जो मूरत खोदकर बनाते हैं, वे सब के सब व्यर्थ हैं और जिन वस्तुओं में वे आनन्द ढूँढ़ते उन से कुछ लाभ न होगा; उनके साक्षी, न तो आप कुछ देखते और न कुछ जानते हैं, इसलिये उनको लज्जित होना पड़ेगा। किस ने देवता या निष्फल मूरत ढाली है? देख, उनके सब संगियों को तो लज्जित होना पड़ेगा, कारीगर तो मनुष्य ही हैं; वे सब के सब इकट्ठे होकर खड़े हों; वे डर जाएँगे; वे सब के सब लज्जित होंगे। लोहार एक बसूला अंगारों में बनाता और हथौड़ों से गढ़कर तैयार करता है, अपने भुजबल से वह उसको बनाता है; फिर वह भूखा हो जाता है और उसका बल घटता है, वह पानी नहीं पीता और थक जाता है। बढ़ई सूत लगाकर टाँकी से रेखा करता है, और रन्दनी से काम करता और परकार से रेखा खींचता है, वह उसका आकार और मनुष्य की सी सुन्दरता बनाता है ताकि लोग उसे घर में रखें। वह देवदार को काटता या वन के वृक्षों में से जाति जाति के बांजवृक्ष चुनकर देख–भाल करता है, वह देवदार का एक वृक्ष लगाता है जो वर्षा का जल पाकर बढ़ता है। तब वह मनुष्य के ईंधन के काम में आता है; वह उस में से कुछ सुलगाकर तापता है, वह उसको जलाकर रोटी बनाता है; उसी से वह देवता भी बनाकर उसको दण्डवत् करता है; वह मूरत खुदवाकर उसके सामने प्रणाम करता है। उसका एक भाग तो वह आग में जलाता और दूसरे भाग से मांस पकाकर खाता है, वह मांस भूनकर तृप्त होता; फिर तापकर कहता है, “अहा, मैं गर्म हो गया, मैं ने आग देखी है!” और उसके बचे हुए भाग को लेकर वह एक देवता अर्थात् एक मूरत खोदकर बनाता है; तब वह उसके सामने प्रणाम और दण्डवत् करता और उससे प्रार्थना करके कहता है, “मुझे बचा ले, क्योंकि तू मेरा देवता है!” वे कुछ नहीं जानते, न कुछ समझ रखते हैं; क्योंकि उनकी आँखें ऐसी बन्द की गई हैं कि वे देख नहीं सकते; और उनकी बुद्धि ऐसी कि वे बूझ नहीं सकते। कोई इस पर ध्यान नहीं करता, और न किसी को इतना ज्ञान या समझ रहती है कि कह सके, “उसका एक भाग तो मैं ने जला दिया और उसके कोयलों पर रोटी बनाई; और मांस भूनकर खाया है; फिर क्या मैं उसके बचे हुए भाग को घिनौनी वस्तु बनाऊँ? क्या मैं काठ को प्रणाम करूँ?” वह राख खाता है; भरमाई हुई बुद्धि के कारण वह भटकाया गया है और वह न अपने को बचा सकता और न यह कह सकता है, “क्या मेरे दाहिने हाथ में मिथ्या नहीं?”
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जीवनदाता और सभी आशीषों पर अपनी निर्भरता पर विचार करते हुए डॉ.रमेश रिचर्ड के साथ हुए सात दिन बिताएं। वह RREACH के अध्यक्ष और डालास थियोलोजिकल सेमिनरी के आचार्य हैं ,जो पासबान के दृष्टिकोण को रखते हुए बताएंगे कि जीवन में कृतज्ञता का कैसे अभ्यास करना चाहिए। आइए हम अपने पास पाई जाने वाली चीज़ों और सभी ज़रूरी चीज़ों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद व उस पर भरोसा करें।
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