सभा-उपदेशक 8:2-15

सभा-उपदेशक 8:2-15 पवित्र बाइबल (HERV)

मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम्हें सदा ही राजा की आज्ञा माननी चाहिये। ऐसा इसलिये करो क्योंकि तुमने परमेश्वर को वचन दिया था। राजा के आगे जल्दी मत करो। उसके सामने से हट जाओ। यदि हालात प्रतिकूल हो तो उसके इर्द—गिर्द मत रहो क्योंकि वह तो वही करेगा जो उसे अच्छा लगेगा। आज्ञाएँ देने का राजा को अधिकार है, कोई नहीं पूछ सकता कि वह क्या कर रहा है। यदि राजा आज्ञा का पालन करता है तो वह सुरक्षित रहेगा। किन्तु एक बुद्धिमान व्यक्ति ऐसा करने का उचित समय जानता है और वह यह भी जानता है कि समुचित बात कब करनी चाहिये। उचित कार्य करने का किसी व्यक्ति के लिये एक ठीक समय होता है और एक ठीक प्रकार। प्रत्येक व्यक्ति को एक अवसर लेना चाहिये उसे निश्चित करना चाहिये कि उसे क्या करना है? और फिर अनेक विपत्तियों के होने पर भी उसे वह करना चाहिये। आगे चलकर क्या होगा, यह निश्चित नहीं होने पर भी उसे वह करना चाहिये। क्योंकि भविष्य में क्या होगा यह तो उसे कोई बता ही नहीं सकता। आत्मा को इस देह को छोड़कर जाने से कोई नहीं रोके रख सकता है। अपनी मृत्यु को रोक दें, ऐसी शक्ति तो किसी भी व्यक्ति में नहीं है। जब युद्ध चल रहा हो तो किसी भी सैनिक को यह स्वतंत्रता नहीं है कि वह जहाँ चाहे वहाँ चला जाये। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति पाप करता है तो वह पाप उस व्यक्ति को स्वतंत्रत नहीं रहने देता। मैंने ये सब बातें देखी हैं। इस जगत में कुछ घटता है उन बातों के बारे में मैंने बड़ी तीव्रता से सोचा है और मैंने देखा है कि लोग दूसरे व्यक्तियों पर शासन करने की शक्ति पाने के लिये सदा संघर्ष करते रहते हैं और लोगों को कष्ट पहुँचाते रहते हैं। मैंने उन बुरे व्यक्तियों के बहुत सजे धजे और विशाल शव—यात्रायें देखी हैं जो पवित्र स्थानों में आया जाया करते थे। शव— यात्राओं की क्रियाओं के बाद लोग जब घर लौटते हैं तो वे जो बुरा व्यक्ति मर चुका है उसके बारे में अच्छी अच्छी बातें कहा करते हैं और ऐसा उसी नगर में हुआ करता है जहाँ उसे बुरे व्यक्ति ने बहुत—बहुत बुरे काम किये हैं। यह अर्थहीन है। कभी कभी लोगों ने जो बुरे काम किये हैं, उनके लिये उन्हें तुरंत दण्ड नहीं मिलता। उन पर दण्ड धीरे धीरे पड़ता है और इसके कारण दूसरे लोग भी बुरे कर्म करना चाहने लगते हैं। कोई पापी चाहे सैकड़ों पाप करे और चाहे उसकी आयु कितनी ही लम्बी हो किन्तु मैं यह जानता हूँ कि तो भी परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना और उसका सम्मान करना उत्तम है। बुरे लोग परमेश्वर का सम्मान नहीं करते। सो ऐसे लोग वास्तव में अच्छी वस्तुओं को प्राप्त नहीं करते। वे बुरे लोग अधिक समय तक जीवित नहीं रहेंगे। उनके जीवन डूबते सूरज में लम्बी से लम्बी होती जाती छायाओं के सामान बड़े नहीं होंगे। इस धरती पर एक बात और होती है जो मुझे न्याय संगत नहीं लगती। बुरे लोगों के साथ बुरे बातें घटनी चाहियें और अच्छे लोगों के साथ अच्छी बातें। किन्तु कभी—कभी अच्छे लोगों के साथ बुरी बातें घटती है और बुरे लोगों के साथ अच्छी बातें। यह तो न्याय नहीं है। सो मैंने निश्चय किया कि जीवन का आनन्द लेना अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस जीवन में एक व्यक्ति जो सबसे अच्छी बात कर सकता है वह है खाना, पीना और जीवन का रस लेना। इससे कम से कम व्यक्ति को इस धरती पर उसके जीवन के दौरान परमेश्वर ने करने के लिये जो कठिन काम दिया है उसका आनन्द लेने मे सहायता मिलेगी।

