इब्रानियों 7:1-28

इब्रानियों 7:1-28 पवित्र बाइबल (HERV)

यह मिलिकिसिदक सालेम का राजा था और सर्वोच्च परमेश्वर का याजक था। जब इब्राहीम राजाओं को पराजित करके लौट रहा था तो वह इब्राहीम से मिला और उसे आशीर्वाद दिया। और इब्राहीम ने उसे उस सब कुछ में से जो उसने युद्ध में जीता था उसका दसवाँ भाग प्रदान किया। उसके नाम का पहला अर्थ है, “धार्मिकता का राजा” और फिर उसका यह अर्थ भी है, “सालेम का राजा” अर्थात् “शांति का राजा।” उसके पिता अथवा उसकी माँ अथवा उसके पूर्वजों का कोई इतिहास नहीं मिलता है। उसके जन्म अथवा मृत्यु का भी कहीं कोई उल्लेख नहीं है। परमेश्वर के पुत्र के समान ही वह सदा-सदा के लिए याजक बना रहता है। तनिक सोचो, वह कितना महान था। जिसे कुल प्रमुख इब्राहीम तक ने अपनी प्राप्ति का दसवाँ भाग दिया था। अब देखो व्यवस्था के अनुसार लेवी वंशज जो याजक बनते हैं, लोगों से अर्थात् अपने ही बंधुओं से दसवाँ भाग लें। यद्यपि उनके वे बंधु इब्राहीम के वंशज हैं। फिर भी मिलिकिसिदक ने, जो लेवी वंशी भी नहीं था, इब्राहीम से दसवाँ भाग लिया। और उस इब्राहीम को आशीर्वाद दिया जिसके पास परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ थीं। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जो आशीर्वाद देता है वह आशीर्वाद लेने वाले से बड़ा होता है। जहाँ तक लेवियों का प्रश्न है, उनमें दसवाँ भाग उन व्यक्तियों द्वारा इकट्ठा किया जाता है, जो मरणशील हैं किन्तु मिलिकिसिदक का जहाँ तक प्रश्न है दसवाँ भाग उसके द्वारा एकत्र किया जाता है जो शास्त्र के अनुसार अभी भी जीवित है। तो फिर कोई यहाँ तक कह सकता है कि वह लेवी जो दसवाँ भाग एकत्र करता है, उसने इब्राहीम के द्वारा दसवाँ भाग प्रदान कर दिया। क्योंकि जब मिलिकिसिदक इब्राहीम से मिला था, तब भी लेवी अपने पूर्वजों के शरीर में वर्तमान था। यदि लेवी सम्बन्धी याजकता के द्वारा सम्पूर्णता प्राप्त की जा सकती क्योंकि इसी के आधार पर लोगों को व्यवस्था का विधान दिया गया था। तो किसी दूसरे याजक के आने की आवश्यकता ही क्या थी? एक ऐसे याजक की जो मिलिकिसिदक की परम्परा का हो, न कि औरों की परम्परा का। क्योंकि जब याजकता बदलती है, तो व्यवस्था में भी परिवर्तन होना चाहिए। जिसके विषय में ये बातें कही गयी हैं, वह किसी दूसरे गोत्र का है, और उस गोत्र का कोई भी व्यक्ति कभी वेदी का सेवक नहीं रहा। क्योंकि यह तो स्पष्ट ही है कि हमारा प्रभु यहूदा का वंशज था और मूसा ने उस गोत्र के लिए याजकों के विषय में कुछ नहीं कहा था। और जो कुछ हमने कहा है, वह और भी स्पष्ट है कि मिलिकिसिदक के जैसा एक दूसरा याजक प्रकट होता है। वह अपनी वंशावली के नियम के आधार पर नहीं, बल्कि एक अमर जीवन की शक्ति के आधार पर याजक बना है। क्योंकि घोषित किया गया था: “तू है एक याजक शाश्वत मिलिकिसिदक के जैसा।” पहला नियम इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि वह निर्बल और व्यर्थ था। क्योंकि व्यवस्था के विधान ने किसी को सम्पूर्ण सिद्ध नहीं किया। और एक उत्तम आशा का सूत्रपात किया गया जिसके द्वारा हम परमेश्वर के निकट खिंचते हैं। