प्रेरितों 27:21-44

प्रेरितों 27:21-44 HINCLBSI

वे बहुत समय से कुछ भी नहीं खा रहे थे, इसलिए पौलुस ने उनके बीच खड़ा हो कर कहा, “सज्‍जनो! उचित तो यह था कि आप लोग मेरी बात पर ध्‍यान देते और क्रेते से प्रस्‍थान नहीं करते। तब आप को न तो यह संकट सहना पड़ता और न यह हानि उठानी पड़ती। फिर भी मैं आप लोगों से अनुरोध करता हूँ कि आप धैर्य रखें। आप में से किसी का जीवन नहीं, केवल जलयान नष्‍ट होगा; क्‍योंकि मैं जिस परमेश्‍वर का सेवक तथा उपासक हूँ, उसके दूत ने आज रात मेरे समीप खड़े होकर मुझ से कहा, ‘पौलुस, डरिए नहीं। आप को रोमन सम्राट के सामने उपस्‍थित होना ही है। और देखिए, परमेश्‍वर ने आपके सब सहयात्री आपको दे दिये हैं।’ इसलिए सज्‍जनो! धैर्य रखिए। मुझे परमेश्‍वर पर विश्‍वास है कि जैसा मुझ से कहा गया है, वैसा ही होगा : हम अवश्‍य किसी द्वीप से जा लगेंगे।” तूफ़ान की चौदहवीं रात आयी और हम अब तक भूमध्‍य सागर पर इधर-उधर बह रहे थे। लगभग आधी रात को नाविकों ने अनुभव किया कि हम स्‍थल के निकट पहुँच रहे हैं। उन्‍होंने थाह ली, तो सैंतीस मीटर जल पाया और थोड़ा आगे बढ़ने पर फिर थाह ली, तो छब्‍बीस मीटर पाया। उन्‍हें भय था कि कहीं हम चट्टानों से न टकरा जायें; इसलिए उन्‍होंने जलयान के पिछले भाग से चार लंगर डाले और वे उत्‍सुकता से प्रात:काल होने की प्रतीक्षा करने लगे। किन्‍तु नाविक जलयान से भागना चाह रहे थे, इसलिए उन्‍होंने जलयान के अगले भाग से लंगर डालने के बहाने डोंगी पानी में उतार दी। इस पर पौलुस ने शतपति और सैनिकों से कहा, “यदि ये जलयान पर नहीं रहेंगे, तो आप लोग बच नहीं सकते।” इस पर सैनिकों ने डोंगी के रस्‍से काट कर उसे समुद्र में छोड़ दिया। जब पौ फटने लगी, तो पौलुस ने सब को अपने साथ भोजन करने के लिए उत्‍साहित किया। पौलुस ने कहा, “आप लोगों को चिन्‍ता करते-करते और निराहार रहते चौदह दिन हो गये हैं। आप लोगों ने कुछ भी नहीं खाया। इसलिए मैं आप लोगों से भोजन करने का अनुरोध करता हूँ। इसी में आपका कल्‍याण है। आप लोगों में किसी का बाल भी बाँका नहीं होगा।” पौलुस ने यह कह कर रोटी ली, सब के सामने परमेश्‍वर को धन्‍यवाद दिया और वह उसे तोड़ कर खाने लगे। इससे सबको प्रोत्‍साहन मिला और उन्‍होंने भी भोजन किया। जलयान में हम कुल मिला कर दो सौ छिहत्तर प्राणी थे। जब सब खा कर तृप्‍त हो गये, तो उन्‍होंने गेंहूँ को समुद्र में फेंक कर जलयान को हलका किया। जब दिन निकला, तो वे उस देश को नहीं पहचान सके, किन्‍तु उनकी दृष्‍टि एक खाड़ी पर पड़ी जिसका तट रेतीला था। उन्‍होंने विचार किया कि यदि हो सके, तो जलयान को उसी तट पर लगा दिया जाये। उन्‍होंने लंगर खोल कर समुद्र में छोड़ दिये, साथ ही पतवारों के बंधन ढीले कर दिए और अगला पाल हवा में तान कर तट की ओर चले। परन्‍तु जलयान जलमग्‍न बालू में धंस गया। अत: उन्‍होंने जलयान को वैसे ही रहने दिया। उसका अगला भाग गड़कर अचल हो गया और पिछला भाग लहरों के थपेड़ों से टूटने लगा। कहीं ऐसा न हो कि बन्‍दी तैर कर भाग जायें, इसलिए सैनिक उन्‍हें मार डालना चाहते थे; किन्‍तु शतपति ने पौलुस को बचाने के विचार से उनकी योजना रोक दी। उसने आदेश दिया कि जो तैर सकते हैं, वे पहले समुद्र में कूद कर तट पर निकल जाएं और शेष लोग तख्‍तों या जलयान की दूसरी चीज़ों के सहारे पीछे आ जायें। इस प्रकार सब-के-सब तट पर सकुशल पहुँच गये।