सभा-उपदेशक 8:2-15 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

राजा की आज्ञा का पालन करो, अपनी पवित्र शपथ के कारण मत भयभीत हो। उसके सम्‍मुख से चले जाओ; यदि वह किसी बात से अप्रसन्न है तो तुम वहाँ मत ठहरो; क्‍योंकि राजा जैसा चाहता है वैसा करता है। राजा के शब्‍दों में परम सत्ता होती है। राजा से कौन पूछ सकता है, ‘आप यह क्‍या कर रहे हैं?’ जो व्यक्‍ति राजा की आज्ञा का पालन करता है, उसका अनिष्‍ट नहीं होता। बुद्धिमान मनुष्‍य उपयुक्‍त समय और उपयुक्‍त कार्य-विधि जानता है। प्रत्‍येक बात का उपयुक्‍त समय और उसकी उपयुक्‍त कार्य-विधि होती है, यद्यपि मनुष्‍य की बुराई उसके लिए बहुत भारी पड़ती है। मनुष्‍य यह नहीं जानता है कि क्‍या होने वाला है, क्‍योंकि कौन व्यक्‍ति उसे भविष्‍य में घटनेवाली बातें बता सकता है? ऐसा कौन मनुष्‍य है जिसका वश प्राण पर चले, और वह प्राण के निकलते समय उसको रोक ले? मृत्‍यु के दिन पर मरनेवाले का अधिकार नहीं होता। युद्ध से छुटकारा नहीं मिलता, और न दुर्जन व्यक्‍ति अपनी दुर्जनता के कारण मृत्‍यु से बच सकता है। जब मैंने सूर्य के नीचे धरती पर होनेवाली बातों पर गम्‍भीरतापूर्वक अपना मन लगाया, तब मैंने यह देखा: जब एक मनुष्‍य दूसरे मनुष्‍य पर प्रभुत्‍व जमाता है तब वह स्‍वयं का अनिष्‍ट करता है। तब मैंने दुर्जनों को कबर में गाड़े जाते हुए देखा। वे पवित्र स्‍थान में आते जाते थे। नगर में जहाँ उन्‍होंने नाना प्रकार के दुष्‍कर्म किए थे, उनकी प्रशंसा की जाती थी। यह भी व्‍यर्थ है। दुष्‍कर्म के लिए व्यक्‍ति को जल्‍दी दण्‍ड नहीं मिलता, इसलिए मनुष्‍यों का हृदय दुष्‍कर्म करने में लगा रहता है। यद्यपि पापी मनुष्‍य सौ बार दुष्‍कर्म करता है, और उसे दण्‍ड नहीं मिलता, वह लम्‍बी उम्र तक जीवित रहता है, तथापि मैं यह जानता हूं कि परमेश्‍वर से डरनेवालों का अन्‍त में भला ही होता है। परमेश्‍वर उनका भला करता है, क्‍योंकि वे उससे डरते हैं। निस्‍सन्‍देह दुर्जन का अन्‍त में भला नहीं होगा, और न वह छाया के सदृश अपनी उम्र लम्‍बी कर सकेगा, क्‍योंकि वह परमेश्‍वर से नहीं डरता है। एक बात और : यह भी व्‍यर्थ है, और पृथ्‍वी पर होती है। धार्मिक व्यक्‍तियों को दुर्जन मनुष्‍यों के दुष्‍कर्मों का फल भुगतना पड़ता है, और दुर्जन मनुष्‍य धार्मिक व्यक्‍तियों के सत्‍कर्मों का फल प्राप्‍त करते हैं। अत: मैं कहता हूं, यह भी व्‍यर्थ है। इसलिए मैं लोगों को सलाह देता हूं: आनन्‍द मनाओ। सूर्य के नीचे धरती पर मनुष्‍य के लिए खाने-पीने और आनन्‍द मनाने के अतिरिक्‍त और कुछ भी अच्‍छा नहीं है। जो आयु परमेश्‍वर ने उसे इस धरती पर प्रदान की है, उसके परिश्रम में यही आनन्‍द विद्यमान रहेगा।

