यूहन्ना 9:1-23

यूहन्ना 9:1-23 HERV

जाते हुए उसने जन्म से अंधे एक व्यक्ति को देखा। इस पर यीशु के अनुयायियों ने उससे पूछा, “हे रब्बी, यह व्यक्ति अपने पापों से अंधा जन्मा है या अपने माता-पिता के?” यीशु ने उत्तर दिया, “न तो इसने पाप किए हैं और न इसके माता-पिता ने बल्कि यह इसलिये अंधा जन्मा है ताकि इसे अच्छा करके परमेश्वर की शक्ति दिखायी जा सके। उसके कामों को जिसने मुझे भेजा है, हमें निश्चित रूप से दिन रहते ही कर लेना चाहिये क्योंकि जब रात हो जायेगी कोई काम नहीं कर सकेगा। जब मैं जगत में हूँ मैं जगत की ज्योति हूँ।” इतना कहकर यीशु ने धरती पर थूका और उससे थोड़ी मिट्टी सानी उसे अंधे की आंखों पर मल दिया। और उससे कहा, “जा और शीलोह के तालाब में धो आ।” (शीलोह अर्थात् “भेजा हुआ।”) और फिर उस अंधे ने जाकर आँखें धो डालीं। जब वह लौटा तो उसे दिखाई दे रहा था। फिर उसके पड़ोसी और वे लोग जो उसे भीख माँगता देखने के आदी थे बोले, “क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो बैठा हुआ भीख माँगा करता था?” कुछ ने कहा, “यह वही है,” दूसरों ने कहा, “नहीं, यह वह नहीं है, उसके जैसा दिखाई देता है।” इस पर अंधा कहने लगा, “मैं वही हूँ।” इस पर लोगों ने उससे पूछा, “तुझे आँखों की ज्योति कैसे मिली?” उसने जवाब दिया, “यीशु नाम के एक व्यक्ति ने मिट्टी सान कर मेरी आँखों पर मला और मुझसे कहा, जा और शीलोह में धो आ और मैं जाकर धो आया। बस मुझे आँखों की ज्योति मिल गयी।” फिर लोगों ने उससे पूछा, “वह कहाँ है?” उसने जवाब दिया, “मुझे पता नहीं।” उस व्यक्ति को जो पहले अंधा था, वे लोग फरीसियों के पास ले गये। यीशु ने जिस दिन मिट्टी सानकर उस अंधे को आँखें दी थीं वह सब्त का दिन था। इस तरह फ़रीसी उससे एक बार फिर पूछने लगे, “उसने आँखों की ज्योति कैसे पायी?” उसने बताया, “उसने मेरी आँखों पर गीली मिट्टी लगायी, मैंने उसे धोया और अब मैं देख सकता हूँ।” कुछ फ़रीसी कहने लगे, “यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं है क्योंकि यह सब्त का पालन नहीं करता।” उस पर दूसरे बोले, “कोई पापी आदमी भला ऐसे आश्चर्य कर्म कैसे कर सकता है?” इस तरह उनमें आपस में ही विवाद होने लगा। वे एक बार फिर उस अंधे से बोले, “उसके बारे में तू क्या कहता है? क्योंकि इस तथ्य को तू जानता है कि उसने तुझे आँखे दी हैं।” तब उसने कहा, “वह नबी है।” यहूदी नेताओं ने उस समय तक उस पर विश्वास नहीं किया कि वह व्यक्ति अंधा था और उसे आँखों की ज्योति मिल गयी है। जब तक उसके माता-पिता को बुलाकर उन्होंने यह नहीं पूछ लिया, “क्या यही तुम्हारा पुत्र है जिसके बारे में तुम कहते हो कि वह अंधा था। फिर यह कैसे हो सकता है कि वह अब देख सकता है?” इस पर उसके माता पिता ने उत्तर देते हुए कहा, “हम जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है और यह अंधा जन्मा था। पर हम यह नहीं जानते कि यह अब देख कैसे सकता है? और न ही हम यह जानते हैं कि इसे आँखों की ज्योति किसने दी है। इसी से पूछो, यह काफ़ी बड़ा हो चुका है। अपने बारे में यह खुद बता सकता है।” उसके माता-पिता ने यह बात इसलिये कही थी कि वे यहूदी नेताओं से डरते थे। क्योंकि वे इस पर पहले ही सहमत हो चुके थे कि यदि कोई यीशु को मसीह माने तो उसे आराधनालय से निकाल दिया जाये। इसलिये उसके माता-पिता ने कहा था, “वह काफ़ी बड़ा हो चुका है, उससे पूछो।”

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