“हे मनइव तूँ पंचे इआ का करते हया? हमहूँ पंचे त तोंहरिन कि नाईं दुख-सुख भोगी मनई आहेन, अउर तोहईं खुसी के खबर सुनाइत हएन, कि तूँ पंचे ईं बेकार के चीजन से अलग होइके, जिन्दा परमातिमा के ऊपर बिसुआस करा, जउन स्वरग अउर धरती अउर समुंद्र अउर जउन कुछू उनमा हय बनाइन हीं।