न्यायियों 16:1-17

न्यायियों 16:1-17 HINOVBSI

तब शिमशोन गाज़ा को गया, और वहाँ एक वेश्या को देखकर उसके पास गया। जब गाज़ावासियों को इसका समाचार मिला कि शिमशोन यहाँ आया है, तब उन्होंने उसको घेर लिया, और रात भर नगर के फाटक पर उसकी घात में लगे रहे; और यह कहकर रात भर चुपचाप रहे, कि भोर होते ही हम उसको घात करेंगे। परन्तु शिमशोन आधी रात तक पड़ा रहा, और आधी रात को उठकर, उसने नगर के फाटक के दोनों पल्‍लों और दोनों बाजुओं को पकड़कर बेंड़ों समेत उखाड़ लिया, और अपने कन्धों पर रखकर उन्हें उस पहाड़ की चोटी पर ले गया, जो हेब्रोन के सामने है। इसके बाद वह सोरेक नामक घाटी में रहनेवाली दलीला नामक एक स्त्री से प्रीति करने लगा। तब पलिश्तियों के सरदारों ने उस स्त्री के पास जा के कहा, “तू उसको फुसलाकर पूछ कि उसके महाबल का भेद क्या है, और कौन सा उपाय करके हम उस पर ऐसे प्रबल हों, कि उसे बाँधकर दबा रखें; तब हम तुझे ग्यारह ग्यारह सौ टुकड़े चाँदी देंगे।” तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “मुझे बता कि तेरे बड़े बल का भेद क्या है, और किस रीती से कोई तुझे बाँधकर दबा रख सकता है।” शिमशोन ने उससे कहा, “यदि मैं सात ऐसी नई नई ताँतों से बाँधा जाऊँ जो सुखाई न गई हों, तो मेरा बल घट जायेगा, और मैं साधारण मनुष्य के समान हो जाऊँगा।” तब पलिश्तियों के सरदार दलीला के पास ऐसी नई नई सात ताँतें ले गए जो सुखाई न गई थीं, और उनसे उसने शिमशोन को बाँधा। उसके पास कुछ मनुष्य कोठरी में घात लगाए बैठे थे। तब उसने उस से कहा, “हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं!” तब उसने ताँतों को ऐसा तोड़ा जैसा सन का सूत आग से छूते ही टूट जाता है। और उसके बल का भेद न खुला। तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “सुन, तू ने तो मुझ से छल किया, और झूठ कहा है; अब मुझे बता दे कि तू किस वस्तु से बंध सकता है।” उसने उससे कहा, “यदि मैं ऐसी नई नई रस्सियों से जो किसी काम में न आईं हों कसकर बाँधा जाऊँ, तो मेरा बल घट जाएगा, और मैं साधारण मनुष्य के समान हो जाऊँगा।” तब दलीला ने नई नई रस्सियाँ लेकर और उसको बाँधकर कहा, “हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं!” कितने मनुष्य उस कोठरी में घात लगाए हुए थे। तब उसने उनको सूत के समान अपनी भुजाओं पर से तोड़ डाला। तब दलीला ने शिमशोन से कहा, “अब तक तू मुझ से छल करता, और झूठ बोलता आया है; अब मुझे बता दे कि तू काहे से बंध सकता है?” उसने कहा, “यदि तू मेरे सिर की सातों लटें ताने में बुने तो बंध सकूँगा।” अत: उसने उसे खूँटी से जकड़ा। तब उससे कहा, “हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं!” तब वह नींद से चौंक उठा, और खूँटी को धरन में से उखाड़कर उसे ताने समेत ले गया। तब दलीला ने उससे कहा, “तेरा मन तो मुझ से नहीं लगा, फिर तू क्यों कहता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ? तू ने तीनों बार मुझ से छल किया, और मुझे नहीं बताया कि तेरे बड़े बल का भेद क्या है।” इस प्रकार जब उसने हर दिन बातें करते करते उसको तंग किया, और यहाँ तक हठ किया कि उसकी नाक में दम आ गया, तब उसने अपने मन का सारा भेद खोलकर उससे कहा, “मेरे सिर पर छुरा कभी नहीं फिरा, क्योंकि मैं माँ के पेट ही से परमेश्‍वर का नाज़ीर हूँ, यदि मैं मूँड़ा जाऊँ, तो मेरा बल इतना घट जाएगा कि मैं साधारण मनुष्य के समान हो जाऊँगा।”

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