आप लोगों में द्वेष और लड़ाई-झगड़ा कहां से आता है? क्या इसका कारण यह नहीं है कि आपकी वासनाएँ आप के अन्दर लड़ाई करती हैं? आप अपनी लालसा पूरी नहीं कर पाते और इसी लिए हत्या करते हैं। आप जिस चीज के लिए ईष्र्या करते हैं, उसे नहीं पाते और इसलिए लड़ते-झगड़ते हैं। आप प्रार्थना नहीं करते, इसलिए आप लोगों के पास कुछ नहीं होता। जब आप मांगते भी हैं, तो इसलिए नहीं पाते कि अच्छी तरह प्रार्थना नहीं करते। आप अपनी वासनाओं की तृप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। व्यभिचारियों के सदृश आचरण करने वाले अनिष्ठावान लोगो! क्या तुम यह नहीं जानते कि संसार से मित्रता रखने का अर्थ है परमेश्वर से बैर करना? जो संसार का मित्र होना चाहता है, वह परमेश्वर का शत्रु बन जाता है। क्या तुम समझते हो कि धर्मग्रन्थ अकारण कहता है कि परमेश्वर ने जिस आत्मा को हम में समाविष्ट किया, उस को वह बड़ी ममता से चाहता है? वह प्रचुर मात्रा में अनुग्रह भी देता है, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है, “परमेश्वर घमण्डियों का विरोध करता, किन्तु विनीतों को अनुग्रह प्रदान करता है।” अत: आप लोग परमेश्वर के अधीन रहें। शैतान का सामना करें और वह आप के पास से भाग जायेगा।
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