1 राजा 6:1-38

1 राजा 6:1-38 पवित्र बाइबल (HERV)

तब सुलैमान ने मन्दिर बनाना आरम्भ किया। यह इस्राएल के लोगों द्वारा मिस्र छोड़ने के चार सौ अस्सीवाँ वर्ष बाद था। यह राजा सुलैमान के इस्राएल पर शासन के चौथे वर्ष में था। यह वर्ष के दूसरे महीने जिव के माह में था। मन्दिर नब्बे फुट लम्बा, तीस फुट चौड़ा और पैंतालीस फुट ऊँचा था। मन्दिर का द्वार मण्डप तीस फुट लम्बा और पन्द्रह फुट चौड़ा था। यह द्वारमण्डप मन्दिर के ही मुख्य भाग के सामने तक फैला था। इसकी लम्बाई मन्दिर की चौड़ाई के बराबर थी। मन्दिर में संकरी खिड़कियाँ थीं। ये खिड़कियाँ बाहर की ओर संकरी और भीतर की ओर चौड़ी थीं। तब सुलैमान ने मन्दिर के मुख्य भाग के चारों ओर कमरों की एक पंक्ति बनाई। ये कमरे एक दूसरे की छत पर बने थे। कमरों की यह पंक्ति तीन मंजिल ऊँची थी। कमरे मन्दिर की दीवार से सटे थे किन्तु उनकी शहतीरें उसकी दीवार में नहीं घुसी थीं। शिखर पर, मन्दिर की दीवार पतली हो गई थी। इसलिये उन कमरों की एक ओर की दीवार उसके नीचे की दीवार से पतली थी। नीचे की मंजिल के कमरे साढ़े सात फुट चौड़े थे। बीच की मंजिल के कमरे नौ फुट चौड़े थे। उसके ऊपर के कमरे दस—बारह फुट चौड़े थे। कारीगरों ने दीवारों को बनाने के लिये बड़े पत्थरों का उपयोग किया। कारीगरों ने उसी स्थान पर पत्थरों को काटा जहाँ उन्होंने उन्हें जमीन से निकाला। इसलिए मन्दिर में हथौड़ी, कुल्हाड़ियों और अन्य किसी भी लोहे के औजार की खटपट नहीं हुई। नीचे के कमरों का प्रवेश द्वार मन्दिर के दक्षिण की ओर था। भीतर सीढ़ियाँ थीं जो दूसरे मंजिल के कमरों और तब तीसरे मंजिल के कमरों तक जाती थी। इस प्रकार सुलैमान ने मन्दिर बनाना पूरा किया। मन्दिर का हर एक भाग देवदारु के तख्तों से मढ़ा गया था। सुलैमान ने मन्दिर के चारों ओर कमरों का बनाना भी पूरा किया। हर एक मंजिल साढ़े सात फुट ऊँची थी। उन कमरों की शहतीरें मन्दिर को छूती थीं। यहोवा ने सुलैमान से कहा, “यदि तुम मेरे सभी नियमों और आदेशों का पालन करोगे तो मैं वह सब करूँगा जिसके लिये मैंने तुम्हारे पिता दाऊद से प्रतिज्ञा की थी और मैं इस्राएल के लोगों को कभी छोड़ूँगा नहीं।” इस प्रकार सुलैमान ने मन्दिर का निर्माण पूरा किया। मन्दिर के भीतर पत्थर की दीवारें, देवदारु के तख्तों से मढ़ी गई थीं। देवदारु के तख्ते फर्श से छत तक थे। पत्थर का फर्श चीड़ के तख्तों से ढका था। उन्होंने मन्दिर के पिछले गहरे भाग में एक कमरा तीस फुट लम्बा बनाया। उन्होंने इस कमरे की दीवारों को देवदारु के तख्तों से मढ़ा। देवदारू के तख्ते फर्श से छत तक थे। यह कमरा सर्वाधिक पवित्र स्थान कहा जाता था। सर्वाधिक पवित्र स्थान के सामने मन्दिर का मुख्या भाग था। यह कमरा साठ फुट लम्बा था। उन्होंने इस कमरे की दीवारों को देवदारू के तख्तों से मढ़ा, दीवार का कोई भी पत्थर नहीं देखा जा सकता था। उन्होंने फूलों और कद्दू के चित्र देवदारु के तख्तों में नक्काशी की। सुलैमान ने मन्दिर के पीछे भीतर गहरे कमरे को तैयार किया। यह कमरा यहोवा के साक्षीपत्र के सन्दूक के लिये था। यह कमरा तीस फुट लम्बा तीस फुट चौड़ा और तीस फुट ऊँचा था। सुलैमान ने इस कमरे को शुद्ध सोने से मढ़ा। उसने इस कमरे के सामने एक सुगन्ध वेदी बनाई। उसने वेदी को सोने से मढ़ा और उसके चारों ओर सोने की जंजीरें लपेटीं। सारा मन्दिर सोने से मढ़ा था और सर्वाधिक पवित्र स्थान के सामने वेदी सोने से मढ़ी गई थी। कारीगरों ने पंख सहित दो करूब (स्वर्गदूतों) की मूर्तियाँ बनाईं। कारीगरों ने जैतून की लकड़ी से मूर्तियाँ बनाई। ये करूब (स्वर्गदूत) सर्वाधिक पवित्र स्थान में रखे गये। हर एक स्वर्गदूत पन्द्रह फुट ऊँचा था। वे दोनों करुब (स्वर्गदूत) एक ही माप के थे और एक ही शैली में बने थे। हर एक करूब (स्वर्गदूत) के दो पंख थे। हर एक पंख साढ़े सात फुट लम्बा था। एक पंख के सिरे से दूसरे पंख के सिरे तक पन्द्रह फुट था और हर एक करूब (स्वर्गदूत) पन्द्रह फुट ऊँचा था। ये करूब (स्वर्गदूत) सर्वाधिक पवित्र स्थान में रखे गए थे। वे एक दूसरे की बगल में खड़े थे। उनके पंख एक दूसरे को कमरे के मध्य में छूते थे। अन्य दो पंख हर एक बगल की दीवार को छूते थे। दोनों करूब (स्वर्गदूत) सोने से मढ़े गए थे। मुख्य कक्ष और भीतरी कक्ष के चारों ओर की दीवारों पर करूब (स्वर्गदूतों) ताड़ के वृक्षों और फूल के चित्र उकेरे गए थे। दोनों