लूकस 14:1-24

लूकस 14:1-24 HINCLBSI

येशु एक विश्राम के दिन किसी फरीसी अधिकारी के यहाँ भोजन करने गये। वे लोग उनकी ताक में थे। येशु के सामने जलोदर से पीड़ित एक मनुष्‍य आया। येशु ने अपनी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हुए व्‍यवस्‍था के आचार्यों तथा फरीसियों से पूछा, “विश्राम के दिन स्‍वस्‍थ करना उचित है या नहीं?” वे चुप रहे। इस पर येशु ने जलोदर-पीड़ित का हाथ पकड़ कर उसे अच्‍छा कर दिया और विदा किया। तब येशु ने उन से कहा, “यदि तुम्‍हारा पुत्र या बैल कुएँ में गिर पड़े, तो तुम लोगों में ऐसा कौन है, जो उसे विश्राम के दिन ही तुरन्‍त बाहर न निकाल ले?” और वे इसका कोई उत्तर नहीं दे सके। येशु ने निमंत्रित व्यक्‍तियों को मुख्‍य-मुख्‍य स्‍थान चुनते देख कर उन्‍हें यह दृष्‍टान्‍त सुनाया, “विवाह में निमन्‍त्रित होने पर सब से अगले स्‍थान पर मत बैठो। कहीं ऐसा न हो कि मेजबान ने तुम से अधिक प्रतिष्‍ठित व्यक्‍ति को निमन्‍त्रित किया हो और जिसने तुम दोनों को निमन्‍त्रण दिया है, वह आ कर तुम से कहे, ‘इन्‍हें अपनी जगह दीजिए’। तब तुम्‍हें लज्‍जित हो कर सबसे पिछले स्‍थान पर बैठना पड़ेगा। इसलिए जब तुम्‍हें निमन्‍त्रण मिले, तो जा कर सबसे पिछले स्‍थान पर बैठो, जिससे निमन्‍त्रण देने वाला आ कर तुम से यह कहे, ‘बन्‍धु! आगे बढ़ कर बैठिए।’ इस प्रकार सब अतिथियों के सामने तुम्‍हारा सम्‍मान होगा; क्‍योंकि जो अपने आप को बड़ा मानता है, वह छोटा किया जाएगा और जो अपने आप को छोटा मानता है, वह बड़ा किया जाएगा।” फिर येशु ने अपने निमन्‍त्रण देने वाले से कहा, “जब तुम दोपहर या रात का भोज दो, तब न तो अपने मित्रों को बुलाओ और न अपने भाइयों को, न अपने कुटुम्‍बियों को और न धनी पड़ोसियों को। कहीं ऐसा न हो कि वे भी तुम्‍हें निमन्‍त्रण दे कर बदला चुका दें। पर जब तुम भोज दो, तो गरीबों, लूलों, लंगड़ों और अन्‍धों को बुलाओ। तब तुम धन्‍य होगे; क्‍योंकि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं होता और तुम्‍हें धार्मिकों के पुनरुत्‍थान के समय बदला चुका दिया जाएगा।” साथ भोजन करने वालों में किसी ने यह सुन कर येशु से कहा, “धन्‍य है वह, जो परमेश्‍वर के राज्‍य में भोजन करेगा!” येशु ने उसे उत्तर दिया, “किसी मनुष्‍य ने एक बड़े भोज का आयोजन किया और बहुत-से लोगों को निमन्‍त्रण दिया। भोजन के समय उसने अपने सेवक द्वारा निमन्‍त्रित लोगों को यह कहला भेजा कि आइए, क्‍योंकि अब सब कुछ तैयार है। लेकिन सब के सब बहाना करने लगे। पहले ने सेवक से कहा, ‘मैंने खेत मोल लिया है और मुझे उसे देखने जाना है। तुम से मेरा निवेदन है, मेरी ओर से क्षमा माँग लेना।’ दूसरे ने कहा, ‘मैंने पाँच जोड़े बैल खरीदे हैं और उन्‍हें परखने जा रहा हूँ। तुम से मेरा निवेदन है, मेरी ओर से क्षमा माँग लेना।’ और एक ने कहा, ‘मैंने विवाह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता।’ सेवक ने लौट कर यह सब अपने स्‍वामी को बताया। तब घर के स्‍वामी ने क्रुद्ध होकर अपने सेवक से कहा, ‘शीघ्र ही नगर के बाजारों और गलियों में जा कर गरीबों, लूलों, अन्‍धों और लंगड़ों को यहाँ ले आओ।’ जब सेवक ने कहा, ‘स्‍वामी! आपकी आज्ञा का पालन किया गया है; किन्‍तु और भी जगह शेष है,’ तो स्‍वामी ने सेवक से कहा, ‘सड़कों और बाड़ों की ओर जाओ और लोगों को भीतर आने के लिए बाध्‍य करो, जिससे मेरा घर भर जाए; क्‍योंकि मैं तुम सबसे कहता हूँ, उन निमन्‍त्रित लोगों में कोई भी मेरे भोजन का स्‍वाद नहीं चख पाएगा’।”