मार्कास 7:1-13

मार्कास 7:1-13 HSS

येरूशलेम नगर से फ़रीसियों तथा कुछ शास्त्रियों ने आकर मसीह येशु को घेर लिया. उन्होंने देखा कि मसीह येशु के कुछ शिष्य सांस्कारिक रूप से अशुद्ध हाथों से (बिना धोए हुए हाथों से) भोजन कर रहे हैं. फ़रीसी और सभी यहूदी हाथों को भली-भांति धोए बिना भोजन नहीं करते. ऐसा करते हुए वे पूर्वजों से चली आ रही प्रथाओं का पालन करते थे. बाजार से लौटने पर वे स्वयं को पारम्परिक रीति से शुद्ध किए बिना भोजन नहीं करते थे. वे चली आ रही अन्य अनेक प्रथाओं का पालन करते चले आए थे जैसे, कटोरों, घड़ों तथा पकाने के तांबे के बर्तनों का धोना. फ़रीसियों तथा शास्त्रियों ने मसीह येशु से प्रश्न किया, “तुम्हारे शिष्य पूर्वजों से चली आ रही प्रथाओं का पालन क्यों नहीं करते? वे अशुद्ध हाथों से भोजन करते हैं.” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम पाखंडियों के लिए भविष्यवक्ता यशायाह की यह भविष्यवाणी ठीक ही है: “ ‘ये लोग मात्र अपने होंठों से मेरा सम्मान करते हैं, किंतु उनके हृदय मुझसे बहुत दूर हैं. मेरे प्रति उनकी उपासना व्यर्थ है. उनकी शिक्षाएं मात्र मनुष्य के मस्तिष्क की उपज हैं.’ आप लोग मनुष्यों की परंपराओं का तो पालन करते जाते हैं किंतु परमेश्वर की आज्ञा को टालते जाते हैं.” मसीह येशु ने उनसे यह भी कहा, “आप लोग कितनी सुविधापूर्वक परंपराओं का पालन करने के लिए परमेश्वर की आज्ञा को टाल देते हैं! मोशेह की आज्ञा है, ‘अपने माता-पिता का सम्मान करो और वह, जो माता या पिता के प्रति बुरे शब्द बोले, उसे मृत्यु दंड दिया जाए.’ किंतु आपका कहना है, ‘यदि कोई व्यक्ति अपने पिता या माता से इस प्रकार कहे, मेरी संपत्ति में से जो कुछ आपकी सहायता के लिए उपलब्ध हो सकता था, वह कोरबान है अर्थात् परमेश्वर को समर्पित,’ इसके द्वारा आप उसे अपने पिता और अपनी माता के लिए कुछ भी करने नहीं देते. अपनी इस प्रथा के द्वारा, जो पूर्वजों से चली आई है, आप परमेश्वर के वचन को टाल देते हैं. आप ऐसे ही अनेक काम किया करते हैं.”

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