तब उन्होंने येशु को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें ले जाकर प्रधान महापुरोहित के भवन में पहुँचा दिया। पतरस कुछ दूरी रखते हुए उनके पीछे-पीछे चला। जब लोग आंगन के बीच में आग जला कर उसके चारों ओर बैठे थे, तब पतरस भी उनके साथ बैठ गया। एक सेविका ने आग के प्रकाश में पतरस को बैठा हुआ देखा और उस पर दृष्टि गड़ा कर कहा, “यह भी उसी के साथ था।” किन्तु पतरस ने अस्वीकार करते हुए कहा, “बहिन! मैं उसे नहीं जानता।” थोड़ी देर बाद किसी दूसरे ने पतरस को देखकर कहा, “तुम भी उन्हीं लोगों में से एक हो।” पतरस ने उत्तर दिया, “नहीं भई! मैं नहीं हूँ।” करीब घण्टे भर बाद किसी और व्यक्ति ने दृढ़तापूर्वक कहा, “निश्चय ही यह उसी के साथ था। यह भी तो गलीली है।” पतरस ने कहा, “अरे भाई! मैं नहीं जानता कि तुम क्या कह रहे हो।” वह बोल ही रहा था कि उसी क्षण मुर्गे ने बाँग दी। और प्रभु ने मुड़ कर पतरस की ओर देखा। तब पतरस को याद आया कि प्रभु ने उससे कहा था कि आज मुर्गे के बाँग देने से पहले ही तुम मुझे तीन बार अस्वीकार करोगे, और वह बाहर निकल कर फूट-फूट कर रोने लगा।
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