कमरों की फर्श सोने से मढ़ी गई थी। कारीगरों ने जैतून की लकड़ी के दो दरवाजे बनाये। उन्होंने उन दोनों दरवाजों को सर्वाधिक पवित्र स्थान के प्रवेश द्वार में लगाया। दरवाजों के चारों ओर की चौखट पाँच पहलदार बनी थी। उन्होंने दोनों दरवाजों को जैतून की लकड़ी का बनाया। कारीगरों ने दरवाजों पर करूब (स्वर्गदूतों), ताड़ के वृक्षों और फूलों के चित्रों को उकेरा। तब उन्होंने दरवाजों को सोने से मढ़ा। उन्होंने मुख्य कक्ष में प्रवेश के लिये भी दरवाजे बनाये। उन्होंने एक वर्गाकार दरवाजे की चौखट बनाने के लिये जैतून की लकड़ी का उपयोग किया। तब उन्होने दरवाजा बनाने के लिये चीड़ की लकड़ी का उपयोग किया। वहाँ दो दरवाजे थे। हर एक दरवाजे के दो भाग थे, अत: दोनों दरवाजे मुड़कर बन्द होते थे। उन्होंने दरवाजों पर करूब (स्वर्गदूत) ताड़ के वृक्षों और फूलों के चित्रों को उकेरा। तब उन्होंने उन्हें सोने से मढ़ा। तब उन्होंने भीतरी आँगन बनाया। उन्होंने इस आँगन के चारों ओर दीवारें बनाईं। हर एक दीवार कटे पत्थरों की तीन पँक्तियों और देवदारू की लकड़ी की एक पंक्ति से बनाई गई। उन्होंने वर्ष के दूसरे महीने जिब माह में मन्दिर का निर्माण आरम्भ किया। इस्राएल के लोगों पर सुलैमान के शासन के चौथे वर्ष में यह हुआ। मन्दिर का निर्माण वर्ष के आठवें महीने बूल माह मे पूरा हुआ। लोगों पर सुलैमान के शासन के ग्यारहवे वर्ष में यह हुआ था। मन्दिर के निर्माण में सात वर्ष लगे। मन्दिर ठीक उसी प्रकार बना था जैसा उसे बनाने की योजना थी।

1 राजा 6:1-38 पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) (HINCLBSI)

इस्राएली लोगों के मिस्र देश से बाहर निकलने के चार सौ अस्‍सी वर्ष व्‍यतीत हो चुके थे। इस्राएली राष्‍ट्र पर सुलेमान के राज्‍य-काल का चौथा वर्ष था। इस वर्ष के दूसरे महीने में, अर्थात् ज़िव महीने में, राजा सुलेमान ने प्रभु के लिए भवन का निर्माण-कार्य आरम्‍भ किया। जो भवन राजा सुलेमान ने प्रभु के लिए बनाया, वह सत्ताइस मीटर लम्‍बा, नौ मीटर चौड़ा और साढ़े तेरह मीटर ऊंचा था। मन्‍दिर के मध्‍य भाग के सम्‍मुख की ड्‍योढ़ी नौ मीटर चौड़ी थी। यह मन्‍दिर की चौड़ाई के बराबर थी। ड्‍योढ़ी मन्‍दिर के सम्‍मुख साढ़े चार मीटर लम्‍बी थी। सुलेमान ने भवन में जालीदार खिड़कियां भी बनाईं। उसने मध्‍यभाग और पवित्र अन्‍तर्गृह के चारों ओर, भवन की दीवार पर छत बनाई। उसने चारों ओर तोरण-पथ बनाए। निचला तोरण-पथ सवा दो मीटर चौड़ा था। मध्‍यवर्ती तोरण-पथ दो मीटर सत्तर सेंटीमीटर चौड़ा था। उपरला तोरण-पथ तीन मीटर और पन्‍द्रह सेंटीमीटर चौड़ा था। उसने मुख्‍य दीवार की बाहरी ओर, उसके चारों ओर सलामी छज्‍जे बनाए थे, जिससे भार सम्‍भालनेवाली बल्‍लियों को भवन की दीवारों में घुसाया न जाए। भवन के निर्माण में गढ़े हुए पत्‍थरों को प्रयुक्‍त किया गया। वे पत्‍थर खदानों में ही काट-छांट लिये गए थे। अत: निर्माण के समय लोहे के किसी औजार की, न हथौड़े की और न छेनी की आवाज भवन में सुनाई दी। निचले तोरण-पथ का प्रवेश-द्वार भवन की दाहिनी ओर के कोने में था। इस प्रवेश-द्वार पर एक जीना था, जो मध्‍यवर्ती तोरण-पथ को तथा मध्‍यवर्ती तोरण-पथ से उपरले तोरण-पथ को जाता था। यों सुलेमान ने भवन का निर्माण किया। उसने निर्माण-कार्य समाप्‍त किया। सुलेमान ने समस्‍त भवन पर सवा दो मीटर ऊंचा छज्‍जा बनाया था। उसने भवन को देवदार के स्‍तम्‍भों से जकड़ दिया था। देवदार की बल्‍लियों और तख्‍तों से उसकी छत तान दी गयी थी। प्रभु का यह वचन सुलेमान के पास पहुंचा, ‘जिस भवन का निर्माण तू कर रहा है, उसके विषय में मेरा यह वचन है : यदि तू मेरी संविधियों के अनुसार चलेगा, मेरे न्‍याय-सिद्धान्‍तों के अनुसार न्‍याय करेगा, मेरी सब आज्ञाओं को मानेगा, और उनके अनुसार आचरण करेगा, तो मैं अपने उस वचन को पूर्ण करूंगा, जो मैंने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया था। मैं इस्राएली राष्‍ट्र के मध्‍य निवास करूंगा। मैं अपने निज लोग इस्राएलियों का परित्‍याग नहीं करूंगा।’ यों सुलेमान ने भवन का निर्माण किया। उसने निर्माण-कार्य समाप्‍त किया। उसने भवन की भीतरी दीवारों पर देवदार के तख्‍ते मढ़वा दिए। उसने भवन के फर्श से छत की कड़ियों तक देवदार की लकड़ी से दीवारों को मढ़ दिया। उसने भवन के फर्श को सनोवर के तख्‍तों से मढ़ा। उसने भवन के सबसे भीतरी भाग में देवदार के तख्‍तों से एक कक्ष निर्मित किया। यह फर्श के छत की कड़ियों तक नौ मीटर ऊंचा था। उसने इस कक्ष को, पवित्र अन्‍तर्गृह ‘परम पवित्र स्‍थान,’ बनाया। पवित्र अन्‍तर्गृह के सम्‍मुख मध्‍यभाग अठारह मीटर लम्‍बा था। भवन के भीतर, देवदार पर नक्‍काशी की गई थी। उस पर बौंड़ियां और खिले हुए फूल काढ़े गए थे। सब ओर देवदार दिखाई देता था। एक भी पत्‍थर नजर नहीं आता था। सुलेमान ने प्रभु की विधान-मंजूषा को प्रतिष्‍ठित करने के लिए भवन के आन्‍तरिक भाग में पवित्र अन्‍तर्गृह निर्मित किया। यह पवित्र अन्‍तर्गृह नौ मीटर चाड़ा, नौ मीटर लम्‍बा और नौ मीटर ऊंचा था। उसने पवित्र अन्‍तर्गृह को शुद्ध सोने से मढ़ा। उसने देवदार की लकड़ी की एक वेदी भी बनाई। सुलेमान ने भवन के भीतरी भाग को शुद्ध सोने से मढ़ा। उसने पवित्र अन्‍तर्गृह के सम्‍मुख सोने की सांकलें लगाईं और एक परदा टांग दिया। उसने पवित्र अन्‍तर्गृह की सम्‍पूर्ण वेदी को भी सोने से मढ़ा। उसने सम्‍पूर्ण भवन को शुद्ध सोने से मढ़ कर भवन का निर्माण-कार्य पूर्ण किया। सुलेमान ने पवित्र अन्‍तर्गृह में जंगली जैतून वृक्ष की लकड़ी के दो करूब बनाए। प्रत्‍येक करूब की ऊंचाई साढ़े चार मीटर थी। करूबों के प्रत्‍येक पंख की लम्‍बाई सवा दो मीटर थी। एक पंख के सिरे से दूसरे पंख के सिरे तक की लम्‍बाई साढ़े चार मीटर थी। दूसरा करूब भी साढ़े चार मीटर ऊंचा था। दोनों करूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे। जैसे एक करूब की ऊंचाई साढ़े चार मीटर थी वैसे ही दूसरे करूब की ऊंचाई साढ़े चार मीटर थी। सुलेमान ने करूबों को भवन के पवित्र अन्‍तर्गृह में प्रतिष्‍ठित किया। करूबों के पंख यों फैले हुए थे कि एक करूब का पंख एक ओर दीवार को स्‍पर्श करता था, और दूसरे करूब का पंख दूसरी ओर दीवार को स्‍पर्श करता था। दोनों करूबों के दूसरे पंख कक्ष के मध्‍य में एक दूसरे को स्‍पर्श करते थे। उसने करूबों को सोने से मढ़ा। सुलेमान ने भवन की सब दीवारों पर, पवित्र अन्‍तर्गृह और मध्‍यभाग की दीवारों पर करूबों, खजूर के वृक्षों और खिले हुए फूलों की आकृतियां खोदकर बनाईं। उसने पवित्र अन्‍तर्गृह और मध्‍यभाग के फर्श को सोने से मढ़ा। उसने पवित अन्‍तर्गृह के प्रवेश-द्वार के लिए जंगली जैतून वृक्ष की लकड़ी के दो किवाड़ बनाए। चौखट के बाजू पंच-कोणीय थे। किवाड़ जंगली जैतून वृक्ष की लकड़ी के थे। उसने उनपर करूबों, खजूर के वृक्षों और खिले हुए फूलों की आकृतियां खोदकर बनाईं, और उनको सोने से मढ़ा, उसने करूबों और खजूर के वृक्षों पर सोने की परत मढ़ दी। उसने मध्‍यभाग के प्रवेश-द्वार के लिए जंगली जैतून के वृक्ष की लकड़ी के, चौखट के बाजू बनाए। ये वर्गाकार थे। उसने सनोवर की लकड़ी के दो किवाड़ बनाए। प्रत्‍येक किवाड़ के दो पल्‍ले थे, जो मोड़ने पर दोहरे बन सकते थे। उसने किवाड़ों पर करूबों, खजूर के वृक्षों और खिले हुए फूलों की आकृतियां खोदकर बनाईं। उसने किवाड़ों पर सोना मढ़ा तथा खोदा गई आकृतियों पर सोने की परत मढ़ दी। उसने आन्‍तरिक आंगन की दीवार को गढ़े हुए पत्‍थरों के तीन रद्दों से तथा देवदार के शहतीरों की एक परत से बनाया। सुलेमान के राज्‍य-काल के चौथे वर्ष के ज़िव महीने में प्रभु के भवन की नींव डाली गई थी। उसके राज्‍य-काल के ग्‍यारहवें वर्ष के आठवें महीने में, अर्थात् बूल महीने में, भवन का समस्‍त निर्माण-कार्य विस्‍तृत निर्देश और ब्‍यौरे के अनुसार समाप्‍त हुआ। मन्‍दिर के निर्माण-कार्य में सात वर्ष लगे।

1 राजा 6:1-38 Hindi Holy Bible (HHBD)

इस्राएलियों के मिस्र देश से निकलने के चार सौ अस्सीवें वर्ष के बाद जो सुलैमान के इस्राएल पर राज्य करने का चौथा वर्ष था, उसके जीव नाम दूसरे महीने में वह यहोवा का भवन बनाने लगा। और जो भवन राजा सुलैमान ने यहोवा के लिये बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ, चौड़ाई बीस हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की थी। और भवन के मन्दिर के साम्हने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की थी, अर्थात भवन की चौड़ाई के बराबर थी, और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के साम्हने थी, वह दस हाथ की थी। फिर उसने भवन में स्थिर झिलमिलीदार खिड़कियां बनाईं। और उसने भवन के आसपास की भीतों से सटे हुए अर्थात मन्दिर और दर्शन-स्थान दोनों भीतों के आसपास उसने