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि परमेश्वर ने यीशु को शपथ के द्वारा प्रमुख याजक बनाया था। जबकि औरों को बिना शपथ के ही प्रमुख याजक बनाया गया था। किन्तु यीशु तब एक शपथ से याजक बना था, जब परमेश्वर ने उससे कहा था, “प्रभु ने शपथ ली है, और वह अपना मन कभी नहीं बदलेगा: ‘तू एक शाश्वत याजक है।’” इस शपथ के कारण यीशु एक और अच्छे वाचा की ज़मानत बन गया है। अब देखो, ऐसे बहुत से याजक हुआ करते थे जिन्हें मृत्यु ने अपने पदों पर नहीं बने रहने दिया। किन्तु क्योंकि यीशु अमर है, इसलिए उसका याजकपन भी सदा-सदा बना रहने वाला है। अतः जो उसके द्वारा परमेश्वर तक पहुँचते हैं, वह उनका सर्वदा के लिए उद्धार करने में समर्थ है क्योंकि वह उनकी मध्यस्थता के लिए ही सदा जीता है। ऐसा ही महायाजक हमारी आवश्यकता को पूरा कर सकता है, जो पवित्र हो, दोषरहित हो, शुद्ध हो, पापियों के प्रभाव से दूर रहता हो, स्वर्गों से भी जिसे ऊँचा उठाया गया हो। जिसके लिए दूसरे महायाजकों के समान यह आवश्यक न हो कि वह दिन प्रतिदिन पहले अपने पापों के लिए और फिर लोगों के पापों के लिए बलियाँ चढ़ाए। उसने तो सदा-सदा के लिए उनके पापों के हेतु स्वयं अपने आपको बलिदान कर दिया। किन्तु परमेश्वर ने शपथ के साथ एक वाचा दिया। यह वाचा व्यवस्था के विधान के बाद आया और इस वाचा ने प्रमुख याजक के रूप में पुत्र को नियुक्त किया जो सदा-सदा के लिए सम्पूर्ण बन गया।

इब्रानियों 7:1-28 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

जब अब्राहम राजाओं का संहार कर लौट रहे थे, तब शालेम के राजा और सर्वोच्‍च परमेश्‍वर के पुरोहित मलकीसेदेक उन से मिलने आये और उन्‍होंने अब्राहम को आशीर्वाद दिया। अब्राहम ने उन्‍हें सब वस्‍तुओं का दशमांश दिया। “मलकीसेदेक” का अर्थ है-धार्मिकता का राजा। वह “शालेम” के राजा भी हैं, जिसका अर्थ है “शान्‍ति” के राजा। उनके न तो पिता है, न माता और न कोई वंशावली। उनके जीवन का न तो आरम्‍भ है और न अन्‍त। वह परमेश्‍वर के पुत्र के सदृश हैं और वह सदा पुरोहित बने रहते हैं। आप इस बात पर विचार करें कि मलकीसेदेक कितने महान् हैं! कुलपति अब्राहम ने भी उन्‍हें लूट के उत्तम भाग का दशमांश दिया। पुरोहित-पदधारी लेवी-वंशी व्‍यवस्‍था के आदेशानुसार लोगों से अर्थात् अपने अन्‍य-वंशी जाति-भाइयों से दशमांश लेते हैं, यद्यपि वे अन्‍य-वंशी भी अब्राहम के वंशज हैं। किन्‍तु मलकीसेदेक लेवी-वंशी नहीं थे। तो भी उन्‍होंने अब्राहम से दशमांश लिया और प्रतिज्ञाओं के अधिकारी को आशीर्वाद दिया। अब यह निर्विवाद है कि जो छोटा है, वह अपने से बड़े का आशीर्वाद पाता है। इसके अतिरिक्‍त दशमांश पाने वाले लेवी-वंशी मरणशील मनुष्‍य हैं, जब कि मलकीसेदेक के विषय में धर्मग्रन्‍थ कहता है कि वह जीवित बने रहते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि दशमांश पाने वाले लेवी ने अब्राहम के माध्‍यम से दशमांश दिया। क्‍योंकि जब अब्राहम से मलकीसेदेक की भेंट हुई, तो लेवी एक प्रकार से अपने पूर्वज अब्राहम के शरीर में विद्यमान थे। इस्राएली प्रजा को लेवियों के पुरोहितत्‍व के आधार पर व्‍यवस्‍था मिली थी। यदि इस पुरोहितत्‍व के माध्‍यम से पूर्णता प्राप्‍त हो सकती थी, तो यह क्‍यों आवश्‍यक था कि एक अन्‍य पुरोहित की चर्चा की जाये जो हारून की नहीं, बल्‍कि मलकीसेदेक की श्रेणी में आ जायेगा? पुरोहितत्‍व में परिवर्तन होने पर व्‍यवस्‍था में भी परिवर्तन अनिवार्य है। ये बातें जिस पुरोहित के