2 शमूएल 15:12-26

2 शमूएल 15:12-26 HINCLBSI

जब अबशालोम बलि चढ़ा रहा था तब उसने अहीतोफल को उसके नगर, गिलोह से बुलाया। अहीतोफल दाऊद का मन्‍त्री था। वह गिलोह नगर में रहता था। इस प्रकार षड्‍यन्‍त्र बल पकड़ता गया। अबशालोम के सहयोगियों की संख्‍या बढ़ती गई। एक सन्‍देश-वाहक दाऊद के पास आया। उसने दाऊद को यह बताया, ‘इस्राएल प्रदेश के लोग अबशालोम का अनुसरण करने लगे हैं।’ अत: दाऊद ने अपने दरबारियों को जो उसके साथ यरूशलेम में थे, यह आदेश दिया, ‘तैयार हो जाओ, हम अविलम्‍ब भाग चलें। अन्‍यथा हम अबशालोम के आने पर भाग न सकेंगे। शीघ्र चलो। ऐसा न हो कि वह अचानक हमें आ घेरे, हमारा अनिष्‍ट करे और नगरवासियों को तलवार से मौत के घाट उतारे।’ दरबारियों ने राजा से कहा, ‘महाराज, हमारे स्‍वामी, हम आपके निर्णय के अनुसार कार्य करेंगे। हम प्रस्‍तुत हैं।’ अत: राजा दाऊद महल के बाहर निकला। उसके साथ उसका राजपरिवार था। उसने महल की देखभाल करने के लिए दस रखेल छोड़ दीं। राजा बाहर निकला। उसके साथ सब लोग निकले। राजा अन्‍तिम मकान के सम्‍मुख रुका। उसके सब दरबारी उसके समीप खड़े हो गए। करेत और पलेत के रहने वाले अंगरक्षक, इत्तय, और गत नगर के रहने वाले छ: सौ सैनिक, जो इत्तय के साथ आए थे, राजा के सामने से गुजरे। राजा ने गत नगर के रहने वाले इत्तय से पूछा, ‘तुम हमारे साथ क्‍यों जा रहे हो? लौट जाओ। नए राजा के साथ रहो। तुम विदेशी हो। इसके अतिरिक्‍त तुम अपने देश से निर्वासित हो। तुम कल ही आए थे। क्‍या मैं आज ही तुम्‍हें अपने साथ भटकने के लिए ले जाऊं; जब कि मैं स्‍वयं नहीं जानता हूँ कि मैं कहाँ जा रहा हूँ? लौट जाओ, और अपने साथ अपने देश-वासियों को भी ले जाओ। प्रभु की करुणा और सच्‍चाई तुम्‍हारे साथ रहे।’ किन्‍तु इत्तय ने राजा को यह उत्तर दिया, ‘जीवन्‍त प्रभु की सौगन्‍ध! महाराज, मेरे स्‍वामी की सौगन्‍ध! महाराज, आप जिस स्‍थान में रहेंगे, आपका यह सेवक भी वहाँ रहेगा। वह जीवन में, और मृत्‍यु में अपने महाराज, स्‍वामी का साथ देगा।’ तब दाऊद ने इत्तय से कहा, ‘अच्‍छा, जाओ।’ अत: वह अपने सब लोगों और बाल-बच्‍चों के साथ आगे बढ़ गया। समस्‍त देश उच्‍च स्‍वर में रो पड़ा। राजा दाऊद किद्रोन घाटी में खड़ा था, और सब लोग उसके सामने से गुजरते हुए निर्जन प्रदेश की ओर चले गए। तब पुरोहित एबयातर आया। उसके पश्‍चात् सादोक भी आया। सादोक के साथ उपपुरोहित लेवीय थे, जो परमेश्‍वर के विधान की मंजूषा उठाए हुए थे। जब तक सब लोग नगर से गुजर नहीं गए तब तक वे परमेश्‍वर की मंजूषा एबयातर के पास रखे रहे। राजा ने सादोक को आदेश दिया, ‘परमेश्‍वर की मंजूषा को नगर में वापस ले जाओ। यदि मैं प्रभु की कृपा-दृष्‍टि प्राप्‍त करूँगा तो वह मुझे इस नगर में वापस लाएगा और मुझे अपनी मंजूषा और उसके निवास-स्‍थान के फिर दर्शन कराएगा। पर यदि प्रभु यों कहेगा : “मैं तुझसे प्रसन्न नहीं हूँ” तो भी मैं उसकी इच्‍छा को स्‍वीकार करूँगा। जो उसकी दृष्‍टि में भला लगे, वही मेरे साथ करे।’

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