अपना घर छोड़कर भटकता मनुष्य ऐसा, जैसे कोई चिड़िया भटकी निज घोंसले से। इत्र और सुगंधित धूप मन को आनन्द से भरते हैं और मित्र की सच्ची सम्मति सेमन उल्लास से भर जाता है। अपने मित्र को मत भूलो न ही अपने पिता के मित्र को। और विपत्ती में सहायता के लिये दूर अपने भाई के घर मत जाओ। दूर के भाई से पास का पड़ोसी अच्छा है। हे मेरे पुत्र, तू बुद्धिमान बन जा और मेरा मन आनन्द से भर दे। ताकि मेरे साथ जो घृणा से व्यवहार करे, मैं उसको उत्तर दे सकूँ। विपत्ति को आते देखकर बुद्धिमान जन दूर हट जाते हैं, किन्तु मूर्खजन बिना राह बदले चलते रहते हैं और फंस जाते हैं।
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