यरूशलेम के कुछ फरीसी और शास्त्री येशु के पास आए और यह बोले, “आपके शिष्य धर्मवृद्धों की परम्परा क्यों तोड़ते हैं? वे बिना हाथ धोये भोजन करते हैं।” येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “और तुम लोग अपनी ही परम्परा के नाम पर परमेश्वर की आज्ञा क्यों भंग करते हो? परमेश्वर ने कहा : ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर करो, और जो अपने पिता या अपनी माता को बुरा कहे, उसे प्राण-दण्ड दिया जाए।’ परन्तु तुम लोग कहते हो कि यदि कोई अपने पिता या अपनी माता से कहे, ‘आप को मुझ से जो लाभ हो सकता था, वह परमेश्वर को अर्पित है,’ तो उसके लिए माता-पिता का आदर करना आवश्यक नहीं है। इस प्रकार तुम अपनी परम्परा का पालन कर परमेश्वर का वचन रद्द कर देते हो। ढोंगियो! नबी यशायाह ने यह कह कर तुम्हारे विषय में ठीक ही नबूवत की है : ‘ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ ही मेरी उपासना करते हैं; क्योंकि ये मनुष्यों के बनाए हुए नियमों को ऐसे सिखाते हैं, मानो वे धर्म-सिद्धान्त हों।’ ” येशु ने लोगों को अपने पास बुला कर कहा, “तुम लोग मेरी बात सुनो और समझो। जो मुँह में जाता है, वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता; बल्कि जो मुँह से बाहर निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है।”
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