर्वशक्‍तिमान ने समय क्यों नहीं ठहराया, और जो लोग उसका ज्ञान रखते हैं वे उसके दिन क्यों देखने नहीं पाते? कुछ लोग भूमि की सीमा को बढ़ाते, और भेड़ बकरियाँ छीनकर चराते हैं। वे अनाथों का गदहा हाँक ले जाते, और विधवा का बैल बन्धक रखते हैं। वे दरिद्र लोगों को मार्ग से हटा देते, और देश के दीनों को इकट्ठे छिपना पड़ता है। देखो, वे जंगली गदहों के समान अपने काम को और कुछ भोजन यत्न से ढूँढ़ने को निकल जाते हैं; उनके बाल–बच्‍चों का भोजन उनको जंगल से मिलता है। उनको खेत में चारा काटना, और दुष्‍टों की बची बचाई दाख बटोरना पड़ता है। रात को उन्हें बिना वस्त्र नंगे पड़े रहना, और जाड़े के समय बिना ओढ़े पड़े रहना पड़ता है। वे पहाड़ों पर की वर्षा से भीगे रहते, और शरण न पाकर चट्टान से लिपट जाते हैं। कुछ लोग अनाथ बालक को माँ की छाती पर से छीन लेते हैं, और दीन लोगों से बन्धक लेते हैं। जिस से वे बिना वस्त्र नंगे फिरते हैं; और भूख के मारे, पूलियाँ ढोते हैं। वे उनकी दीवारों के भीतर तेल पेरते और उनके कुण्डों में दाख रौंदते हुए भी प्यासे रहते हैं। वे बड़े नगर में कराहते हैं, और घायल किए हुओं का जी दोहाई देता है; परन्तु परमेश्‍वर मूर्खता का हिसाब नहीं लेता। “कुछ लोग उजियाले से बैर रखते, वे उसके मार्गों को नहीं पहचानते, और न उसके मार्गों में बने रहते हैं। हत्यारा पौ फटते ही उठकर दीन दरिद्र मनुष्य को घात करता, और रात को चोर बन जाता है। व्यभिचारी यह सोचकर कि कोई मुझ को देखने न पाए, दिन डूबने की राह देखता रहता है, और वह अपना मुँह छिपाए भी रखता है। वे अन्धियारे के समय घरों में सेंध मारते और दिन को छिपे रहते हैं; वे उजियाले को जानते भी नहीं। इसलिये उन सभों को भोर का प्रकाश घोर अन्धकार सा जान पड़ता है, क्योंकि घोर अन्धकार के भय से वे मित्रता रखते हैं।” “वे जल के ऊपर हलकी वस्तु के सरीखे हैं, उनके भाग को पृथ्वी के रहनेवाले कोसते हैं, और वे अपनी दाख की बारियों में लौटने नहीं पाते। जैसे सूखे और धूप से हिम का जल सूख जाता है वैसे ही पापी लोग अधोलोक में सूख जाते हैं। माता भी उसको भूल जाती, और कीड़े उसे चूसते हैं, भविष्य में उसका स्मरण न रहेगा; इस रीति टेढ़ा काम करनेवाला वृक्ष के समान कट जाता है। “वह बाँझ स्त्री को जो कभी नहीं जनी लूटता, और विधवा से भलाई करना नहीं चाहता है। बलात्कारियों को भी परमेश्‍वर अपनी शक्‍ति से खींच लेता है, जो जीवित रहने की आशा नहीं रखता, वह भी फिर उठ बैठता है। वह उन्हें ऐसे बेखटके कर देता है, कि वे सम्भले रहते हैं; और उसकी कृपादृष्‍टि उनकी चाल पर लगी रहती है। वे थोड़ी देर के लिये बढ़ते हैं, तब जाते रहते हैं, वे दबाए जाते और सभों के समान रख लिये जाते हैं, और अनाज की बाल के समान काटे जाते हैं। क्या यह सब सच नहीं! कौन मुझे झुठलाएगा? कौन मेरी बातें निकम्मी ठहराएगा?”

