इब्रानियों 10

10
पशु का बलिदान अपर्याप्त
1क्योंकि व्यवस्था#10:1 व्यवस्था: मत्ती 5:17 की टिप्पणी देखें। जिसमें आनेवाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है, पर उनका असली स्वरूप नहीं, इसलिए उन एक ही प्रकार के बलिदानों के द्वारा, जो प्रतिवर्ष अचूक चढ़ाए जाते हैं, पास आनेवालों को कदापि सिद्ध नहीं कर सकती। 2नहीं तो उनका चढ़ाना बन्द क्यों न हो जाता? इसलिए कि जब सेवा करनेवाले एक ही बार शुद्ध हो जाते, तो फिर उनका विवेक उन्हें पापी न ठहराता। 3परन्तु उनके द्वारा प्रतिवर्ष पापों का स्मरण हुआ करता है। 4क्योंकि अनहोना है, कि बैलों और बकरों का लहू पापों को दूर करे#10:4 क्योंकि अनहोना है, कि बैलों और बकरों का लहू पापों को दूर करे: यहाँ पर यह संदर्भ बलिदान के लिये हैं जो प्रायश्चित के महान दिन पर किए जाते थे, एक पशु का लहू बहाकर कभी आत्मा शुद्ध नहीं किया जा सकता है।
मसीह का बलिदान पर्याप्त
5इसी कारण मसीह जगत में आते समय कहता है,
“बलिदान और भेंट तूने न चाही,
पर मेरे लिये एक देह तैयार की।
6होमबलियों और पापबलियों से तू प्रसन्न नहीं हुआ।
7तब मैंने कहा, ‘देख, मैं आ गया हूँ, (पवित्रशास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है)
ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूँ।’”
8ऊपर तो वह कहता है, “न तूने बलिदान और भेंट और होमबलियों और पापबलियों को चाहा, और न उनसे प्रसन्न हुआ,” यद्यपि ये बलिदान तो व्यवस्था के अनुसार चढ़ाए जाते हैं। 9फिर यह भी कहता है, “देख, मैं आ गया हूँ, ताकि तेरी इच्छा पूरी करूँ,” अतः वह पहले को हटा देता है, ताकि दूसरे को स्थापित करे। 10उसी इच्छा से हम यीशु मसीह की देह के एक ही बार बलिदान चढ़ाए जाने के द्वारा पवित्र किए गए हैं। (इब्रा. 10:14)
11और हर एक याजक तो खड़े होकर प्रतिदिन सेवा करता है, और एक ही प्रकार के बलिदान को जो पापों को कभी भी दूर नहीं कर सकते; बार बार चढ़ाता है। (निर्ग. 29:38,39) 12पर यह व्यक्ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा। 13और उसी समय से इसकी प्रतीक्षा कर रहा है, कि उसके बैरी उसके पाँवों के नीचे की चौकी बनें। (भज. 110:1) 14क्योंकि उसने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन्हें जो पवित्र किए जाते हैं, सर्वदा के लिये सिद्ध कर दिया है। 15और पवित्र आत्मा भी हमें यही गवाही देता है; क्योंकि उसने पहले कहा था
16“प्रभु कहता है; कि जो वाचा मैं
उन दिनों के बाद उनसे बाँधूँगा वह यह है कि
मैं अपनी व्यवस्थाओं को उनके हृदय पर लिखूँगा
और मैं उनके विवेक में डालूँगा।”
17(फिर वह यह कहता है,) “मैं उनके पापों को,
और उनके अधर्म के कामों को फिर कभी स्मरण न करूँगा।” (इब्रा. 8:12, यिर्म. 31:34)
18और जब इनकी क्षमा हो गई है, तो फिर पाप का बलिदान नहीं रहा।
साहस के साथ परमेश्वर तक पहुँच
