“जब तुम सारा दशमांश जो तीसरे वर्ष (दशमांश का वर्ष) तुम्हारी फ़सल का दिया जाना है, दे चुको तब तुम्हें लेवीवंशियों, विदेशियों, अनाथों और विधवाओं को इसे देना चाहिए। तब हर एक नगर में वे खा सकते हैं और सन्तुष्ट किये जा सकते हैं। तुम यहोवा अपने परमेश्वर से कहोगे, ‘मैंने अपने घर से अपनी फसल का पवित्र भाग दशमांश बाहर निकाल दिया है। मैंने इसे उन सभी लेवीवंशियों, विदेशियों, अनाथों और विधवाओं को दे दिया है। मैंने उन सभी आदेशों का पालन करने से इन्कार नहीं किया है। मैं उन्हें भूला नहीं हूँ। मैंने यह भोजन तब नहीं किया जब मैं शोक मना रहा था। मैंने इस अन्न को तब अलग नहीं किया जब मैं अपवित्र था। मैंने इस अन्न में से कोई भाग मरे व्यक्ति के लिये नहीं दिया है। मैंने यहोवा, मेरे परमेश्वर, तेरी आज्ञाओं का पालन किया है। मैंने वह सब कुछ किया है जिसके लिये तूने आदेश दिया है। तू अपने पवित्र आवास स्वर्ग से नीचे निगाह डाल और अपने लोगों, इस्राएलियों को आशीर्वाद दे और तू उस देश को आशीर्वाद दे जिसे तूने हम लोगों को वैसा ही दिया है जैसा तूने हमारे पूर्वजों को अच्छी चीज़ों से भरा—पुरा देश देने का वचन दिया था।’
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