अय्‍यूब 24:1-25 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

“सर्वशक्तिमान ने दुष्टों के न्याय के लिए समय क्यों नहीं ठहराया, और जो लोग उसका ज्ञान रखते हैं वे उसके दिन क्यों देखने नहीं पाते? कुछ लोग भूमि की सीमा को बढ़ाते, और भेड़-बकरियाँ छीनकर चराते हैं। वे अनाथों का गदहा हाँक ले जाते, और विधवा का बैल बन्धक कर रखते हैं। वे दरिद्र लोगों को मार्ग से हटा देते, और देश के दीनों को इकट्ठे छिपना पड़ता है। देखो, दीन लोग जंगली गदहों के समान अपने काम को और कुछ भोजन यत्न से ढूँढ़ने को निकल जाते हैं; उनके बच्चों का भोजन उनको जंगल से मिलता है। उनको खेत में चारा काटना, और दुष्टों की बची बचाई दाख बटोरना पड़ता है। रात को उन्हें बिना वस्त्र नंगे पड़े रहना और जाड़े के समय बिना ओढ़े पड़े रहना पड़ता है। वे पहाड़ों पर की वर्षा से भीगे रहते, और शरण न पाकर चट्टान से लिपट जाते हैं। कुछ दुष्ट लोग अनाथ बालक को माँ की छाती पर से छीन लेते हैं, और दीन लोगों से बन्धक लेते हैं। जिससे वे बिना वस्त्र नंगे फिरते हैं; और भूख के मारे, पूलियाँ ढोते हैं। वे दुष्टों की दीवारों के भीतर तेल पेरते और उनके कुण्डों में दाख रौंदते हुए भी प्यासे रहते हैं। वे बड़े नगर में कराहते हैं, और घायल किए हुओं का जी दुहाई देता है; परन्तु परमेश्वर मूर्खता का हिसाब नहीं लेता। “फिर कुछ लोग उजियाले से बैर रखते, वे उसके मार्गों को नहीं पहचानते, और न उसके मार्गों में बने रहते हैं। खूनी, पौ फटते ही उठकर दीन दरिद्र मनुष्य को घात करता, और रात को चोर बन जाता है। व्यभिचारी यह सोचकर कि कोई मुझ को देखने न पाए, दिन डूबने की राह देखता रहता है, और वह अपना मुँह छिपाए भी रखता है। वे अंधियारे के समय घरों में सेंध मारते और दिन को छिपे रहते हैं; वे उजियाले को जानते भी नहीं। क्योंकि उन सभी को भोर का प्रकाश घोर अंधकार सा जान पड़ता है, घोर अंधकार का भय वे जानते हैं।” “वे जल के ऊपर हलकी सी वस्तु के सरीखे हैं, उनके भाग को पृथ्वी के रहनेवाले कोसते हैं, और वे अपनी दाख की बारियों में लौटने नहीं पाते। जैसे सूखे और धूप से हिम का जल सूख जाता है वैसे ही पापी लोग अधोलोक में सूख जाते हैं। माता भी उसको भूल जाती, और कीड़े उसे चूसते हैं, भविष्य में उसका स्मरण न रहेगा; इस रीति टेढ़ा काम करनेवाला वृक्ष के समान कट जाता है। “वह बाँझ स्त्री को जो कभी नहीं जनी लूटता, और विधवा से भलाई करना नहीं चाहता है। बलात्कारियों को भी परमेश्वर अपनी शक्ति से खींच लेता है, जो जीवित रहने की आशा नहीं रखता, वह भी फिर उठ बैठता है। उन्हें ऐसे बेखटके कर देता है, कि वे सम्भले रहते हैं; और उसकी कृपादृष्टि उनकी चाल पर लगी रहती है। वे बढ़ते हैं, तब थोड़ी देर में जाते रहते हैं, वे दबाए जाते और सभी के समान रख लिये जाते हैं, और अनाज की बाल के समान काटे जाते हैं। क्या यह सब सच नहीं! कौन मुझे झुठलाएगा? कौन मेरी बातें निकम्मी ठहराएगा?”