मंजिलें और कोठरियां बनाईं। सब से नीचे वाली मंजिल की चौड़ाई पांच हाथ, और बीच वाली की छ: हाथ, और ऊपर वाली की सात हाथ की थी, क्योंकि उसने भवन के आसपास भीत को बाहर की ओर कुसींदार बनाया था इसलिये कि कडिय़ां भवन की भीतों को पकड़े हुए न हों। और बनते समय भवन ऐसे पत्थरों का बनाया गया, जो वहां ले आने से पहिले गढ़कर ठीक किए गए थे, और भवन के बनते समय हथौड़े वसूली वा और किसी प्रकार के लोहे के औजार का शब्द कभी सुनाईं नहीं पड़ा। बाहर की बीचवाली कोठरियों का द्वार भवन की दाहिनी अलंग में था, और लोग चक्करदार सीढिय़ों पर हो कर बीचवाली कोठरियों में जाते, और उन से ऊपर वाली कोठरियों पर जाया करते थे। उसने भवन को बनाकर पूरा किया, और उसकी छत देवदारु की कडिय़ों और तख्तों से बनी थी। और पूरे भवन से लगी हुई जो मंज़िलें उसने बनाईं वह पांच हाथ ऊंची थीं, और वे देवदारु की कड़ियों द्वारा भवन से मिलाई गई थीं। तब यहोवा का यह वचन सुलैमान के पास पहुंचा, कि यह भवन जो तू बना रहा है, यदि तू मेरी विधियों पर चलेगा, और मेरे नियमों को मानेगा, और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा, तो जो वचन मैं ने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया था उसको मैं पूरा करूंगा। और मैं इस्राएलियों के मध्य में निवास करूंगा, और अपनी इस्राएली प्रजा को न तजूंगा। सो सुलैमान ने भवन को बनाकर पूरा किया। और उसने भवन की भीतों पर भीतरवार देवदारु की तख्ताबंदी की; और भवन के फ़र्श से छत तक भीतों में भीतरवार लकड़ी की तख्ताबंदी की, और भवन के फ़र्श को उसने सनोवर के तख्तों से बनाया। और भवन की पिछली अलंग में भी उसने बीस हाथ की दूरी पर फ़र्श से ले भीतों के ऊपर तक देवदारु की तख्ताबंदी की; इस प्रकार उसने परमपवित्र स्थान के लिये भवन की एक भीतरी कोठरी बनाईं। उसके साम्हने का भवन अर्थात मन्दिर की लम्बाई चालीस हाथ की थी। और भवन की भीतों पर भीतरवार देवदारु की लकड़ी की तख्ताबंदी थी, और उस में इत्द्रायन और खिले हुए फूल खुदे थे, सब देवदारु ही था: पत्भर कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। भवन के भीतर उस ने एक दर्शन स्थान यहोवा की वाचा का सन्दूक रखने के लिये तैयार किया। और उस दर्शन-स्थान की लम्बाई चौड़ाई और ऊंचाई बीस बीस हाथ की थी; और उसने उस पर चोखा सोना मढ़वाया और वेदी की तख्ताबंदी देवदारु से की। फिर सुलैमान ने भवन को भीतर भीतर चोखे सोने से मढ़वाया, और दर्शन-स्थान के साम्हने सोने की सांकलें लगाई; और उसको भी सोने से मढ़वाया। और उसने पूरे भवन को सोने से मढ़वाकर उसका पूरा काम निपटा दिया। और दर्शन-स्थान की पूरी वेदी को भी उसने सोने से मढ़वाया। दर्शन-स्थान में उसने दस दस हाथ ऊंचे जलपाई की लकड़ी के दो करूब बना रखे। एक करूब का एक पंख पांच हाथ का था, और उसका दूसरा पंख भी पांच हाथ का था, एक पंख के सिरे से, दूसरे पंख के सिरे तक दस हाथ थे। और दूसरा करूब भी दस हाथ का था; दोनों करूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे। एक करूब की ऊंचाई दस हाथ की, और दूसरे की भी इतनी ही थी। और उसने करूबों को भीतर वाले स्थान में धरवा दिया; और करूबोंके पंख ऐसे फैले थे, कि एक करूब का एक पंख, एक भीत से, और दूसरे का दूसरा पंख, दूसरी भीत से लगा हुआ था, फिर उनके दूसरे दो पंख भवन के मध्य में एक दूसरे से लगे हुए थे। और करूबों को उसने सोने से मढ़वाया। और उसने भवन की भीतों में बाहर और भीतर चारों ओर करूब, खजूर और खिले हुए फूल खुदवाए। और भवन के भीतर और बाहर वाले फर्श उसने सोने से मढ़वाए। और दर्शन-स्थान के द्वार पर उसने जलपाई की लकड़ी के किवाड़ लगाए और चौखट के सिरहाने और बाजुओं की लंबाई भवन की चौड़ाई का पांचवां भाग थी। दोनों किवाड़ जलपाई की लकड़ी के थे, और उसने उन में करूब, खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और सोने से मढ़ा और करूबों और खजूरों के ऊपर सोना मढ़वा दिया गया। इसी की रीति उसने मन्दिर के द्वार के लिये भी जलपाई की लकड़ी के चौखट के बाजू बनाए और वह भवन की चौड़ाई की चौथाई थी। दोनों किवाड़ सनोवर की लकड़ी के थे, जिन में से एक किवाड़ के दो पल्ले थे; और दूसरे किवाड़ के दो पल्ले थे जो पलटकर दुहर जाते थे। और उन पर भी उसने करूब और खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और खुदे हुए काम पर उसने सोना मढ़वाया। और उसने भीतर वाले आंगन के घेरे को गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे, और एक परत देवदारू की कडिय़ां लगा कर बनाया। चौथे वर्ष के जीव नाम महीने में यहोवा के भवन की नेव डाली गई। और ग्यारहवें वर्ष के बूल नाम आठवें महीने में, वह भवन उस सब समेत जो उस में उचित समझा गया बन चुका: इस रीति सुलैमान को उसके बनाने में सात वर्ष लगे।