सभा-उपदेशक 8:2-15 Hindi Holy Bible (HHBD)

मैं तुझे सम्मति देता हूं कि परमेश्वर की शपथ के कारण राजा की आज्ञा मान। राजा के साम्हने से उतावली के साथ न लौटना और न बुरी बात पर हठ करना, क्योंकि वह जो कुछ चाहता है करता है। क्योंकि राजा के वचन में तो सामर्थ्य रहती है, और कौन उस से कह सकता है कि तू क्या करता है? जो आज्ञा को मानता है, वह जोखिम से बचेगा, और बुद्धिमान का मन समय और न्याय का भेद जानता है। क्योंकि हर एक विषय का समय और नियम होता है, यद्यिप मनुष्य का दु:ख उसके लिये बहुत भारी होता है। वह नहीं जानता कि क्या होने वाला है, और कब होगा? यह उसको कौन बता सकता है? ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसका वश प्राण पर चले कि वह उसे निकलते समय रोक ले, और न कोई मृत्यु के दिन पर अधिकारी होता है; और न उसे लड़ाई से छृट्टी मिल सकती है, और न दुष्ट लोग अपनी दुष्टता के कारण बच सकते हैं। जितने काम धरती पर किए जाते हैं उन सब को ध्यानपूर्वक देखने में यह सब कुछ मैं ने देखा, और यह भी देखा कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी हो कर अपने ऊपर हानि लाता है॥ तब मैं ने दुष्टों को गाड़े जाते देखा; अर्थात उनकी तो कब्र बनी, परन्तु जिन्होंने ठीक काम किया था वे पवित्रस्थान से निकल गए और उनका स्मरण भी नगर में न रहा; यह भी व्यर्थ ही है। बुरे काम के दण्ड की आज्ञा फुर्ती से नहीं दी जाती; इस कारण मनुष्यों का मन बुरा काम करने की इच्छा से भरा रहता है। चाहे पापी सौ बार पाप करे अपने दिन भी बढ़ाए, तौभी मुझे निश्चय है कि जो परमेश्वर से डरते हैं और अपने तईं उसको सम्मुख जानकर भय से चलते हैं, उनका भला ही होगा; परन्तु दुष्ट का भला नहीं होने का, और न उसकी जीवनरूपी छाया लम्बी होने पाएगी, क्योंकि वह परमेश्वर का भय नहीं मानता॥ एक व्यर्थ बात पृथ्वी पर होती है, अर्थात ऐसे धर्मी हैं जिनकी वह दशा होती है जो दुष्टों की होनी चाहिये, और ऐसे दुष्ट हैं जिनकी वह दशा होती है हो धर्मियों की होनी चाहिये। मैं ने कह कि यह भी व्यर्थ ही है। तब मैं ने आनन्द को सराहा, क्योंकि सूर्य के नीचे मनुष्य के लिये खाने-पीने और आनन्द करने को छोड़ और कुछ भी अच्छा नहीं, क्योंकि यही उसके जीवन भर जो परमेश्वर उसके लिये धरती पर ठहराए, उसके परिश्रम में उसके संग बना रहेगा॥