विषय में कही गयी हैं, वह एक अन्‍य वंश का है और उस वंश का कोई भी व्यक्‍ति वेदी का सेवक नहीं बना; क्‍योंकि यह तो प्रत्‍यक्ष है कि हमारे प्रभु येशु यहूदा के कुल में उत्‍पन्न हुए हैं और मूसा ने पुरोहितों के विषय में लिखते समय उस कुल का उल्‍लेख नहीं किया। यह सब और भी स्‍पष्‍ट हो जाता है यदि हम इस पर विचार करें कि एक अन्‍य पुरोहित प्रकट हुए, जो मलकीसेदेक के सदृश हैं, जो वंश-परम्‍परा पर आधारित किसी व्‍यवस्‍था के आदेशानुसार नहीं, बल्‍कि अविनाशी जीवन के सामर्थ्य से पुरोहित बन गये हैं। उन्‍हीं के विषय में धर्मग्रन्‍थ यह साक्षी देता है, “तू मलकीसेदेक के अनुरूप सदा पुरोहित बना रहेगा।” शक्‍तिहीन और निष्‍फल होने के कारण पुराना आदेश रद्द कर दिया गया है, क्‍योंकि व्‍यवस्‍था कुछ भी पूर्णता तक नहीं पहुँचा सकी। हमें इस से श्रेष्‍ठ आशा प्रदान की गयी है और इसके माध्‍यम से हम परमेश्‍वर के निकट पहुँचते हैं। शपथ के साथ ही येशु की नियुिक्‍त हुई थी, जब कि वे शपथ के बिना पुरोहित नियुक्‍त हुए थे; क्‍योंकि मसीह की नियुिक्‍त के समय प्रभु परमेश्‍वर ने शपथ खायी थी। जैसा कि धर्मग्रन्‍थ कहता है, “मैंने शपथ ली है और मेरी यह शपथ अपरिवर्तनीय है: तू सदा पुरोहित बना रहेगा।” इस प्रकार, हम देखते हैं कि येशु जिस विधान का उत्तरदायित्‍व लेते हैं, वह कहीं अधिक श्रेष्‍ठ है। इसके अतिरिक्‍त पहले के पुरोहित बड़ी संख्‍या में नियुक्‍त किये जाते रहे हैं, क्‍योंकि मृत्‍यु के कारण अधिक समय तक पुरोहित-पद पर बना रहना उनके लिए सम्‍भव नहीं था। किन्‍तु येशु सदा बने रहते हैं, इसलिए उनका पुरोहितत्‍व अद्वितीय एवं चिरस्‍थायी है। यही कारण है कि जो लोग उनके द्वारा परमेश्‍वर की शरण लेते हैं, वह उन्‍हें पूर्णत: बचाने में समर्थ हैं; क्‍योंकि वह उनकी ओर से निवेदन करने के लिए सदा जीवित हैं। यह उचित ही था कि हमें इस प्रकार के महापुरोहित मिलें, जो पवित्र, निर्दोष, निष्‍कलंक, पापियों से सर्वथा भिन्न और स्‍वर्ग से भी उच्‍चतर हों। अन्‍य महापुरोहित पहले अपने पापों और बाद में प्रजा के पापों के लिए प्रतिदिन बलि चढ़ाया करते हैं। येशु को इसकी आवश्‍यकता नहीं होती, क्‍योंकि उन्‍होंने यह कार्य सदा के लिए एक ही बार में पूरा कर लिया जब उन्‍होंने अपने को बलि चढ़ाया। व्‍यवस्‍था तो दुर्बल मनुष्‍यों को महापुरोहित नियुक्‍त करती है, किन्‍तु व्‍यवस्‍था के समाप्‍त हो जाने के बाद परमेश्‍वर की शपथ के अनुसार वह पुत्र महापुरोहित नियुक्‍त किया जाता है, जिसे सदा के लिए पूर्ण सिद्ध बना दिया गया है।

इब्रानियों 7:1-28 Hindi Holy Bible (HHBD)

यह मलिकिसिदक शालेम का राजा, और परमप्रधान परमेश्वर का याजक, सर्वदा याजक बना रहता है; जब इब्राहीम राजाओं को मार कर लौटा जाता था, तो इसी ने उस से भेंट करके उसे आशीष दी। इसी को इब्राहीम ने सब वस्तुओं का दसवां अंश भी दिया: यह पहिले अपने नाम के अर्थ के अनुसार, धर्म का राजा, और फिर शालेम अर्थात शांति का राजा है। जिस का न पिता, न माता, न वंशावली है, जिस के न दिनों का आदि है और न जीवन का अन्त है; परन्तु परमेश्वर के पुत्र के स्वरूप ठहरा॥ अब इस पर ध्यान करो कि यह कैसा महान था जिस को कुलपति इब्राहीम ने अच्छे से अच्छे माल की लूट का दसवां अंश दिया। लेवी की संतान में से जो याजक का पद पाते हैं, उन्हें आज्ञा मिली है, कि लोगों, अर्थात अपने भाइयों से चाहे, वे इब्राहीम ही की देह से क्यों न जन्मे हों, व्यवस्था के अनुसार दसवां अंश लें। पर इस ने, जो उन की वंशावली में का भी न था इब्राहीम से दसवां अंश लिया और जिसे प्रतिज्ञाएं मिली थी उसे आशीष दी। और उस में संदेह नहीं, कि छोटा बड़े से आशीष पाता है। और यहां तो मरनहार मनुष्य दसवां अंश लेते हैं पर वहां वही लेता है, जिस की गवाही दी जाती है, कि वह जीवित है। तो हम यह भी कह सकते हैं, कि लेवी ने भी, जो दसवां अंश लेता है, इब्राहीम के द्वारा दसवां अंश दिया। क्योंकि जिस समय मलिकिसिदक ने उसके पिता से भेंट की, उस समय यह अपने पिता की देह में था॥ तक यदि लेवीय याजक पद के द्वारा सिद्धि हो सकती है (जिस के सहारे से लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्या आवश्यकता थी, कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए? क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है। क्योंकि जिस के विषय में ये बातें कही जाती हैं कि वह दूसरे गोत्र का है, जिस में से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की। तो प्रगट है, कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है और इस गोत्र के विषय में मूसा ने याजक पद की कुछ चर्चा नहीं की। ओर जब मलिकिसिदक के समान एक और ऐसा याजक उत्पन्न होने वाला था। जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, परअविनाशी जीवन की सामर्थ के अनुसार नियुक्त हो तो हमारा दावा और भी स्पष्टता से प्रगट हो गया। क्योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है, कि तू मलिकिसिदक की रीति पर युगानुयुग याजक है। निदान, पहिली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई। (इसलिये कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं कि) और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिस के द्वारा हम परमेश्वर के समीप जा सकते हैं। और इसलिये कि मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुई। (क्योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए पर यह शपथ के साथ उस की ओर से नियुक्त किया गया जिस ने उसके विषय में कहा, कि प्रभु ने शपथ खाई, और वह उस से फिर ने पछताएगा, कि तू युगानुयुग याजक है)। सो यीशु एक उत्तम वाचा का जामिन ठहरा। वे तो बहुत से याजक बनते आए, इस का कारण यह था कि मृत्यु उन्हें रहने नहीं देती थी। पर यह युगानुयुग रहता है; इस कारण उसका याजक पद अटल है। इसी लिये जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते हैं, वह उन का पूरा पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उन के लिये बिनती करने को सर्वदा जीवित है॥ सो ऐसा ही महायाजक हमारे योग्य था, जो पवित्र, और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊंचा किया हुआ हो। और उन महायाजकों की नाईं उसे आवश्यक नहीं कि प्रति दिन पहिले अपने पापों और फिर लोगों के पापों के लिये बलिदान चढ़ाए; क्योंकि उस ने अपने आप को बलिदान चढ़ाकर उसे एक ही बार निपटा दिया। क्योंकि व्यवस्था तो निर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्त करती है; परन्तु उस शपथ का वचन जो व्यवस्था के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्त करता है जो युगानुयुग के लिये सिद्ध किया गया है॥