1 राजा 6:1-38 पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) (HINOVBSI)

इस्राएलियों के मिस्र देश से निकलने के चार सौ अस्सीवें वर्ष के बाद जो सुलैमान के इस्राएल पर राज्य करने का चौथा वर्ष था, उसके जीव नामक दूसरे महीने में वह यहोवा का भवन बनाने लगा। जो भवन राजा सुलैमान ने यहोवा के लिये बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ, चौड़ाई बीस हाथ और ऊँचाई तीस हाथ की थी। और भवन के मन्दिर के सामने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की थी, अर्थात् भवन की चौड़ाई के बराबर थी, और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के सामने थी, वह दस हाथ की थी। फिर उसने भवन में चौखट सहित जालीदार खिड़कियाँ बनाईं। उसने भवन के आसपास की दीवारों से सटे हुए अर्थात् मन्दिर और दर्शन–स्थान दोनों दीवारों के आसपास उसने मंज़िलें और कोठरियाँ बनाईं। सबसे नीचेवाली मंज़िल की चौड़ाई पाँच हाथ, और बीचवाली की छ: हाथ, और ऊपरवाली की सात हाथ की थी, क्योंकि उसने भवन के आसपास दीवार को बाहर की ओर कुर्सीदार बनाया था इसलिये कि कड़ियाँ भवन की दीवारों को पकड़े हुए न हों। बनाते समय भवन ऐसे पत्थरों का बनाया गया, जो वहाँ ले आने से पहले गढ़कर ठीक किए गए थे, और भवन के बनते समय हथौड़े बसूली या और किसी प्रकार के लोहे के औजार का शब्द कभी सुनाई नहीं पड़ा। बाहर की बीचवाली कोठरियों का द्वार भवन की दाहिनी ओर था, और लोग चक्‍करदार सीढ़ियों पर होकर बीचवाली कोठरियों में जाते, और उनसे ऊपरवाली कोठरियों पर जाया करते थे। उसने भवन को बनाकर पूरा किया, और उसकी छत देवदारु की कड़ियों और तख़्तों से बनी थी। पूरे भवन से लगी हुई जो मंज़िलें उसने बनाईं वे पाँच हाथ ऊँची थीं, और वे देवदारु की कड़ियों के द्वारा भवन से मिलाई गई थीं। तब यहोवा का यह वचन सुलैमान के पास पहुँचा, “यह भवन जो तू बना रहा है, यदि तू मेरी विधियों पर चलेगा, और मेरे नियमों को मानेगा, और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा, तो जो वचन मैं ने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया था उसको मैं पूरा करूँगा। और मैं इस्राएलियों के मध्य में निवास करूँगा, और अपनी इस्राएली प्रजा को न तजूँगा।” यों सुलैमान ने भवन को बनाकर पूरा किया। उसने भवन की दीवारों पर भीतर की ओर देवदारु की तख़्ताबंदी की; और भवन के फ़र्श से छत तक दीवारों पर भीतर की ओर लकड़ी की तख़्ताबंदी की, और भवन के फ़र्श को उसने सनोवर के तख़्तों से बनाया। और भवन के पीछे की ओर भी उसने बीस हाथ की दूरी पर फ़र्श से ले दीवारों के ऊपर तक देवदारु की तख़्ताबंदी की; इस प्रकार उसने परमपवित्र स्थान के लिये भवन की एक भीतरी कोठरी बनाई। उसके सामने का भवन अर्थात् मन्दिर की लम्बाई चालीस हाथ की थी। भवन की दीवारों पर भीतर की ओर देवदारु की लकड़ी की तख़्ताबंदी थी, और उसमें कलियाँ और खिले हुए फूल खुदे थे, सब देवदारु ही था : पत्थर कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। भवन के भीतर उसने एक पवित्र–स्थान यहोवा की वाचा का सन्दूक रखने के लिये तैयार किया। और उस पवित्र–स्थान की लम्बाई चौड़ाई और ऊँचाई बीस बीस हाथ की थी; और उसने उस पर चोखा सोना मढ़वाया और वेदी की तख़्ताबंदी देवदारु से की। फिर सुलैमान ने भवन को भीतर भीतर चोखे सोने से मढ़वाया, और पवित्र–स्थान के सामने सोने की साँकलें लगाईं; और उसको भी सोने से मढ़वाया। और उसने पूरे भवन को सोने से मढ़वाकर उसका काम पूरा किया। पवित्र–स्थान की पूरी वेदी को भी उसने सोने से मढ़वाया। पवित्र–स्थान में उसने दस दस हाथ ऊँचे जैतून की लकड़ी के दो करूब बनाकर रखे। एक करूब का एक पंख पाँच हाथ का था, और उसका दूसरा पंख भी पाँच हाथ का था; एक पंख के सिरे से दूसरे पंख के सिरे तक लम्बाई दस हाथ थी। दूसरा करूब भी दस हाथ का था; दोनों करूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे। एक करूब की ऊँचाई दस हाथ की, और दूसरे की भी