मरकुस 9:1-29

मरकुस 9:1-29 HINOVBSI

उसने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जो यहाँ खड़े हैं, उनमें से कोई–कोई ऐसे हैं, कि जब तक परमेश्‍वर के राज्य को सामर्थ्य सहित आया हुआ न देख लें, तब तक मृत्यु का स्वाद कदापि न चखेंगे।” छ: दिन के बाद यीशु ने पतरस और याकूब और यूहन्ना को साथ लिया, और एकान्त में किसी ऊँचे पहाड़ पर ले गया। वहाँ उनके सामने उसका रूप बदल गया, और उसका वस्त्र ऐसा चमकने लगा और यहाँ तक उज्ज्वल हुआ, कि पृथ्वी पर कोई धोबी भी वैसा उज्ज्वल नहीं कर सकता। और उन्हें मूसा के साथ एलिय्याह दिखाई दिया; वे यीशु के साथ बातें करते थे। इस पर पतरस ने यीशु से कहा, “हे रब्बी, हमारा यहाँ रहना अच्छा है : इसलिये हम तीन मण्डप बनाएँ; एक तेरे लिये, एक मूसा के लिये, और एक एलिय्याह के लिये।” क्योंकि वह न जानता था कि क्या उत्तर दे, इसलिये कि वे बहुत डर गए थे। तब एक बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, इसकी सुनो। ” तब उन्होंने एकाएक चारों ओर दृष्‍टि की, और यीशु को छोड़ अपने साथ और किसी को न देखा। पहाड़ से उतरते समय उसने उन्हें आज्ञा दी कि जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से जी न उठे, तब तक जो कुछ तुम ने देखा है वह किसी से न कहना। उन्होंने इस बात को स्मरण रखा; और आपस में वाद–विवाद करने लगे, “मरे हुओं में से जी उठने का क्या अर्थ है?” और उन्होंने उससे पूछा, “शास्त्री क्यों कहते हैं कि एलिय्याह का पहले आना अवश्य है?” उसने उन्हें उत्तर दिया, “एलिय्याह सचमुच पहले आकर सब कुछ सुधारेगा, परन्तु मनुष्य के पुत्र के विषय में यह क्यों लिखा है कि वह बहुत दु:ख उठाएगा, और तुच्छ गिना जाएगा? परन्तु मैं तुम से कहता हूँ, कि एलिय्याह तो आ चुका, और जैसा उसके विषय में लिखा है, उन्होंने जो कुछ चाहा उसके साथ किया।” जब वह चेलों के पास आया, तो देखा कि उनके चारों ओर बड़ी भीड़ लगी है और शास्त्री उनके साथ विवाद कर रहे हैं। उसे देखते ही सब बहुत ही आश्‍चर्य करने लगे, और उसकी ओर दौड़कर उसे नमस्कार किया। उसने उनसे पूछा, “तुम इन से क्या विवाद कर रहे हो?” भीड़ में से एक ने उसे उत्तर दिया, “हे गुरु, मैं अपने पुत्र को, जिसमें गूँगी आत्मा समाई है, तेरे पास लाया था। जहाँ कहीं वह उसे पकड़ती है, वहीं पटक देती है : और वह मुँह में फेन भर लाता, और दाँत पीसता, और सूखता जाता है। मैं ने तेरे चेलों से कहा कि वे उसे निकाल दें, परन्तु वे निकाल न सके।” यह सुनकर उसने उनसे उत्तर देके कहा, “हे अविश्‍वासी लोगो, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? और कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे मेरे पास लाओ।” तब वे उसे उसके पास ले आए : और जब उसने उसे देखा, तो उस आत्मा ने तुरन्त उसे मरोड़ा; और वह भूमि पर गिरा, और मुँह से फेन बहाते हुए लोटने लगा। उसने उसके पिता से पूछा, “इसकी यह दशा कब से है?” उसने कहा, “बचपन से। उसने इसे नष्‍ट करने के लिये कभी आग और कभी पानी में गिराया; परन्तु यदि तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खाकर हमारा उपकार कर।” यीशु ने उससे कहा, “यदि तू कर सकता है? यह क्या बात है! विश्‍वास करनेवाले के लिए सब कुछ हो सकता है।” बालक के पिता ने तुरन्त गिड़गिड़ाकर कहा, “हे प्रभु, मैं विश्‍वास करता हूँ, मेरे अविश्‍वास का उपाय कर।” जब यीशु ने देखा कि लोग दौड़कर भीड़ लगा रहे हैं, तो उसने अशुद्ध आत्मा को यह कहकर डाँटा, “हे गूँगी और बहिरी आत्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ, उसमें से निकल आ, और उसमें फिर कभी प्रवेश न करना।” तब वह चिल्‍लाकर और उसे बहुत मरोड़ कर, निकल आई; और बालक मरा हुआ सा हो गया, यहाँ तक कि बहुत लोग कहने लगे कि वह मर गया। परन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया, और वह खड़ा हो गया। जब वह घर में आया, तो उसके चेलों ने एकान्त में उस से पूछा, “हम उसे क्यों न निकाल सके?” उसने उनसे कहा, “यह जाति बिना प्रार्थना किसी और उपाय से नहीं निकल सकती।”

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