2 राजा 17:24-41

2 राजा 17:24-41 HINCLBSI

असीरिया देश के राजा ने बेबीलोन, कूत, अव्‍वा, हमात और सपरवइम नगरों से लोगों को निर्वासित किया, और उनको सामरी प्रदेश के नगरों में इस्राएलियों के स्‍थान पर बसा दिया। उन्‍होंने सामरी प्रदेश पर कब्‍जा कर लिया और वे उसके नगरों में बस गए। अपने निवास के आरम्‍भिक दिनों में वे प्रभु की आराधना नहीं करते थे। अत: प्रभु ने उनकी बस्‍तियों में सिंहों को भेजा, जिन्‍होंने उनके कुछ लोगों को मार डाला। असीरिया के राजा को यह समाचार मिला, ‘जिन जातियों को आपने सामरी नगरों में ले जाकर बसाया है, वे उस देश के देवता की प्रथा को नहीं जानते हैं। अत: उसने उनके मध्‍य सिंह भेजे हैं, जो उनको मार रहे हैं। महाराज, ये जातियां निस्‍सन्‍देह उस देश के देवता की प्रथा से अपरिचित हैं।’ तब असीरिया के राजा ने असीरियों को यह आदेश दिया, ‘जो पुरोहित तुम वहां से बन्‍दी बनाकर लाए हो, उनमें से किसी को वहां भेजो। वह वहां जाएगा, और वहीं रहेगा। वह लोगों को उस देश के देवता की प्रथा के विषय में शिक्षा देगा।’ अत: एक पुरोहित, जिसको वे सामरी नगर से बन्‍दी बनाकर ले गए थे, बेत-एल नगर में गया और वहां रहने लगा। वह लोगों को सिखाता था कि उन्‍हें किस प्रकार प्रभु की आराधना करनी चाहिए। फिर भी सामरी नगरों में बसी हुई जातियां अपने-अपने राष्‍ट्रीय देवता की मूर्तियां बनातीं, और उनको पहाड़ी शिखर की वेदियों के आराधना-गृहों में प्रतिष्‍ठित करती थीं। इन आराधना-गृहों को सामरी लोगों ने निर्मित किया था। प्रत्‍येक जाति ने अपने नगर में अपने राष्‍ट्रीय देवता की मूर्ति प्रतिष्‍ठित की। बेबीलोनी लोगों ने सूक्‍कोत-बनोत देवता की, कूती लोगों ने नेर्गल देवता की, हमाती लोगों ने असीमा देवता की, अव्‍वी लोगों ने निब्‍हज और तरताक देवताओं की मूर्तियां प्रतिष्‍ठित कीं। सपरवइम नगर के देवता अद्र-मेलेक और अन-मेलेक थे। सपरवइमी लोग इन देवताओं के लिए अपने बच्‍चों को अग्‍नि में चढ़ाते थे। ये जातियां प्रभु की भी आराधना करती थीं। उन्‍होंने अनेक वर्ग के पुरुषों को पहाड़ी शिखर के वेदियों के पुरोहित नियुक्‍त किए थे, जो उनके लिए आराधना-गृहों में बलि चढ़ाते थे। ये जातियां प्रभु की आराधना करती तो थीं, पर वे अपने देश की प्रथा के अनुसार, जहां से वे निर्वासित हुई थीं, अपने-अपने राष्‍ट्रीय देवता की पूजा भी करती थीं। वे आज भी प्राचीन रीति-रिवाजों का पालन करती हैं। सामरी लोग प्रभु का भय नहीं मानते थे। वे उन संविधियों, न्‍याय-सिद्धान्‍तों, व्‍यवस्‍था और आज्ञाओं का पालन नहीं करते थे, जिन्‍हें प्रभु ने याकूब के वंशजों को प्रदान किया था। याकूब का नाम उसने ‘इस्राएल’ रखा था। प्रभु ने याकूब के वंशजों के साथ यह विधान स्‍थापित किया था और उनको यह आज्ञा दी थी, ‘तुम अन्‍य देवताओं की पूजा मत करना। तुम झुककर उनकी वन्‍दना मत करना। उनकी सेवा मत करना, और न उनके लिए बलि चढ़ाना। किन्‍तु तुम केवल प्रभु की आराधना करना, जिसने तुमको अपने महासामर्थ्य से और उद्धार के लिए फैली हुई भुजाओं से मिस्र देश से बाहर निकाला था। तुम केवल उसकी वन्‍दना करना, और उसके लिए ही बलि चढ़ाना। जो संविधियां, न्‍याय-सिद्धान्‍त, व्‍यवस्‍था और आज्ञाएं उसने तुम्‍हारे लिए लिखी हैं, उनका पालन करने में सदा तत्‍पर रहना। तुम अन्‍य देवताओं की पूजा कदापि मत करना। जो विधान प्रभु ने तुम्‍हारे साथ स्‍थापित किया है, उसको मत भूलना। तुम अन्‍य देवताओं की पूजा कभी मत करना। परन्‍तु तुम अपने प्रभु परमेश्‍वर की आराधना करना; और वह तुम्‍हारे शत्रुओं के हाथ से तुम्‍हें मुक्‍त करेगा।’ फिर भी उन्‍होंने ये बातें नहीं सुनीं। वे अपने प्राचीन रीति-रिवाजों का पालन करते रहे। ये जातियां एक ओर तो प्रभु की आराधना करती थीं, और दूसरी ओर अपने राष्‍ट्रीय देवताओं की मूर्तियों की पूजा भी। ऐसा ही उनकी सन्‍तान भी करती रही। पीढ़ी से पीढ़ी यह होता रहा। जैसा उनके पूर्वजों ने किया था वैसा ही आज भी उनके वंशज करते हैं।