ऐसी ही घटना इकोनियुम नगर में घटी : पौलुस और बरनबास ने यहूदियों के सभागृह में प्रवेश किया और ऐसा भाषण दिया कि यहूदी तथा यूनानी, दोनों बड़ी संख्या में विश्वासी बन गये। किन्तु जिन यहूदियों ने विश्वास करना अस्वीकार किया था, उन्होंने ग़ैर-यहूदियों को उभाड़ा और उनके मन में विश्वासी भाई-बहिनों के प्रति द्वेष भर दिया। पौलुस तथा बरनबास बहुत समय तक वहां रहे और प्रभु पर भरोसा रख कर निर्भीकता-पूर्वक प्रचार करते रहे। प्रभु ने भी उनके हाथों द्वारा चिह्न तथा आश्चर्य-कर्म दिखा कर अपने अनुग्रह का सन्देश प्रमाणित किया। इसका परिणाम यह हुआ कि नगर की जनता में फूट पड़ गयी। कुछ लोगों ने यहूदियों का और कुछ लोगों ने प्रेरितों का पक्ष लिया। जब गैर-यहूदियों तथा यहूदियों ने अपने शासकों से मिलकर प्रेरितों के साथ दुर्व्यवहार करने तथा उनपर पथराव करने का प्रयत्न किया, तब प्रेरितों को इसका पता चला और वे लुकाओनिया के लुस्त्रा तथा दिरबे नामक नगरों और उनके आसपास के प्रदेश की ओर भाग गये और वहां भी वे प्रभु येशु का शुभ समाचार सुनाने लगे। लुस्त्रा नगर में एक ऐसा व्यक्ति बैठा हुआ था, जिसके पैरों में शक्ति नहीं थी। वह जन्म से ही लँगड़ा था और कभी चल-फिर नहीं सका था। वह पौलुस का प्रवचन सुन रहा था। तब पौलुस ने उस पर दृष्टि गड़ायी और उस में स्वस्थ हो जाने योग्य विश्वास देख कर ऊंचे स्वर से कहा, “उठो और अपने पैरों पर सीधा खड़े हो जाओ।” वह उछल पड़ा और चलने-फिरने लगा। जब लोगों ने देखा कि पौलुस ने क्या किया है, तो वे लुकाओनियाई भाषा में बोल उठे, “देवता मनुष्यों का रूप धारण कर हमारे पास उतरे हैं।” उन्होंने बरनबास का नाम ज्यूस देवता रखा और पौलुस का हिरमेस देवता, क्योंकि वह प्रमुख वक्ता थे। नगर के बाहर ज्यूस देवता का मन्दिर था। वहां का पुजारी माला लिये सांड़ों के साथ फाटक के पास आ पहुंचा। वह अपार जनसमूह के साथ बलि चढ़ाना चाहता था। जब प्रेरित बरनबास और पौलुस ने यह सुना, तो वे इस ईश-निन्दा के विरोध में अपने वस्त्र फाड़ कर भीड़ में कूद पड़े और उच्च स्वर में बोले, “मित्रो! आप यह क्या कर रहे हैं? हम भी तो आप लोगों के समान सुख-दु:ख भोगने वाले मनुष्य हैं। हम यह शुभ-समाचार देने आये हैं कि आप इन नि: सार वस्तुओं को छोड़ कर उस जीवन्त परमेश्वर की ओर अभिमुख हों, जिसने आकाश, पृथ्वी, समुद्र और उन में जो कुछ है, वह सब बनाया है। उसने बीते युगों में सब जातियों को अपने-अपने मार्ग पर चलने दिया। फिर भी वह अपने भले कार्यों द्वारा अपने विषय में साक्षी देता रहा: वह आपके लिए आकाश से पानी बरसाता और नियत मौसम में फसलें उगाता है; वह अन्न प्रदान कर आपका हृदय आनन्द से भरता है।” इन शब्दों द्वारा प्रेरितों ने भीड़ को कठिनाई से रोका कि वह उनके लिए बलि न चढ़ाये। किन्तु अन्ताकिया तथा इकोनियुम से कुछ यहूदी आ पहुंचे। उन्होंने जनता को अपने पक्ष में मिला लिया। उन्होंने पौलुस को पत्थरों से मारा और मृत समझ कर उन्हें नगर के बाहर घसीट कर ले गये। पर जब शिष्य पौलुस के चारों ओर एकत्र हुए, तो वह उठे और नगर में गए। दूसरे दिन वह बरनबास के साथ दिरबे चले गये। उन्होंने उस नगर में शुभ समाचार का प्रचार किया और बहुत शिष्य बनाये। इसके बाद वे लुस्त्रा और इकोनियुम हो कर अन्ताकिया लौटे। वे शिष्यों का मन सुदृढ़ करते और उन्हें विश्वास में स्थिर रहने के लिए प्रोत्साहित करते थे, और कहते थे कि हमें बहुत-से कष्ट सह कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना है। उन्होंने प्रत्येक कलीसिया में उनके लिए धर्मवृद्धों को नियुक्त किया और प्रार्थना तथा उपवास करने के बाद उन्हें प्रभु के हाथों सौंप दिया, जिन पर वे विश्वास कर चुके थे। वे पिसिदिया प्रदेश पार कर पंफुलिया प्रदेश पहुँचे और पेरगे नगर में शुभ संदेश सुनाने के बाद अत्तालिया नगर में आये। वहाँ से उन्होंने जलयान पर महानगर अन्ताकिया को प्रस्थान किया, जहाँ उन्हें उस कार्य के लिए परमेश्वर के अनुग्रह को अर्पित किया गया था, जो उन्होंने अब पूरा कर लिया था। वहाँ पहुँच कर उन्होंने कलीसिया की सभा बुलायी और बताया कि परमेश्वर ने उनके द्वारा क्या-क्या किया और कैसे गैर-यहूदियों के लिए विश्वास का द्वार खोला। वे बहुत समय तक वहाँ शिष्यों के साथ रहे।
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