तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, “तेरे भाई शकेम ही में भेड़–बकरी चरा रहे होंगे। इसलिये जा, मैं तुझे उनके पास भेजता हूँ।” उसने उससे कहा, “जो आज्ञा मैं हाज़िर हूँ।” उसने उससे कहा, “जा, अपने भाइयों और भेड़–बकरियों का हाल देख आ कि वे कुशल से तो हैं, फिर मेरे पास समाचार ले आ।” अत: उसने उसको हेब्रोन की तराई में विदा कर दिया, और वह शकेम में आया। और एक मनुष्य ने उसको मैदान में इधर–उधर भटकते हुए पाकर उससे पूछा, “तू क्या ढूँढ़ता है?” उसने कहा, “मैं अपने भाइयों को ढूँढ़ता हूँ। कृपया मुझे बता कि वे भेड़–बकरियों को कहाँ चरा रहे हैं?” उस मनुष्य ने कहा, “वे यहाँ से चले गए हैं; और मैं ने उनको यह कहते सुना, ‘आओ, हम दोतान को चले’।” इसलिये यूसुफ अपने भाइयों के पीछे चला, और उन्हें दोतान में पाया। ज्योंही उन्होंने उसे दूर से आते देखा, तो उसके निकट आने के पहले ही उसे मार डालने का षड्यन्त्र रचा। और वे आपस में कहने लगे, “देखो, वह स्वप्न देखने वाला आ रहा है। इसलिये आओ, हम उसको घात करके किसी गड़हे में डाल दें; और यह कह देंगे कि कोई बनैला पशु उसको खा गया। फिर हम देखेंगे कि उसके स्वप्नों का क्या फल होगा।” यह सुन के रूबेन ने उसको उनके हाथ से बचाने के विचार से कहा, “हम उसको प्राण से तो न मारें।” फिर रूबेन ने उनसे कहा, “लहू मत बहाओ, उसको जंगल के इस गड़हे में डाल दो, और उस पर हाथ मत उठाओ।” वह उसको उनके हाथ से छुड़ाकर पिता के पास फिर पहुँचाना चाहता था। इसलिये ऐसा हुआ कि जब यूसुफ अपने भाइयों के पास पहुँचा तब उन्होंने उसका रंगबिरंगा अंगरखा, जिसे वह पहिने हुए था, उतार लिया; और यूसुफ को उठाकर गड़हे में डाल दिया। वह गड़हा सूखा था और उसमें कुछ जल न था।
तब वे रोटी खाने बैठ गए; और आँखें उठाकर क्या देखा कि इश्माएलियों का एक दल ऊँटों पर सुगन्धद्रव्य, बलसान, और गन्धरस लादे हुए, गिलाद से मिस्र को चला जा रहा है। तब यहूदा ने अपने भाइयों से कहा, “अपने भाई को घात करने और उसका खून छिपाने से क्या लाभ होगा? आओ, हम उसे इश्माएलियों के हाथ बेच डालें, और अपना हाथ उस पर न उठाएँ; क्योंकि वह हमारा भाई और हमारी ही हड्डी और मांस है।” और उसके भाइयों ने उसकी बात मान ली। तब मिद्यानी व्यापारी उधर से होकर उनके पास पहुँचे। अत: यूसुफ के भाइयों ने उसको उस गड़हे में से खींच के बाहर निकाला, और इश्माएलियों के हाथ चाँदी के बीस टुकड़ों में बेच दिया; और वे यूसुफ को मिस्र ले गए।