सभा-उपदेशक 8:2-15 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

मैं तुझे सम्मति देता हूँ कि परमेश्‍वर की शपथ के कारण राजा की आज्ञा मान। राजा के सामने से उतावली के साथ न लौटना और न बुरी बात पर हठ करना, क्योंकि वह जो कुछ चाहता है करता है। क्योंकि राजा के वचन में तो सामर्थ्य रहती है, और कौन उससे कह सकता है कि तू क्या करता है? जो आज्ञा को मानता है, वह जोखिम से बचेगा, और बुद्धिमान का मन समय और न्याय का भेद जानता है। क्योंकि हर एक विषय का समय और नियम होता है, यद्यपि मनुष्य का दु:ख उसके लिये बहुत भारी होता है। वह नहीं जानता कि क्या होनेवाला है, और कब होगा? यह उसको कौन बता सकता है? ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसका वश प्राण पर चले कि वह उसे निकलते समय रोक ले, और न कोई मृत्यु के दिन पर अधिकारी होता है; और न उसे लड़ाई से छुट्टी मिल सकती है, और न दुष्‍ट लोग अपनी दुष्‍टता के कारण बच सकते हैं। जितने काम धरती पर किए जाते हैं उन सब को ध्यानपूर्वक देखने में यह सब कुछ मैं ने देखा, और यह भी देखा कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है। तब मैं ने दुष्‍टों को गाड़े जाते देखा; अर्थात् उनकी तो क़ब्र बनी, परन्तु जिन्होंने ठीक काम किया था वे पवित्रस्थान से निकल गए और उनका स्मरण भी नगर में न रहा; यह भी व्यर्थ ही है। बुरे काम के दण्ड की आज्ञा फुर्ती से नहीं दी जाती; इस कारण मनुष्यों का मन बुरा काम करने की इच्छा से भरा रहता है। चाहे पापी सौ बार पाप करे और अपने दिन भी बढ़ाए, तौभी मुझे निश्‍चय है कि जो परमेश्‍वर से डरते हैं और उसको अपने सम्मुख जानकर भय से चलते हैं, उनका भला ही होगा; परन्तु दुष्‍ट का भला नहीं होने का, और न उसकी जीवनरूपी छाया लम्बी होने पाएगी, क्योंकि वह परमेश्‍वर का भय नहीं मानता। एक व्यर्थ बात पृथ्वी पर होती है, अर्थात् ऐसे धर्मी हैं जिनकी वह दशा होती है जो दुष्‍टों की होनी चाहिये, और ऐसे दुष्‍ट हैं जिनकी वह दशा होती है जो धर्मियों की होनी चाहिए। मैं ने कहा कि यह भी व्यर्थ ही है। तब मैं ने आनन्द को सराहा, क्योंकि सूर्य के नीचे मनुष्य के लिये खाने–पीने और आनन्द करने को छोड़ और कुछ भी अच्छा नहीं, क्योंकि यही उसके जीवन भर जो परमेश्‍वर उसके लिये धरती पर ठहराए, उसके परिश्रम में उसके संग बना रहेगा।

सभा-उपदेशक 8:2-15 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

मैं तुझे सलाह देता हूँ कि परमेश्वर की शपथ के कारण राजा की आज्ञा मान। राजा के सामने से उतावली के साथ न लौटना और न बुरी बात पर हठ करना, क्योंकि वह जो कुछ चाहता है करता है। क्योंकि राजा के वचन में तो सामर्थ्य रहती है, और कौन उससे कह सकता है कि तू क्या करता है? जो आज्ञा को मानता है, वह जोखिम से बचेगा, और बुद्धिमान का मन समय और न्याय का भेद जानता है। क्योंकि हर एक विषय का समय और नियम होता है, यद्यपि मनुष्य का दुःख उसके लिये बहुत भारी होता है। वह नहीं जानता कि क्या होनेवाला है, और कब होगा? यह उसको कौन बता सकता है? ऐसा कोई मनुष्य नहीं जिसका वश प्राण पर चले कि वह उसे निकलते समय रोक ले, और न कोई मृत्यु के दिन पर अधिकारी होता है; और न उसे लड़ाई से छुट्टी मिल सकती है, और न दुष्ट लोग अपनी दुष्टता के कारण बच सकते हैं। जितने काम सूर्य के नीचे किए जाते हैं उन सब को ध्यानपूर्वक देखने में यह सब कुछ मैंने देखा, और यह भी देखा कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है। फिर मैंने दुष्टों को गाड़े जाते देखा, जो पवित्रस्थान में आया-जाया करते थे और जिस नगर में वे ऐसा करते थे वहाँ उनका स्मरण भी न रहा; यह भी व्यर्थ ही है। बुरे काम के दण्ड की आज्ञा फुर्ती से नहीं दी जाती; इस कारण मनुष्यों का मन बुरा काम करने की इच्छा से भरा रहता है। चाहे पापी सौ बार पाप करे अपने दिन भी बढ़ाए, तो भी मुझे निश्चय है कि जो परमेश्वर से डरते हैं और उसको सम्मुख जानकर भय से चलते हैं, उनका भला ही होगा; परन्तु दुष्ट का भला नहीं होने का, और न उसकी जीवनरूपी छाया लम्बी होने पाएगी, क्योंकि वह परमेश्वर का भय नहीं मानता। एक व्यर्थ बात पृथ्वी पर होती है, अर्थात् ऐसे धर्मी हैं जिनकी वह दशा होती है जो दुष्टों की होनी चाहिये, और ऐसे दुष्ट हैं जिनकी वह दशा होती है जो धर्मियों की होनी चाहिये। मैंने कहा कि यह भी व्यर्थ ही है। तब मैंने आनन्द को सराहा, क्योंकि सूर्य के नीचे मनुष्य के लिये खाने-पीने और आनन्द करने को छोड़ और कुछ भी अच्छा नहीं, क्योंकि यही उसके जीवन भर जो परमेश्वर उसके लिये सूर्य के नीचे ठहराए, उसके परिश्रम में उसके संग बना रहेगा।