अय्‍यूब 24:1-25 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

“सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने न्याय-दिवस को ठहराया क्यों नहीं है? तथा वे, जो उन्हें जानते हैं, इस दिन की प्रतीक्षा करते रह जाते हैं? कुछ लोग तो भूमि की सीमाओं को परिवर्तित करते रहते हैं; वे भेड़ें पकड़कर हड़प लेते हैं. वे पितृहीन के गधों को हकाल कर ले जाते हैं. वे विधवा के बैल को बंधक बना लेते हैं. वे दरिद्र को मार्ग से हटा देते हैं; देश के दीनों को मजबूर होकर एक साथ छिप जाना पड़ता है. ध्यान दो, दीन वन्य गधों-समान भोजन खोजते हुए भटकते रहते हैं, मरुभूमि में अपने बालकों के भोजन के लिए. अपने खेत में वे चारा एकत्र करते हैं तथा दुर्वृत्तों के दाख की बारी से सिल्ला उठाते हैं. शीतकाल में उनके लिए कोई आवरण नहीं रहते. उन्हें तो विवस्त्र ही रात्रि व्यतीत करनी पड़ती है. वे पर्वतीय वृष्टि से भीगे हुए हैं, सुरक्षा के लिए उन्होंने चट्टान का आश्रय लिया हुआ है. अन्य वे हैं, जो दूधमुंहे, पितृहीन बालकों को छीन लेते हैं; ये ही हैं वे, जो दीन लोगों से बंधक वस्तु कर रख लेते हैं. उन्हीं के कारण दीन को विवस्त्र रह जाना पड़ता है; वे ही भूखों से अन्‍न की पुलियां छीने लेते हैं. दीनों की दीवारों के भीतर ही वे तेल निकालते हैं; वे द्राक्षरस-कुण्ड में अंगूर तो रौंदते हैं, किंतु स्वयं प्यासे ही रहते हैं. नागरिक कराह रहे हैं, तथा घायलों की आत्मा पुकार रही है. फिर भी परमेश्वर मूर्खों की याचना की ओर ध्यान नहीं देते. “कुछ अन्य ऐसे हैं, जो ज्योति के विरुद्ध अपराधी हैं, उन्हें इसकी नीतियों में कोई रुचि नहीं है, तब वे ज्योति के मार्गों पर आना नहीं चाहते. हत्यारा बड़े भोर उठ जाता है, वह जाकर दीनों एवं दरिद्रों की हत्या करता है, रात्रि में वह चोरी करता है. व्यभिचारी की दृष्टि रात आने की प्रतीक्षा करती रहती है, वह विचार करता है, ‘तब मुझे कोई देख न सकेगा.’ वह अपने चेहरे को अंधेरे में छिपा लेता है. रात्रि होने पर वे सेंध लगाते हैं, तथा दिन में वे घर में छिपे रहते हैं; प्रकाश में उन्हें कोई रुचि नहीं रहती. उनके सामने प्रातःकाल भी वैसा ही होता है, जैसा घोर अंधकार, क्योंकि उनकी मैत्री तो घोर अंधकार के आतंक से है. “वस्तुतः वे जल के ऊपर के फेन समान हैं; उनका भूखण्ड शापित है. तब कोई उस दिशा में दाख की बारी की ओर नहीं जाता. सूखा तथा गर्मी हिम-जल को निगल लेते हैं, यही स्थिति होगी अधोलोक में पापियों की. गर्भ उन्हें भूल जाता है, कीड़े उसे ऐसे आहार बना लेते हैं; कि उसकी स्मृति भी मिट जाती है, पापी वैसा ही नष्ट हो जाएगा, जैसे वृक्ष. वह बांझ स्त्री तक से छल करता है तथा विधवा का कल्याण उसके ध्यान में नहीं आता. किंतु परमेश्वर अपनी सामर्थ्य से बलवान को हटा देते हैं; यद्यपि वे प्रतिष्ठित हो चुके होते हैं, उनके जीवन का कोई आश्वासन नहीं होता. परमेश्वर उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं, उनका पोषण करते हैं, वह उनके मार्गों की चौकसी भी करते हैं. अल्पकाल के लिए वे उत्कर्ष भी करते जाते हैं, तब वे नष्ट हो जाते हैं; इसके अतिरिक्त वे गिर जाते हैं तथा वे अन्यों के समान पूर्वजों में जा मिलते हैं; अन्‍न की बालों के समान कट जाना ही उनका अंत होता है. “अब, यदि सत्य यही है, तो कौन मुझे झूठा प्रमाणित कर सकता है तथा मेरी बात को अर्थहीन घोषित कर सकता है?”