इतनी ही थी। उसने करूबों को भीतरवाले स्थान में धरवा दिया; और करूबों के पंख ऐसे फैले थे, कि एक करूब का एक पंख एक दीवार से, और दूसरे का दूसरा पंख दूसरी दीवार से लगा हुआ था, फिर उनके दूसरे दो पंख भवन के मध्य में एक दूसरे को स्पर्श करते थे। उसने करूबों को सोने से मढ़वाया। उसने भवन की दीवारों पर बाहर और भीतर चारों ओर करूब, खजूर और खिले हुए फूल खुदवाए। भवन के भीतर और बाहरवाली कोठरी के फर्श उसने सोने से मढ़वाए। पवित्र–स्थान के प्रवेश–द्वार के लिये उसने जैतून की लकड़ी के दरवाज़े लगाए और चौखट के सिरहाने और बाजुओं की बनावट पंचकोणीय थी। दोनों दरवाजे जैतून की लकड़ी के थे, और उसने उनमें करूब, खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और सोने से मढ़ा; और करूबों और खजूरों के ऊपर सोना मढ़वा दिया गया। इसी रीति उसने मन्दिर के प्रवेश–द्वार के लिये भी जैतून की लकड़ी के चौखट के बाजू बनाए, ये चौकोर थे। दोनों दरवाजे सनोवर की लकड़ी के थे, जिनमें से एक दरवाजे के दो पल्‍ले थे; और दूसरे दरवाजे के दो पल्‍ले थे जो पलटकर दुहर जाते थे। उन पर भी उस ने करूब और खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और खुदे हुए काम पर उसने सोना मढ़वाया। उसने भीतरवाले आँगन के घेरे को गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे, और एक परत देवदारु की कड़ियाँ लगा कर बनाया। चौथे वर्ष के जीव नामक महीने में यहोवा के भवन की नींव डाली गई। और ग्यारहवें वर्ष के बूल नामक आठवें महीने में, वह भवन उस सब समेत जो उसमें उचित समझा गया बन चुका। इस रीति सुलैमान को उसके बनाने में सात वर्ष लगे।

1 राजा 6:1-38 इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 (IRVHIN)

इस्राएलियों के मिस्र देश से निकलने के चार सौ अस्सीवें वर्ष के बाद जो सुलैमान के इस्राएल पर राज्य करने का चौथा वर्ष था, उसके जीव नामक दूसरे महीने में वह यहोवा का भवन बनाने लगा। जो भवन राजा सुलैमान ने यहोवा के लिये बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ, चौड़ाई बीस हाथ और ऊँचाई तीस हाथ की थी। (प्रेरि. 7:47) और भवन के मन्दिर के सामने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की थी, अर्थात् भवन की चौड़ाई के बराबर थी, और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के सामने थी, वह दस हाथ की थी। फिर उसने भवन में चौखट सहित जालीदार खिड़कियाँ बनाईं। और उसने भवन के आस-पास की दीवारों से सटे हुए अर्थात् मन्दिर और दर्शन-स्थान दोनों दीवारों के आस-पास उसने मंजिलें और कोठरियाँ बनाई। सबसे नीचेवाली मंजिल की चौड़ाई पाँच हाथ, और बीचवाली की छः हाथ, और ऊपरवाली की सात हाथ की थी, क्योंकि उसने भवन के आस-पास दीवारों को बाहर की ओर कुर्सीदार बनाया था इसलिए कि कड़ियाँ भवन की दीवारों को पकड़े हुए न हों। बनाते समय भवन ऐसे पत्थरों का बनाया गया, जो वहाँ ले आने से पहले गढ़कर ठीक किए गए थे, और भवन के बनते समय हथौड़े, बसूली या और किसी प्रकार के लोहे के औज़ार का शब्द कभी सुनाई नहीं पड़ा। बाहर की बीचवाली कोठरियों का द्वार भवन की दाहिनी ओर था, और लोग चक्करदार सीढ़ियों पर होकर बीचवाली कोठरियों में जाते, और उनसे ऊपरवाली कोठरियों पर जाया करते थे। उसने भवन को बनाकर पूरा किया, और उसकी छत देवदार की कड़ियों और तख्तों से बनी थी। और पूरे भवन से लगी हुई जो मंजिलें उसने बनाईं वह पाँच हाथ ऊँची थीं, और वे देवदार की कड़ियों के द्वारा भवन से मिलाई गई थीं। तब यहोवा का यह वचन सुलैमान के पास पहुँचा, “यह भवन जो तू बना रहा है, यदि तू मेरी विधियों पर चलेगा, और मेरे नियमों को मानेगा, और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा, तो जो वचन मैंने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया था उसको मैं पूरा करूँगा। और मैं इस्राएलियों के मध्य में निवास करूँगा, और अपनी इस्राएली प्रजा को न तजूँगा।” अतः सुलैमान ने भवन को बनाकर पूरा किया। (प्रेरि. 