तब अराद का कनानी राजा, जो दक्खिन देश में रहता था,यह सुनकर कि जिस मार्ग से वे भेदिये आए थे उसी मार्ग से अब इस्राएली आ रहे हैं, इस्राएल से लड़ा, और उनमें से कितनों को बन्धुआ कर लिया। तब इस्राएलियों ने यहोवा से यह कहकर मन्नत मानी, “यदि तू सचमुच उन लोगों को हमारे वश में कर दे, तो हम उनके नगरों का सत्यानाश कर देंगे।” इस्राएल की यह बात सुनकर यहोवा ने कनानियों को उनके वश में कर दिया; अत: उन्होंने उनके नगरों समेत उनका भी सत्यानाश किया; इस से उस स्थान का नाम होर्मा रखा गया। फिर उन्होंने होर पहाड़ से कूच करके लाल समुद्र का मार्ग लिया कि एदोम देश से बाहर बाहर घूमकर जाएँ; और लोगों का मन मार्ग के कारण बहुत व्याकुल हो गया। इसलिये वे परमेश्वर के विरुद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, “तुम लोग हम को मिस्र से जंगल में मरने के लिये क्यों ले आए हो? यहाँ न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दु:खित हैं।” अत: यहोवा ने उन लोगों में तेज विषवाले* साँप भेजे, जो उनको डसने लगे, और बहुत से इस्राएली मर गए। तब लोग मूसा के पास जाकर कहने लगे, “हम ने पाप किया है क्योंकि हम ने यहोवा के और तेरे विरुद्ध बातें की हैं; यहोवा से प्रार्थना कर कि वह साँपों को हम से दूर करे।” तब मूसा ने उनके लिये प्रार्थना की। यहोवा ने मूसा से कहा, “एक तेज विषवाले साँप की प्रतिमा बनवाकर खम्भे पर लटका; तब जो साँप से डसा हुआ उसको देख ले वह जीवित बचेगा।” अत: मूसा ने पीतल का एक साँप बनवाकर खम्भे पर लटकाया; तब साँप के डसे हुओं में से जिस जिस ने उस पीतल के साँप की ओर देखा वह जीवित बच गया।
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