येशु ने लोगों को फिर अपने पास बुलाया और कहा, “तुम सब, मेरी बात सुनो और समझो। ऐसा कुछ नहीं है, जो बाहर से मनुष्य में प्रवेश कर उसे अशुद्ध कर सके; बल्कि जो मनुष्य में से बाहर निकलता है, वही उसे अशुद्ध करता है। [ जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले!]” जब येशु लोगों को छोड़ कर घर के भीतर आए, तो उनके शिष्यों ने इस दृष्टान्त का अर्थ पूछा। येशु ने कहा, “क्या तुम लोग भी इतने नासमझ हो? क्या तुम यह नहीं समझते कि जो कुछ बाहर से मनुष्य में प्रवेश करता है, वह उसे अशुद्ध नहीं कर सकता? क्योंकि वह तो उसके मन में नहीं, बल्कि उसके पेट में चला जाता है और शौच द्वारा बाहर निकल जाता है।” इस तरह येशु ने सब खाद्य पदार्थों को शुद्ध ठहराया। येशु ने फिर कहा, “जो मनुष्य में से बाहर निकलता है, वही उसे अशुद्ध करता है। क्योंकि बुरे विचार भीतर से, अर्थात् मनुष्य के मन से निकलते हैं। व्यभिचार, चोरी, हत्या, परस्त्री-गमन, लोभ, विद्वेष, छल-कपट, लम्पटता, ईष्र्या, झूठी निन्दा, अहंकार और धर्महीनता− ये सब बुराइयाँ मनुष्य के भीतर से निकलती हैं और उसको अशुद्ध करती हैं।”
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