रोमियों 15:1-13

रोमियों 15:1-13 HINCLBSI

हम लोगों को, जो समर्थ हैं, अपनी सुख-सुविधा का नहीं, बल्‍कि दुर्बलों की कमजोरियों का ध्‍यान रखना चाहिए। हम में प्रत्‍येक को अपने पड़ोसी की भलाई तथा चरित्र-निर्माण के लिए उसकी सुख-सुविधा का ध्‍यान रखना चाहिए। मसीह ने भी अपने सुख का ध्‍यान नहीं रखा। जैसा कि धर्मग्रंथ में लिखा है, “तेरी निन्‍दा करने वालों ने मेरी निन्‍दा की है।” धर्मग्रन्‍थ में जो कुछ पहले लिखा गया था, वह हमारी शिक्षा के लिए लिखा गया था, ताकि हमें उस से धैर्य तथा सांत्‍वना मिलती रहे और इस प्रकार हम अपनी आशा बनाये रख सकें। परमेश्‍वर ही धैर्य तथा सांत्‍वना का स्रोत है। वह आप लोगों को यह वरदान दे कि आप येशु मसीह की शिक्षा के अनुसार आपस में मेल-मिलाप का भाव बनाए रखें, जिससे आप सब मिलकर एक स्‍वर से हमारे प्रभु येशु मसीह के पिता, परमेश्‍वर की स्‍तुति करते रहें। जिस प्रकार मसीह ने हमें परमेश्‍वर की महिमा के लिए अपनाया, उसी प्रकार आप एक-दूसरे को भ्रातृभाव से अपनायें। मैं यह कहना चाहता हूँ कि मसीह यहूदियों के सेवक इसलिए बने कि वह, पूर्वजों को दी गयी प्रतिज्ञाएँ पूरी कर, परमेश्‍वर की सत्‍यप्रतिज्ञता प्रमाणित करें और इसलिए भी कि गैर-यहूदी, परमेश्‍वर की दया प्राप्‍त कर, उसकी स्‍तुति करें। जैसा कि धर्मग्रन्‍थ में लिखा है, “इस कारण मैं अन्‍य-जातियों के बीच तेरी स्‍तुति करूँगा और तेरे नाम की महिमा का गीत गाऊंगा।” धर्मग्रन्‍थ यह भी कहता है, “ओ राष्‍ट्रो! परमेश्‍वर की प्रजा के साथ आनन्‍द मनाओ।” और फिर यह, “हे समस्‍त राष्‍ट्रो! प्रभु की स्‍तुति करो। सभी जातियाँ प्रभु की स्‍तुति करें।” और नबी यशायाह भी यह कहते हैं, “यिशय का वंश-मूल प्रकट होगा, राष्‍ट्रों पर शासन करने के लिए उसका उत्‍थान होगा और राष्‍ट्र उसी की आशा करेंगे।” आशा का स्रोत, परमेश्‍वर आप लोगों को विश्‍वास द्वारा प्रचुर आनन्‍द और शान्‍ति प्रदान करे, जिससे पवित्र आत्‍मा के सामर्थ्य से आप लोगों की आशा परिपूर्ण हो।

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