पौलुस बहुत दिन तक वहाँ रहा। फिर भाइयों से विदा होकर किंख्रिया में इसलिये सिर मुण्डाया, क्योंकि उसने मन्नत मानी थी, और जहाज पर सीरिया को चल दिया और उसके साथ प्रिस्किल्ला और अक्विला थे। उसने इफिसुस पहुँचकर उनको वहाँ छोड़ा, और आप आराधनालय में जाकर यहूदियों से विवाद करने लगा। जब उन्होंने उससे विनती की, “हमारे साथ और कुछ दिन रह।” तो उसने स्वीकार न किया; परन्तु यह कहकर उनसे विदा हुआ, “यदि परमेश्वर ने चाहा तो मैं तुम्हारे पास फिर आऊँगा।” तब वह इफिसुस से जहाज खोलकर चल दिया; और कैसरिया में उतरकर (यरूशलेम को) गया और कलीसिया को नमस्कार करके अन्ताकिया में आया। फिर कुछ दिन रहकर वह वहाँ से निकला, और एक ओर से गलातिया और फ्रूगिया प्रदेशों में सब चेलों को स्थिर करता फिरा। अपुल्लोस नामक एक यहूदी, जिसका जन्म सिकन्दरिया में हुआ था, जो विद्वान पुरुष था और पवित्रशास्त्र को अच्छी तरह से जानता था, इफिसुस में आया। उसने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय ठीक ठीक सुनाता और सिखाता था, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्मा की बात जानता था। वह आराधनालय में निडर होकर बोलने लगा, पर प्रिस्किल्ला और अक्विला उसकी बातें सुनकर उसे अपने यहाँ ले गए और परमेश्वर का मार्ग उसको और भी ठीक ठीक बताया। जब उसने निश्चय किया कि पार उतरकर अखाया को जाए तो भाइयों ने उसे ढाढ़स देकर चेलों को लिखा कि वे उससे अच्छी तरह मिलें; और उसने वहाँ पहुँचकर उन लोगों की बड़ी सहायता की जिन्होंने अनुग्रह के कारण विश्वास किया था। क्योंकि वह पवित्रशास्त्र से प्रमाण दे देकर कि यीशु ही मसीह है, बड़ी प्रबलता से यहूदियों को सब के सामने निरुत्तर करता रहा।
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