7:47) उसने भवन की दीवारों पर भीतर की ओर देवदार की तख्ताबंदी की; और भवन के फर्श से छत तक दीवारों पर भीतर की ओर लकड़ी की तख्ताबंदी की, और भवन के फर्श को उसने सनोवर के तख्तो से बनाया। और भवन के पीछे की ओर में भी उसने बीस हाथ की दूरी पर फर्श से ले दीवारों के ऊपर तक देवदार की तख्ताबंदी की; इस प्रकार उसने परमपवित्र स्थान के लिये भवन की एक भीतरी कोठरी बनाई। उसके सामने का भवन अर्थात् मन्दिर की लम्बाई चालीस हाथ की थी। भवन की दीवारों पर भीतर की ओर देवदार की लकड़ी की तख्ताबंदी थी, और उसमें कलियाँ और खिले हुए फूल खुदे थे, सब देवदार ही था: पत्थर कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। भवन के भीतर उसने एक पवित्रस्थान यहोवा की वाचा का सन्दूक रखने के लिये तैयार किया। और उस पवित्रस्थान की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई बीस-बीस हाथ की थी; और उसने उस पर उत्तम सोना मढ़वाया और वेदी की तख्ताबंदी देवदार से की। फिर सुलैमान ने भवन को भीतर-भीतर शुद्ध सोने से मढ़वाया, और पवित्रस्थान के सामने सोने की साँकलें लगाई; और उसको भी सोने से मढ़वाया। और उसने पूरे भवन को सोने से मढ़वाकर उसका काम पूरा किया। और पवित्रस्थान की पूरी वेदी को भी उसने सोने से मढ़वाया। पवित्रस्थान में उसने दस-दस हाथ ऊँचे जैतून की लकड़ी के दो करूब बना रखे। एक करूब का एक पंख पाँच हाथ का था, और उसका दूसरा पंख भी पाँच हाथ का था, एक पंख के सिरे से, दूसरे पंख के सिरे तक लम्बाई दस हाथ थी। दूसरा करूब भी दस हाथ का था; दोनों करूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे। एक करूब की ऊँचाई दस हाथ की, और दूसरे की भी इतनी ही थी। उसने करूबों को भीतरवाले स्थान में रखवा दिया; और करूबों के पंख ऐसे फैले थे, कि एक करूब का एक पंख, एक दीवार से, और दूसरे का दूसरा पंख, दूसरी दीवार से लगा हुआ था, फिर उनके दूसरे दो पंख भवन के मध्य में एक दूसरे को स्पर्श करते थे। उसने करूबों को सोने से मढ़वाया। उसने भवन की दीवारों पर बाहर और भीतर चारों ओर करूब, खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए। भवन के भीतर और बाहरवाली कोठरी के फर्श उसने सोने से मढ़वाए। पवित्रस्थान के प्रवेश-द्वार के लिये उसने जैतून की लकड़ी के दरवाजे लगाए और चौखट के सिरहाने और बाजुओं की बनावट पंचकोणीय थी। दोनों किवाड़ जैतून की लकड़ी के थे, और उसने उनमें करूब, खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और सोने से मढ़ा और करूबों और खजूरों के ऊपर सोना मढ़वा दिया गया। इसी की रीति उसने मन्दिर के प्रवेश-द्वार के लिये भी जैतून की लकड़ी के चौखट के बाजू बनाए, ये चौकोर थे। दोनों दरवाजे सनोवर की लकड़ी के थे, जिनमें से एक दरवाजे के दो पल्ले थे; और दूसरे दरवाजे के दो पल्ले थे जो पलटकर दुहर जाते थे। उन पर भी उसने करूब और खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और खुदे हुए काम पर उसने सोना मढ़वाया। उसने भीतरवाले आँगन के घेरे को गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे, और एक परत देवदार की कड़ियाँ लगाकर बनाया। चौथे वर्ष के जीव नामक महीने में यहोवा के भवन की नींव डाली गई। और ग्यारहवें वर्ष के बूल नामक आठवें महीने में, वह भवन उस सब समेत जो उसमें उचित समझा गया बन चुका। इस रीति सुलैमान को उसके बनाने में सात वर्ष लगे।

1 राजा 6:1-38 सरल हिन्दी बाइबल (HSS)

यह उस समय की बात है, जब इस्राएलियों को मिस्र देश से निकले हुए चार सौ अस्सी साल हो चुके थे, और इस्राएल पर शलोमोन के शासन के चार साल. शलोमोन ने साल के ज़ीव नामक दूसरे महीने में याहवेह के लिए भवन बनाना शुरू किया. राजा शलोमोन ने यह जो भवन याहवेह के लिए बनाया, उसकी लंबाई सत्ताईस मीटर और चौड़ाई नौ मीटर ऊंचाई चौदह मीटर थी. भवन के बीच के द्वार-मंडप की लंबाई भी नौ मीटर थी, जितनी भवन की चौड़ाई थी. भवन के सामने इसकी गहराई साढ़े चार मीटर थी. शलोमोन ने भवन की खिड़कियां आकर्षक जालीदार बनाईं थी. भवन की बाहरी दीवारों के चारों ओर शलोमोन ने अनेक कमरों का परिसर बनाया, दोनों ओर पीछे भी. सबसे नीचे का तल सवा दो मीटर चौड़ा था. बीच वाला तल दो मीटर सत्तर सेंटीमीटर, और तीसरा तीन मीटर पन्द्रह सेंटीमीटर चौड़ा. उन्होंने भवन की बाहरी दीवार कुर्सीदार बना दिए थे, कि बोझ उठाती बल्लियों को मूल भवन के भीतर तक न पहुंचना पड़े. भवन के लिए इस्तेमाल किए गए पत्थरों को वहीं तैयार कर लिया गया था, जहां से उन्हें निकाला जा रहा था. फलस्वरूप जब नया भवन बनाया जा रहा था, वहां न तो घन की, न हथौड़े की और न किसी भी लोहे के औज़ार की आवाज सुनाई दी. बीचवाले तल का प्रवेश भवन के दक्षिण ओर था: जब किसी को तीसरे तल को जाना होता था, वह सीढ़ियों से