उत्पत्ति 47:1-12

उत्पत्ति 47:1-12 HINOVBSI

तब यूसुफ ने फ़िरौन के पास जाकर यह समाचार दिया, “मेरा पिता और मेरे भाई, और उनकी भेड़–बकरियाँ, गाय–बैल और जो कुछ उनका है, सब कनान देश से आ गया है; और अभी तो वे गोशेन देश में हैं।” फिर उसने अपने भाइयों में से पाँच जन लेकर फ़िरौन के सामने खड़े कर दिए। फ़िरौन ने उसके भाइयों से पूछा, “तुम्हारा उद्यम क्या है?” उन्होंने फ़िरौन से कहा, “तेरे दास चरवाहे हैं, और हमारे पुरखा भी ऐसे ही रहे।” फिर उन्होंने फ़िरौन से कहा, “हम इस देश में परदेशी की भाँति रहने के लिये आए हैं; क्योंकि कनान देश में भारी अकाल होने के कारण तेरे दासों को भेड़–बकरियों के लिये चारा न रहा; इसलिये अपने दासों को गोशेन देश में रहने की आज्ञा दे।” तब फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, “तेरा पिता और तेरे भाई तेरे पास आ गए हैं, और मिस्र देश तेरे सामने पड़ा है; इस देश का जो सबसे अच्छा भाग हो, उसमें अपने पिता और भाइयों को बसा दे, अर्थात् वे गोशेन ही देश में रहें; और यदि तू जानता हो, कि उनमें से परिश्रमी पुरुष हैं, तो उन्हें मेरे पशुओं के अधिकारी ठहरा दे।” तब यूसुफ ने अपने पिता याक़ूब को ले आकर फ़िरौन के सम्मुख खड़ा किया; और याक़ूब ने फ़िरौन को आशीर्वाद दिया। तब फ़िरौन ने याक़ूब से पूछा, “तेरी आयु कितने दिन की हुई है?” याक़ूब ने फ़िरौन से कहा, “मैं एक सौ तीस वर्ष परदेशी होकर अपना जीवन बिता चुका हूँ; मेरे जीवन के दिन थोड़े और दु:ख से भरे हुए भी थे, और मेरे बापदादे परदेशी होकर जितने दिन तक जीवित रहे उतने दिन का मैं अभी नहीं हुआ।” और याक़ूब फ़िरौन को आशीर्वाद देकर उसके सम्मुख से चला गया। तब यूसुफ ने अपने पिता और भाइयों को बसा दिया, और फ़िरौन की आज्ञा के अनुसार मिस्र देश के अच्छे से अच्छे भाग में, अर्थात् रामसेस नामक प्रदेश में, भूमि देकर उनको सौंप दिया। और यूसुफ अपने पिता का, और अपने भाइयों का, और पिता के सारे घराने का, एक एक के बाल–बच्‍चों की गिनती के अनुसार, भोजन दिला दिलाकर उनका पालन–पोषण करने लगा।