लैव्यव्यवस्था 7:1-10

लैव्यव्यवस्था 7:1-10 HINOVBSI

“फिर दोषबलि की व्यवस्था यह है। वह परमपवित्र है; जिस स्थान पर होमबलिपशु का वध करते हैं उसी स्थान पर दोषबलिपशु भी बलि करें, और उसके लहू को याजक वेदी पर चारों ओर छिड़के। और वह उसमें की सब चरबी को चढ़ाए, अर्थात् उसकी मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अंतड़ियाँ ढपी रहती हैं वह भी, और दोनों गुर्दे और जो चरबी उनके ऊपर और कमर के पास रहती है, और गुर्दों समेत कलेजे के ऊपर की झिल्‍ली, इन सभों को वह अलग करे; और याजक इन्हें वेदी पर यहोवा के लिये हवन करे, तब वह दोषबलि होगा। याजकों में के सब पुरुष उसमें से खा सकते हैं; वह किसी पवित्रस्थान में खाया जाए; क्योंकि वह परमपवित्र है। जैसा पापबलि है वैसा ही दोषबलि भी है, उन दोनों की एक ही व्यवस्था है; जो याजक उन बलियों को चढ़ा के प्रायश्‍चित्त करे वही उन वस्तुओं को ले। और जो याजक किसी के लिये होमबलि को चढ़ाए उस होमबलिपशु की खाल को वही याजक ले ले। और तंदूर में, या कढ़ाही में, या तवे पर पके हुए सब अन्नबलि उसी याजक की होंगी जो उन्हें चढ़ाता है। और सब अन्नबलि, जो चाहे तेल से सने हुए हों चाहे रूखे हों, वे हारून के सब पुत्रों को एक समान मिले।