सभा-उपदेशक 8:2-15 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

दार्शनिक कहता है, परमेश्वर के सामने ली गई शपथ के कारण राजा की आज्ञा का पालन करो. उनके सामने से जाने में जल्दबाजी न करना और बुरी बातों पर हठ न करना, क्योंकि राजा वही करेंगे जो उनकी नज़रों में सही होगा. राजा की बातों में तो अधिकार होता है, उन्हें कौन कहेगा, “आप क्या कर रहे हैं?” जो व्यक्ति आज्ञा का पालन करता है, बुरा उसका भी न होगा, क्योंकि बुद्धिमान हृदय को सही समय और सही तरीका मालूम होता है. क्योंकि हर एक खुशी के लिए सही समय और तरीका होता है, फिर भी एक व्यक्ति पर भारी संकट आ ही जाता है. अगर किसी व्यक्ति को यह ही मालूम नहीं है कि क्या होगा, तो कौन उसे बता सकता है कि क्या होगा? वायु को रोकने का अधिकार किसके पास है? और मृत्यु के दिन पर अधिकार कौन रखता है? युद्ध के समय छुट्टी नहीं होती, और जो बुराई करते हैं वे इसके प्रभाव से कैसे बचेंगे. यह सब देख मैंने अपने हृदय को सूरज के नीचे किए जा रहे हर एक काम पर लगाया जब एक मनुष्य दूसरे मनुष्य की बुराई के लिए उसके अधिकार का इस्तेमाल करता है. सो मैंने दुष्टों को गाड़े जाते देखा. वे पवित्र स्थान में आते जाते थे. किंतु जहां वे ऐसा करते थे जल्द ही उस नगर ने उन्हें भुला दिया. यह भी बेकार ही है. बुरे काम के दंड की आज्ञा जल्दबाजी में नहीं दी जाती, इसलिये मनुष्य का हृदय बुराई करने में हमेशा लगा रहता है, चाहे पापी हज़ार बार बुरा करें और अपने जीवन को बढ़ाते रहें, मगर मुझे मालूम है कि जिनमें परमेश्वर के लिए श्रद्धा और भय की भावना है उनका भला ही होगा, क्योंकि उनमें परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और भय की भावना हैं. मगर दुष्ट के साथ अच्छा न होगा और न ही वह परछाई के समान अपने सारे जीवन को बड़ा कर सकेगा, क्योंकि उसमें परमेश्वर के लिए श्रद्धा और भय की भावना नहीं है. पृथ्वी पर एक और बात बेकार होती है: धर्मियों के साथ दुष्टों द्वारा किए गए कामों के अनुसार घटता है और दुष्टों के साथ धर्मियों द्वारा किए गए कामों के अनुसार. मैंने कहा कि यह भी बेकार ही है. सो मैं आनंद की तारीफ़ करता हूं, सूरज के नीचे मनुष्य के लिए इससे अच्छा कुछ नहीं है कि वह खाए-पिए और खुश रहे क्योंकि सूरज के नीचे परमेश्वर द्वारा दिए गए उसके जीवन भर में उसकी मेहनत के साथ यह हमेशा रहेगा.