योना 4:1, 3-4, 9-11

योना 4:1 HINCLBSI

किन्‍तु योना को परमेश्‍वर का यह निर्णय बहुत बुरा लगा। वह प्रभु परमेश्‍वर से नाराज हो गया।

योना 4:3-4 HINCLBSI

इसलिए अब मैं तुझसे यह विनती करता हूं: हे प्रभु, तू मेरा प्राण मुझसे ले ले। मेरे लिए जीवित रहने की अपेक्षा मरना अच्‍छा है।’ प्रभु ने योना से कहा, ‘क्‍या तेरा यह क्रोध उचित है?’

योना 4:9-11 HINCLBSI

तब परमेश्‍वर ने योना से पूछा, ‘क्‍या यह उचित है कि तू अंडी के पेड़ के कारण नाराज हो?’ योना ने उत्तर दिया, ‘मेरा क्रोध उचित है। इसलिए मैं नाराज हूं। मैं मर जाना चाहता हूं।’ प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ‘तू उस अंडी के पेड़ के लिए दु:खित है जिसके लिए तूने कोई परिश्रम नहीं किया। तूने उसको न लगाया था और न बड़ा किया था। वह एक रात में उगा और दूसरी रात में नष्‍ट हो गया। सुन, इस महानगर नीनवे में एक लाख बीस हजार से ज्‍यादा अबोध बच्‍चे हैं, जो अपने दाएं-बाएं हाथ का भी अन्‍तर नहीं पहचानते। इसके अतिरिक्‍त निर्दोष पशु भी हैं। तब क्‍या मुझे इस महानगर के लिए दु:खी नहीं होना चाहिए?’