दानिय्येल 1:8-17

दानिय्येल 1:8-17 HINOVBSI

परन्तु दानिय्येल ने अपने मन में ठान लिया कि वह राजा का भोजन खाकर, और उसके पीने का दाखमधु पीकर अपवित्र न होए; इसलिये उस ने खोजों के प्रधान से विनती की कि उसे अपवित्र न होना पड़े। परमेश्‍वर ने खोजों के प्रधान के मन में दानिय्येल के प्रति कृपा और दया भर दी। खोजों के प्रधान ने दानिय्येल से कहा, “मैं अपने स्वामी राजा से डरता हूँ, क्योंकि तुम्हारा खाना–पीना उसी ने ठहराया है, कहीं ऐसा न हो कि वह तेरा मुँह तेरे संग के जवानों से उतरा हुआ और उदास देखे और तुम मेरा सिर राजा के सामने जोखिम में डालो।” तब दानिय्येल ने उस मुखिये से, जिसको खोजों के प्रधान ने दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह के ऊपर देखभाल करने के लिये नियुक्‍त किया था, कहा, “मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि अपने दासों को दस दिन तक जाँच, हमारे खाने के लिये सागपात और पीने के लिये पानी ही दिया जाए। फिर दस दिन के बाद हमारे मुँह और जो जवान राजा का भोजन खाते हैं उनके मुँह को देख; और जैसा तुझे देख पड़े, उसी के अनुसार अपने दासों से व्यवहार करना।” उनकी यह विनती उसने मान ली, और दस दिन तक उनको जाँचता रहा। दस दिन के बाद उनके मुँह राजा के भोजन के खानेवाले सब जवानों से अधिक अच्छे और चिकने दिखाई पड़े। तब वह मुखिया उनका भोजन और उनके पीने के लिये ठहराया हुआ दाखमधु दोनों छुड़ाकर, उनको सागपात देने लगा। परमेश्‍वर ने उन चारों जवानों को सब शास्त्रों और सब प्रकार की विद्याओं में बुद्धिमानी और प्रवीणता दी; और दानिय्येल सब प्रकार के दर्शन और स्वप्न के अर्थ का ज्ञानी हो गया।

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