इब्रानियों 7:1-28 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

यह मलिकिसिदक शालेम का राजा, और परमप्रधान परमेश्‍वर का याजक, सर्वदा याजक बना रहता है। जब अब्राहम राजाओं को मारकर लौटा जाता था, तो इसी ने उससे भेंट करके उसे आशीष दी। इसी को अब्राहम ने सब वस्तुओं का दसवाँ अंश भी दिया। यह पहले अपने नाम के अर्थ के अनुसार, धर्म का राजा, और फिर शालेम अर्थात् शान्ति का राजा है। जिसका न पिता, न माता, न वंशावली है, जिसके दिनों का न आदि है और न जीवन का अन्त है; परन्तु परमेश्‍वर के पुत्र के स्वरूप ठहर कर वह सदा के लिये याजक बना रहता है। अब इस पर ध्यान करो कि वह कैसा महान् था जिसको कुलपति अब्राहम ने लूट के अच्छे से अच्छे माल का दसवाँ अंश दिया। लेवी की सन्तान में से जो याजक का पद पाते हैं, उन्हें आज्ञा मिली है कि लोगों, अर्थात् अपने भाइयों से, चाहे वे अब्राहम ही की देह से क्यों न जन्मे हों, व्यवस्था के अनुसार दसवाँ अंश लें। पर इसने, जो उनकी वंशावली में का भी न था, अब्राहम से दसवाँ अंश लिया, और जिसे प्रतिज्ञाएँ मिली थीं उसे आशीष दी। इसमें संदेह नहीं कि छोटा बड़े से आशीष पाता है। और यहाँ तो मरनहार मनुष्य दसवाँ अंश लेते हैं, पर वहाँ वही लेता है जिसकी गवाही दी जाती है कि वह जीवित है। तो हम यह भी कह सकते हैं कि लेवी ने भी, जो दसवाँ अंश लेता है, अब्राहम के द्वारा दसवाँ अंश दिया। क्योंकि जिस समय मलिकिसिदक ने उसके पिता से भेंट की, उस समय वह अपने पिता की देह में था। यदि लेवीय याजक पद के द्वारा सिद्धि प्राप्‍त हो सकती (जिसके सहारे लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्या आवश्यकता थी कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए? क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है, तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है। क्योंकि जिसके विषय में ये बातें कही जाती हैं कि वह दूसरे गोत्र का है, जिसमें से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की, तो प्रगट है कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है, और इस गोत्र के विषय में मूसा ने याजक पद की कुछ चर्चा नहीं की। हमारा दावा और भी स्पष्‍टता से प्रगट हो जाता है, जब मलिकिसिदक के समान एक और याजक उत्पन्न हो जाता है, जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ्य के अनुसार नियुक्‍त हुआ हो। क्योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है, “तू मलिकिसिदक की रीति पर युगानुयुग याजक है।” इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल और निष्फल होने के कारण लोप हो गई (इसलिये कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं की), और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिसके द्वारा हम परमेश्‍वर के समीप जा सकते हैं। मसीह की नियुक्‍ति बिना शपथ नहीं हुई, क्योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए पर यह शपथ के साथ उसकी ओर से नियुक्‍त किया गया जिसने उसके विषय में कहा, “प्रभु ने शपथ खाई, और वह उससे फिर न पछताएगा कि तू युगानुयुग याजक है”। इस प्रकार यीशु एक उत्तम वाचा का जामिन ठहरा। वे तो बहुत बड़ी संख्या में याजक बनते आए, इसका