इसके पश्चात् येशु अपने शिष्यों के साथ यहूदा प्रदेश में आए। वहाँ वह शिष्यों के साथ रहकर बपतिस्मा देने लगे। योहन भी सलीम नगर के निकट एनोन में बपतिस्मा दे रहे थे, क्योंकि वहाँ बहुत पानी था। लोग वहाँ आ कर बपतिस्मा ग्रहण करते थे। योहन अभी बंदीगृह में नहीं डाले गए थे। योहन के शिष्यों का किसी यहूदी धर्मगुरु के साथ शुद्धीकरण के विषय में वाद-विवाद छिड़ गया। उन्होंने योहन के पास जा कर कहा, “गुरुजी! देखिए, जो यर्दन नदी के उस पार आपके साथ थे और जिनके विषय में आपने साक्षी दी थी, वह बपतिस्मा देने लगे हैं और सब लोग उनके पास जाने लगे हैं।” योहन ने उत्तर दिया, “जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए, वह कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता है। तुम लोग स्वयं साक्षी हो कि मैंने कहा था, ‘मैं मसीह नहीं हूँ, किन्तु मैं उनसे पहले भेजा गया हूँ।’ जिसकी दुलहिन है वही दूल्हा है। दूल्हे का मित्र, जो उसके पास खड़ा रहता है और उसकी बात सुनता है, वह दूल्हे के स्वर से बहुत आनन्दित होता है। मेरा आनन्द ऐसा ही है और अब वह परिपूर्ण है। यह अनिवार्य है कि वह बढ़ते जाएँ और मैं घटता जाऊं।” जो ऊपर से आता है, वह सर्वोपरि है। जो पृथ्वी से आता है, वह पृथ्वी का है और पृथ्वी की बातें बोलता है। जो स्वर्ग से आता है, वह सर्वोपरि है। उसने जो कुछ देखा और सुना है, वह उसी की साक्षी देता है; किन्तु उसकी साक्षी कोई स्वीकार नहीं करता। जो उसकी साक्षी स्वीकार करता है, वह इस बात को प्रमाणित कर चुका कि परमेश्वर सत्य है। जिसे परमेश्वर ने भेजा है, वह परमेश्वर के ही शब्द बोलता है; क्योंकि परमेश्वर नाप-तौल कर पवित्र आत्मा प्रदान नहीं करता। पिता पुत्र को प्यार करता है और उसने उसके हाथ में सब कुछ दे दिया है।
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