19इसलिए हे भाइयों, जबकि हमें यीशु के लहू के द्वारा उस नये और जीविते मार्ग से पवित्रस्थान में प्रवेश करने का साहस हो गया है, 20जो उसने परदे अर्थात् अपने शरीर में से होकर, हमारे लिये अभिषेक किया है, 21और इसलिए कि हमारा ऐसा महान याजक है, जो परमेश्वर के घर का अधिकारी है। 22तो आओ; हम सच्चे मन, और पूरे विश्वास के साथ, और विवेक का दोष दूर करने के लिये हृदय पर छिड़काव लेकर, और देह को शुद्ध जल से धुलवाकर परमेश्वर के समीप जाएँ#10:22 परमेश्वर के समीप जाएँ: अटूट विश्वास के साथ प्रार्थना और स्तुति में, परमेश्वर में विश्वास की परिपूर्णता के साथ, जो सन्देह के लिये कोई जगह नहीं छोड़ता।(इफि. 5:26, 1 पत. 3:21, यहे. 36:25) 23और अपनी आशा के अंगीकार को दृढ़ता से थामे रहें; क्योंकि जिसने प्रतिज्ञा की है, वह विश्वासयोग्य है। 24और प्रेम, और भले कामों में उकसाने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें। 25और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों-ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों-त्यों और भी अधिक यह किया करो।
26क्योंकि सच्चाई की पहचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। 27हाँ, दण्ड की एक भयानक उम्मीद और आग का ज्वलन बाकी है जो विरोधियों को भस्म कर देगा। (यशा. 26:11) 28जबकि मूसा की व्यवस्था का न माननेवाला दो या तीन जनों की गवाही पर, बिना दया के मार डाला जाता है। (व्यव. 17:6, व्यव. 19:15) 29तो सोच लो कि वह कितने और भी भारी दण्ड के योग्य ठहरेगा, जिसने परमेश्वर के पुत्र को पाँवों से रौंदा, और वाचा के लहू को जिसके द्वारा वह पवित्र ठहराया गया था, अपवित्र जाना हैं, और अनुग्रह की आत्मा का अपमान किया। (इब्रा. 12:25) 30क्योंकि हम उसे जानते हैं, जिसने कहा, “पलटा लेना मेरा काम है, मैं ही बदला दूँगा।” और फिर यह, कि “प्रभु अपने लोगों का न्याय करेगा।” (व्यव. 32:35,36, भज. 135:14) 31जीविते परमेश्वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है।
32परन्तु उन पहले दिनों को स्मरण करो, जिनमें तुम ज्योति पाकर दुःखों के बड़े संघर्ष में स्थिर रहे। 33कुछ तो यह, कि तुम निन्दा, और क्लेश सहते हुए तमाशा बने, और कुछ यह, कि तुम उनके सहभागी हुए जिनकी दुर्दशा की जाती थी। 34क्योंकि तुम कैदियों के दुःख में भी दुःखी हुए, और अपनी सम्पत्ति भी आनन्द से लुटने दी; यह जानकर, कि तुम्हारे पास एक और भी उत्तम और सर्वदा ठहरनेवाली सम्पत्ति है। 35इसलिए, अपना साहस न छोड़ो क्योंकि उसका प्रतिफल बड़ा है। 36क्योंकि तुम्हें धीरज रखना अवश्य है, ताकि परमेश्वर की इच्छा को पूरी करके तुम प्रतिज्ञा का फल पाओ।
37“क्योंकि अब बहुत ही थोड़ा समय रह गया है
जबकि आनेवाला आएगा, और देर न करेगा।
38और मेरा धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा,
और यदि वह पीछे हट जाए तो मेरा मन उससे प्रसन्न न होगा।” (हब. 2:4, गला. 3:11)
39पर हम हटनेवाले नहीं, कि नाश हो जाएँ पर विश्वास करनेवाले हैं, कि प्राणों को बचाएँ।

वर्तमान में चयनित:

इब्रानियों 10: IRVHin

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