कारण यह था कि मृत्यु उन्हें रहने नहीं देती थी; पर यह युगानुयुग रहता है, इस कारण उसका याजक पद अटल है। इसी लिये जो उसके द्वारा परमेश्‍वर के पास आते हैं, वह उनका पूरा पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिये विनती करने को सर्वदा जीवित है। अत: ऐसा ही महायाजक हमारे योग्य था जो पवित्र, और निष्कपट, और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊँचा किया हुआ हो। उन महायाजकों के समान उसे आवश्यक नहीं कि प्रतिदिन पहले अपने पापों और फिर लोगों के पापों के लिये बलिदान चढ़ाए; क्योंकि उसने अपने आप को बलिदान चढ़ाकर उसे एक ही बार में पूरा कर दिया। क्योंकि व्यवस्था तो निर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्‍त करती है, परन्तु उस शपथ का वचन, जो व्यवस्था के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्‍त करता है जो युगानुयुग के लिये सिद्ध किया गया है।

इब्रानियों 7:1-28 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

यह मलिकिसिदक शालेम का राजा, और परमप्रधान परमेश्वर का याजक, जब अब्राहम राजाओं को मारकर लौटा जाता था, तो इसी ने उससे भेंट करके उसे आशीष दी, इसी को अब्राहम ने सब वस्तुओं का दसवाँ अंश भी दिया। यह पहले अपने नाम के अर्थ के अनुसार, धार्मिकता का राजा और फिर शालेम अर्थात् शान्ति का राजा है। जिसका न पिता, न माता, न वंशावली है, जिसके न दिनों का आदि है और न जीवन का अन्त है; परन्तु परमेश्वर के पुत्र के स्वरूप ठहरकर वह सदा के लिए याजक बना रहता है। अब इस पर ध्यान करो कि यह कैसा महान था जिसको कुलपति अब्राहम ने अच्छे से अच्छे माल की लूट का दसवाँ अंश दिया। लेवी की सन्तान में से जो याजक का पद पाते हैं, उन्हें आज्ञा मिली है, कि लोगों, अर्थात् अपने भाइयों से, चाहे वे अब्राहम ही की देह से क्यों न जन्मे हों, व्यवस्था के अनुसार दसवाँ अंश लें। (गिन. 18:21) पर इसने, जो उनकी वंशावली में का भी न था अब्राहम से दसवाँ अंश लिया और जिसे प्रतिज्ञाएँ मिली थीं उसे आशीष दी। और उसमें संदेह नहीं, कि छोटा बड़े से आशीष पाता है। और यहाँ तो मरनहार मनुष्य दसवाँ अंश लेते हैं पर वहाँ वही लेता है, जिसकी गवाही दी जाती है, कि वह जीवित है। तो हम यह भी कह सकते हैं, कि लेवी ने भी, जो दसवाँ अंश लेता है, अब्राहम के द्वारा दसवाँ अंश दिया। क्योंकि जिस समय मलिकिसिदक ने उसके पिता से भेंट की, उस समय यह अपने पिता की देह में था। (उत्प. 14:18-20) तब यदि लेवीय याजकपद के द्वारा सिद्धि हो सकती है (जिसके सहारे से लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्या आवश्यकता थी, कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए? क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है। क्योंकि जिसके विषय में ये बातें कही जाती हैं, वह दूसरे गोत्र का है, जिसमें से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की। तो प्रगट है, कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है और इस गोत्र के विषय में मूसा ने याजकपद की कुछ चर्चा नहीं की। (उत्प. 49:10, यशा. 