जो रुपये से प्रीति रखता है वह रुपये से तृप्त न होगा; और न जो बहुत धन से प्रीति रखता है, लाभ से : यह भी व्यर्थ है। जब सम्पत्ति बढ़ती है, तो उसके खानेवाले भी बढ़ते हैं, तब उसके स्वामी को इसे छोड़ और क्या लाभ होता है कि उस सम्पत्ति को अपनी आँखों से देखे? परिश्रम करनेवाला चाहे थोड़ा खाए या बहुत, तौभी उसकी नींद सुखदाई होती है; परन्तु धनी का धन बढ़ने के कारण उसको नींद नहीं आती।
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