सिमोन पतरस और एक दूसरा शिष्य येशु के पीछे-पीछे चले। यह शिष्य महापुरोहित का परिचित था। वह येशु के साथ महापुरोहित के भवन के प्रांगण में गया, किन्तु पतरस द्वार के पास बाहर खड़ा रहा। इसलिए वह दूसरा शिष्य, जो महापुरोहित का परिचित था, फिर बाहर गया और द्वारपाली से कह कर पतरस को भीतर ले आया। लड़की ने, जो द्वारपाली थी, पतरस से कहा, “कहीं तुम भी तो उस मनुष्य के शिष्य नहीं हो?” उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं हूँ।” जाड़े के कारण सेवकों और सिपाहियों ने कोयले की आग जला रखी थी, और खड़े-खड़े आग ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ आग ताप रहा था। महापुरोहित हन्ना ने येशु से उनके शिष्यों और उनकी शिक्षा के विषय में पूछा। येशु ने उत्तर दिया, “मैं संसार के सामने प्रकट रूप से बोला हूँ। मैंने सदा सभागृह और मन्दिर में, जहाँ सब धर्मगुरु एकत्र हुआ करते हैं, शिक्षा दी है। मैंने गुप्त रूप से कुछ नहीं कहा। यह आप मुझ से क्यों पूछते हैं? उन से पूछिए, जिन्होंने मेरी शिक्षा सुनी है। वे जानते हैं कि मैंने क्या-क्या कहा है।” इस पर पास खड़े सिपाहियों में से एक ने येशु को थप्पड़ मार कर कहा, “तुम महापुरोहित को इस तरह जवाब देते हो?” येशु ने उससे कहा, “यदि मैंने अनुचित कहा, तो सिद्ध करो कि मैंने अनुचित कहा और यदि ठीक कहा, तो मुझे क्यों मारते हो?” इसके बाद हन्ना ने बाँधे हुए येशु को प्रधान महापुरोहित काइफा के पास भेज दिया। सिमोन पतरस उस समय खड़ा-खड़ा आग ताप रहा था। कुछ लोगों ने उससे कहा, “कहीं तुम भी तो उसके शिष्य नहीं हो?” उसने अस्वीकार करते हुए कहा, “मैं नहीं हूँ।” महापुरोहित का एक सेवक उस व्यक्ति का सम्बन्धी था, जिसका कान पतरस ने उड़ा दिया था। उसने कहा, “क्या मैंने तुम को उसके साथ बगीचे में नहीं देखा था?” पतरस ने फिर अस्वीकार किया और उसी क्षण मुर्गे ने बाँग दी।
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