11:1) हमारा दावा और भी स्पष्टता से प्रकट हो जाता है, जब मलिकिसिदक के समान एक और ऐसा याजक उत्पन्न होनेवाला था। जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्था के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्थ्य के अनुसार नियुक्त हो। क्योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है, “तू मलिकिसिदक की रीति पर युगानुयुग याजक है।” इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई। (इसलिए कि व्यवस्था ने किसी बात की सिद्धि नहीं की) और उसके स्थान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिसके द्वारा हम परमेश्वर के समीप जा सकते हैं। और इसलिए मसीह की नियुक्ति बिना शपथ नहीं हुई। क्योंकि वे तो बिना शपथ याजक ठहराए गए पर यह शपथ के साथ उसकी ओर से नियुक्त किया गया जिसने उसके विषय में कहा, “प्रभु ने शपथ खाई, और वह उससे फिर न पछताएगा, कि तू युगानुयुग याजक है।” इस कारण यीशु एक उत्तम वाचा का जामिन ठहरा। वे तो बहुत से याजक बनते आए, इसका कारण यह था कि मृत्यु उन्हें रहने नहीं देती थी। पर यह युगानुयुग रहता है; इस कारण उसका याजकपद अटल है। इसलिए जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते हैं, वह उनका पूरा-पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उनके लिये विनती करने को सर्वदा जीवित है। (1 यूह. 2:1,2, 1 तीमु. 2:5) क्योंकि ऐसा ही महायाजक हमारे योग्य था, जो पवित्र, और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग, और स्वर्ग से भी ऊँचा किया हुआ हो। और उन महायाजकों के समान उसे आवश्यक नहीं कि प्रतिदिन पहले अपने पापों और फिर लोगों के पापों के लिये बलिदान चढ़ाए; क्योंकि उसने अपने आपको बलिदान चढ़ाकर उसे एक ही बार निपटा दिया। (लैव्य. 16:6, इब्रा. 10:10-14) क्योंकि व्यवस्था तो निर्बल मनुष्यों को महायाजक नियुक्त करती है; परन्तु उस शपथ का वचन जो व्यवस्था के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्त करता है जो युगानुयुग के लिये सिद्ध किया गया है।

इब्रानियों 7:1-28 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

परम प्रधान परमेश्वर के पुरोहित शालेम नगर के राजा मेलखीज़ेदेक ने अब्राहाम से उस समय भेंट की और उन्हें आशीष दी, जब अब्राहाम राजाओं को हरा करके लौट रहे थे, उन्हें अब्राहाम ने युद्ध में प्राप्‍त हुई सामग्री का दसवां अंश भेंट किया. मेलखीज़ेदेक नाम का प्राथमिक अर्थ है “धार्मिकता के राजा”; तथा दूसरा अर्थ होगा “शांति के राजा” क्योंकि वह “शालेम नगर के राजा” थे. किसी को भी मेलखीज़ेदेक की वंशावली के विषय में कुछ भी मालूम नहीं है जिसका न पिता न माता न वंशावली है, जिसके न दिनों का आदि है और न जीवन का अंत है, परमेश्वर के पुत्र के समान वह अनंत काल के पुरोहित हैं. अब विचार करो कि कैसे महान थे यह व्यक्ति, जिन्हें हमारे गोत्रपिता अब्राहाम ने युद्ध में प्राप्‍त हुई वस्तुओं का सबसे अच्छा दसवां अंश भेंट किया! मोशेह के द्वारा प्रस्तुत व्यवस्था में लेवी के वंशजों के लिए, जो पुरोहित के पद पर चुने गए हैं, यह आज्ञा है कि वे सब लोगों से दसवां अंश इकट्ठा करें अर्थात् उनसे, जो उनके भाई हैं—अब्राहाम की संतान. किंतु उन्होंने, जिनकी वंशावली किसी को मालूम नहीं, अब्राहाम से दसवां अंश प्राप्‍त किया तथा उनको आशीष दी, जिनसे प्रतिज्ञाएं की गई थी. यह एक विवाद रहित सच है कि छोटा बड़े से आशीर्वाद प्राप्‍त करता है. इस संदर्भ में पुरोहित जो मर जानेवाला