चढ़कर बीचवाले तल पर पहुंचता था, फिर वहां से तीसरे तल को; इस प्रकार शलोमोन ने भवन बनाना समाप्‍त किया. भवन की छत उन्होंने देवदार की बल्लियों और पटरियों से बनाई. उन्होंने पूरे भवन के आस-पास छज्जे बनाए, जिसकी ऊंचाई सवा दो मीटर थी. इन सभी को मूल भवन के देवदार से जकड़ दिया गया था. यह सब हो जाने पर शलोमोन को याहवेह का यह संदेश भेजा गया. “तुम जिस भवन को बना रहे हो, उसके संबंध में, यदि तुम मेरी विधियों का पालन करते रहोगे, और मेरी आज्ञाओं को पूरा मानोगे और मेरे आदेशों का पालन करोगे, तब मैं तुम्हारे साथ अपनी वह प्रतिज्ञा पूरी करूंगा, जो मैंने तुम्हारे पिता दावीद से की थी. मैं इस्राएल वंशजों के बीच रहूंगा और उन्हें छोड़ न दूंगा.” शलोमोन ने भवन बनाना समाप्‍त किया. फिर उसने भवन की दीवारों के अंदर से देवदार की पटियां लगवा दीं. उन्होंने भवन की ज़मीन से लेकर भवन की छत तक दीवारों का अंदरूनी भाग देवदार लकड़ी से ढकवा दिया. इसके बाद उन्होंने भवन का तल सनोवर की लकड़ी से ढकवा दिया. शलोमोन ने भवन की पीछे की दीवार से नौ मीटर भीतर की ओर एक दीवार बनवाई. यह ज़मीन से छत तक देवदार की बनी हुई थी. इससे एक अंदर का कमरा बन गया. यही परम पवित्र स्थान था. इसके सामने बीच वाला स्थान अठारह मीटर लंबा था. भवन की दीवारों का अंदरूनी भाग देवदार की लकड़ी से ढका था, जिस पर कलियां और खिले हुए फूल खुद हुए थे. सभी कुछ देवदार से ढका था-पत्थर कहीं से भी दिखाई नहीं पड़ता था. तब उन्होंने अंदरूनी पवित्र स्थान बनवाया. यह भवन के भीतर था, कि इसमें याहवेह की वाचा का संदूक प्रतिष्ठित किया जा सके. अंदरूनी कमरे की लंबाई छः मीटर, चौड़ाई छः मीटर और ऊंचाई भी छः मीटर ही थी. इसे शुद्ध कुन्दन से मढ़ दिया गया था. उन्होंने देवदार से बनी हुई वेदी को भी मढ़ दिया. शलोमोन ने भवन के भीतरी भाग को शुद्ध कुन्दन से मढ़वा दिया. तब उन्होंने अंदरूनी पवित्र स्थान के सामने सोने की सांकलें खींचवा दीं. इसे भी उन्होंने सोने से मढ़वा दिया. पूरे भवन को उन्होंने सोने से मढ़वा दिया. इस प्रकार पूरे भवन का काम पूरा हुआ. इसके अलावा उन्होंने अंदरूनी पवित्र स्थान की पूरी वेदी को सोने से मढ़वा दिया. उन्होंने जैतून की लकड़ी से दो करूब बनवाए. हर एक की ऊंचाई साढ़े चार-साढ़े चार मीटर थी. करूब का एक पंख सवा दो मीटर था और दूसरा पंख भी सवा दो मीटर का. पहले पंख के छोर से दूसरे पंख के छोर तक लंबाई साढ़े चार मीटर थी. दूसरा करूब भी साढ़े चार मीटर ऊंचा था. दोनों ही करूबों की नाप बराबर थी. दोनों करूब की ऊंचाई साढ़े चार मीटर थी. शलोमोन ने करूबों को अंदरूनी कमरे के बीच में स्थापित कर दिया. करूबों के पंख फैले हुए थे, जिससे पहले करूब का एक पंख एक दीवार को छू रहा था, तो दूसरे का एक पंख दूसरी दीवार को. इससे भवन के बीच में उनके पंख एक दूसरे को छू रहे थे. शलोमोन ने करूबों को भी सोने से मढ़वा दिया था. इसके बाद शलोमोन ने भवन की दीवारों के भीतर और बाहर और बाहरी पवित्र स्थानों पर करूब, खजूर के पेड़ और खिले हुए फूलों की आकृतियां खुदवा दीं. भवन का फर्श उन्होंने भीतरी और बाहरी पवित्र स्थानों में सोने से मढ़वा दिया. अंदरूनी पवित्र स्थान में प्रवेश के लिए शलोमोन ने जैतून के पेड़ की लकड़ी के दरवाजे बनवाए. इनकी चौखट पांच कोण के थे. उन्होंने जैतून वृक्ष की लकड़ी के दो दरवाजे बनवाए. इन पर उन्होंने करूबों, खजूर के पेड़ों और खिले हुए फूलों की आकृति खुदवाई और फिर इन्हें सोने से मढ़वा दिया. उन्होंने करूबों और खजूर के पेड़ों पर सोने का पत्रक मढ़वा दिया. उन्होंने बीचवाले स्थान में प्रवेश के लिए जैतून की लकड़ी के चौकोर चौखट और दरवाजे उन्होंने सनोवर की लकड़ी के बनवाए. हर एक दरवाजे के दो-दो पल्ले थे, जो मोड़ने पर दोहरे हो जाते थे. इन पर शलोमोन ने करूब, खजूर के पेड़ और खिले हुए पेड़ों की आकृतियां खुदवाईं. इन सभी पर उन्होंने एक बराबर सोने का पत्रक मढ़वा दिया. भीतरी कमरा उन्होंने काटे संवारे गए पत्थरों की तीन पंक्तियों और देवदार की बल्लियों की एक सतह से बनवाया. चौथे साल में याहवेह के भवन की नींव रखी गई थी, यह ज़ीव नाम का महीना था. ग्यारहवें साल में बूल महीने में जो वास्तव में आठवां महीना है, हर तरह से भवन बनने का काम पूरा हो गया था. यह सब हर रीति से योजना के अनुसार ही हुआ था, यानी भवन बनाने के काम में सात साल लग गए थे.