मनुष्य है, दसवां अंश प्राप्‍त करते हैं किंतु यहां इसको पानेवाले मेलखीज़ेदेक के विषय में यह कहा गया है कि वह जीवित हैं. इसलिये यह कह सकता है कि लेवी ने भी, जो दसवां अंश प्राप्‍त करता है, उस समय दसवां अंश दिया, जब अब्राहाम ने मेलखीज़ेदेक को दसवां अंश भेंट किया, जब मेलखीज़ेदेक ने अब्राहाम से भेंट की, उस समय तो लेवी का जन्म भी नहीं हुआ था—वह अपने पूर्वज के शरीर में ही थे. अब यदि सिद्धि (या पूर्णता) लेवी याजकता के माध्यम से प्राप्‍त हुई—क्योंकि इसी के आधार पर लोगों ने व्यवस्था प्राप्‍त की थी—तब एक ऐसे पुरोहित की क्या ज़रूरत थी, जिसका आगमन मेलखीज़ेदेक की श्रृंखला में हो, न कि हारोन की श्रृंखला में? क्योंकि जब कभी पुरोहित पद बदला जाता है, व्यवस्था में बदलाव भी आवश्यक हो जाता है. यह सब हम उनके विषय में कह रहे हैं, जो एक दूसरे गोत्र के थे. उस गोत्र के किसी भी व्यक्ति ने वेदी पर पुरोहित के रूप में सेवा नहीं की. यह तो प्रकट है कि हमारे प्रभु यहूदाह गोत्र से थे. मोशेह ने इस गोत्र से पुरोहितों के होने का कहीं कोई वर्णन नहीं किया. मेलखीज़ेदेक के समान एक अन्य पुरोहित के आगमन से यह और भी अधिक साफ़ हो जाता है, मेलखीज़ेदेक शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति की व्यवस्था के आधार पर नहीं परंतु एक अविनाशी जीवन के सामर्थ्य के आधार पर पुरोहित बने थे क्योंकि इस विषय में मसीह येशु से संबंधित यह पुष्टि की गई: “तुम मेलखीज़ेदेक की श्रृंखला में, एक अनंत काल के पुरोहित हो.” एक ओर पहली आज्ञा का बहिष्कार उसकी दुर्बलता तथा निष्फलता के कारण कर दिया गया. क्योंकि व्यवस्था सिद्धता की स्थिति लाने में असफल रहीं—दूसरी ओर अब एक उत्तम आशा का उदय हो रहा है, जिसके द्वारा हम परमेश्वर की उपस्थिति में पहुंचते हैं. यह सब शपथ लिए बिना नहीं हुआ. वास्तव में पुरोहितों की नियुक्ति बिना किसी शपथ के होती थी किंतु मसीह की नियुक्ति उनकी शपथ के द्वारा हुई, जिन्होंने उनके विषय में कहा: “प्रभु ने शपथ ली है और वह अपना विचार परिवर्तित नहीं करेंगे: ‘तुम अनंत काल के पुरोहित हो.’ ” इसका मतलब यह हुआ कि मसीह येशु एक उत्तम वाचा के जमानतदार बन गए हैं. एक पूर्व में पुरोहितों की संख्या ज्यादा होती थी क्योंकि हर एक पुरोहित की मृत्यु के साथ उसकी सेवा समाप्‍त हो जाती थी; किंतु दूसरी ओर मसीह येशु, इसलिये कि वह अनंत काल के हैं, अपने पद पर स्थायी हैं. इसलिये वह उनके उद्धार के लिए सामर्थ्यी हैं, जो उनके माध्यम से परमेश्वर के पास आते हैं क्योंकि वह अपने विनती करनेवालों के पक्ष में पिता के सामने निवेदन प्रस्तुत करने के लिए सदा-सर्वदा जीवित हैं. हमारे पक्ष में सही यह था कि हमारे महापुरोहित पवित्र, निर्दोष, त्रुटिहीन, पापियों से अलग किए हुए तथा स्वर्ग से भी अधिक ऊंचे हों. इन्हें प्रतिदिन, पहले तो स्वयं के पापों के लिए, इसके बाद लोगों के पापों के लिए बलि भेंट करने की ज़रूरत ही नहीं थी क्योंकि इसकी पूर्ति उन्होंने एक ही बार अपने आपको बलि के रूप में भेंट कर हमेशा के लिए कर दी. व्यवस्था, महापुरोहितों के रूप में मनुष्यों को चुनता है, जो मानवीय दुर्बलताओं में सीमित होते हैं किंतु शपथ के वचन ने, जो व्यवस्था के बाद प्रभावी हुई, एक पुत्र को चुना, जिन्हें अनंत काल के लिए सिद्ध बना दिया गया.